Question
Download Solution PDF“नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहुनिर्मलम्।
अमन्दाश्चाभि योगोऽस्याः कारणं काव्य संपदः।।"
काव्य-हेतु की यह परिभाषा किस आचार्य ने दी है ?
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MPPSC Assistant Prof 2025 (Hindi) Official Paper-II (Held On: 01 Jun, 2025)
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Option 3 : आचार्य दण्डी
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MPPSC Assistant Professor UT 1: MP History, Culture and Literature
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Detailed Solution
Download Solution PDFसही उत्तर है- आचार्य दण्डी
Key Pointsदण्डी-
- समय-7 वीं शती
- मुख्य ग्रन्थ-काव्यादर्श
- आचार्य दण्डी ने नैसर्गिक प्रतिभा, निर्मल शास्त्र ज्ञान तथा सुदृढ़ अभ्यास को काव्य सृजन का हेतु माना है-
- 'नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहुनिर्मलम्।
अमन्दाश्चाभि योगोऽस्याः कारणं काव्य संपदः।।'
- 'नैसर्गिकी च प्रतिभा श्रुतं च बहुनिर्मलम्।
Important Pointsआचार्य वामन-
- प्रसिद्ध अलंकारशास्त्री थे।
- इनके द्वारा प्रतिपादित काव्यलक्षण को रीति-सिद्धान्त कहते हैं।
- काव्यालङ्कारसूत्र आचार्य वामन द्वारा रचित एकमात्र ग्रंथ है।
- यह सूत्र शैली में लिखा गया है।
- इसमें पाँच अधिकरण हैं।
- प्रत्येक अधिकरण अध्यायों में विभक्त है।
- इस ग्रंथ में कुल बारह अध्याय हैं।
- प्रसिद्ध उक्ति-
- उक्ति-'काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मः गुणाः I'
- अर्थ-
- शब्द और अर्थ के शोभाकारक धर्म को गुण कहा जाता है|
आचार्य भामह-
- भारतीय काव्यशास्त्र के महत्तवपूर्ण आचार्य रहे है|
- इन्हें अलंकार संप्रदाय का जनक कहते हैं।
- काव्यशास्त्र पर काव्यालंकार नामक ग्रंथ उपलब्ध है।
- परिभाषा-"शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्"।
रुद्रट-
- समय-9 वीं शती
- ग्रंथ-
- काव्यालंकार
- काव्य लक्षण-
- ननु शब्दार्थो काव्यम्।
Last updated on Jul 7, 2025
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