काव्य दोष MCQ Quiz - Objective Question with Answer for काव्य दोष - Download Free PDF
Last updated on Apr 10, 2025
Latest काव्य दोष MCQ Objective Questions
काव्य दोष Question 1:
'सब कोऊ जानत तुम्हें सारे जगत जहान' - इस वाक्य में कौन-सा काव्य-दोष है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 1 Detailed Solution
- 'सब कोऊ जानत तुम्हें सारे जगत जहान में पुनरूक्ति दोष है।
- काव्य में गुण के विरोधी तत्व को दोष कहते हैं।
Key Points
- जिसके द्वारा किसी उक्ति के मुख्यार्थ को समझने में किसी प्रकार की रूकावट पड़ती हो , उसे दोष कहते हैं।
- काव्य दोष के पांच भेद भी माने गए हैं - शब्द दोष , छंद दोष , रस दोष , अर्थ दोष और वाक्य दोष।
काव्य दोष Question 2:
राजन् ! देहु तुरंग मोहि, अथवा देहु मतंग' इस पंक्ति में कौन सा काव्य दोष है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 2 Detailed Solution
राजन! देहु तुरंग मोहि अथवा देहु मतंग में दुष्क्रमत्व दोष है।
- याचक को पहले हाथी मांगना चाहिए और फिर हाथी न मिलने पर घोडे की याचना करनी चाहिए, किन्तु यहां पहले 'हय' अर्थात् घोडे की और तदुपरान्त हाथी की याचना करके लोक विरुद्ध क्रम रखा गया है अतः दुष्क्रमत्व दोष है।
दुष्क्रमत्व दोष
- जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
अन्य उदाहरण-
- "मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।"
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
- मन का वेग मारुत तथा खगराज के वेग से अधिक होने के कारण उसको सबसे अंत में रखा जाना चाहिए।
क्लिष्टत्व दोष
- जहाँ किसी शब्द का अर्थ आसानी से समझ में न आये वहाँ किलष्टत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- कहत कत परदेशी की बात।
- मन्दिर अरध अवधि बदि हमसौं हरि अहार चलि जात ॥
- वेद, नखत, ग्रह जोरि अरध करि सोई बनत अब खाता।
अक्रमत्व दोष
- जब वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक नहीं होता वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
- यह दोष विभक्ति चिह्नों, अव्यय, उपसर्ग आदि क्रम भंग होने से होता है।
- उदाहरण-
- "ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।"
- इस पंक्ति में ‘देना’ शब्द ‘दिखला’ शब्द के पश्चात् आना चाहिए अत: इसमें अक्रमत्व दोष है।
- "ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।"
अप्रतीतत्व दोष
- लोक व्यवहार में न प्रयुक्त होने वाले शास्त्रीय शब्दों का काव्य में प्रयोग होने पर अप्रतीतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।"
- यहां विष शब्द का प्रयोग जल के लिए होता है, जो सामान्यतः लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता अतः अप्रतीतत्व दोष है।
- "विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।"
काव्य दोष Question 3:
'मरम वचन जब सीता बोला,
पंचम स्वर में कोकिल बोला।
प्रस्तुत पद में शब्द प्रयोग संबंधी कौन-सा दोष है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 3 Detailed Solution
'मरम वचन जब सीता बोला, पंचम स्वर में कोकिल बोला। प्रस्तुत पद में शब्द प्रयोग संबंधी च्युत संस्कार दोष है।
- यह पद तुलसीदास कृत रामचरितमानस से लिया गया है।
Key Pointsच्युत संस्कार दोष-
- जहां किसी शब्द का प्रयोग व्याकरण के प्रतिकूल होता है, वहां च्युत संस्कार दोष होता है।
- उदाहरण-
- इस निराशता को छोड़ो, आशा से लो काम।
- यहां निराशता शब्द व्याकरण की दृष्टि से गलत है अतः च्युत संस्कार दोष है।
Important Pointsग्राम्यत्व दोष-
- यदि कोई कवि काव्य में साहित्यिक शब्दों के स्थान पर ग्रामीण बोलचाल की भाषा में शब्दों का प्रयोग करता है तो वहां ग्राम्यत्व दोष माना जाता है।
- उदाहरण-
- मूँड पर मुकुट धरै सोहत है गोपाल।
- यहां सिर के लिए मूंड़ शब्द का प्रयोग हुआ है जो ग्राम्यत्व दोष से युक्त है।
Additional Informationकाव्य दोष-
- जिसके कारण काव्य के रसास्वादन में व्यवधान हो उसे काव्य दोष कहते हैं।
- जिस प्रकार काव्य गुण के कारण काव्य का उत्कर्ष होता है उसी प्रकार दोष के कारण काव्य का अपकर्ष होता है।
- काव्य दोष के प्रकार-
- वाक्य दोष
- शब्द दोष
- अर्थ दोष
- रस दोष
- छंद दोष
काव्य दोष Question 4:
सुमेलित कीजिए :
(क) | कृपादृष्टि हो जाए तो बन जाएँ सब काम। | (i) | दुष्क्रमत्व दोष |
(ख) | लपटी पुष्प पराग रज, सनी स्वेद मकरंद। | (ii) | अक्रमत्व दोष |
(ग) | विश्व में मिलते नहीं हैं, वीर भीम समान के। | (iii) | अधिकपदत्व दोष |
(घ) | नृप मो को हय दीजिये, अथवा मत्त गजेन्द्र। | (iv) | न्यूनपदत्व दोष |
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 4 Detailed Solution
सही सुमेलन हैं-
कृपादृष्टि हो जाए तो बन जाएँ सब काम। | न्यूनपदत्व दोष |
लपटी पुष्प पराग रज, सनी स्वेद मकरंद। | अधिकपदत्व दोष |
विश्व में मिलते नहीं हैं, वीर भीम समान के। | अक्रमत्व दोष |
नृप मो को हय दीजिये, अथवा मत्त गजेन्द्र | दुष्क्रमत्व दोष |
Key Pointsअधिकपदत्व दोष-
- जहाँ काव्य में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग किया जाए, वहाँ अधिक पदत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- पुष्प पराग से रंगकर भ्रमर गुंजारता है।
- उपर्युक्त पंक्ति में ‘पुष्प’ शब्द को हटा देने पर भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है। ‘पुष्प’ का प्रयोग अधिक होने के कारण अधिकपदत्व दोष है।
न्यूनपदत्व दोष-
- जहाँ अभीष्ट अर्थ को सूचित करने वाले पद की कमी हो और अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कोई शब्द जोडना पड़े, वहाँ न्यून पदत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "पानी, पावक पवन प्रभु ज्यों असाधु त्यों साधु।"
- पानी, पावक पवन और प्रभु साधु और असाधु के साथ समान व्यवहार करते हैं- कवि यह कहना चाहता है, किन्तु समान व्यवहार शब्द को यहां छोड़ दिया गया है जिससे अर्थ में बाधा उत्पन्न हो रही है, अतः न्यून पदत्व दोष है।
अक्रमत्व दोष-
- जहाँ कोई पद उचित स्थान पर प्रयुक्त न होकर अनुचित स्थान पर प्रयुक्त हो और उसका क्रम जोडने में कठिनाई हो, वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- विश्व में लीला निरन्तर कर रहे हैं मानवी।
- यहां मानवी शब्द लीला से पहले प्रयुक्त होना चाहिए। वे प्रभु इस संसार में निरन्तर मानवी लीला कर रहे हैं।
दुष्क्रमत्व दोष-
- जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।"
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
काव्य दोष Question 5:
व्याकरण विरुद्ध प्रयोग किस दोष के अंतर्गत आते हैं ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 5 Detailed Solution
व्याकरण विरुद्ध प्रयोग च्युत संस्कारत्व दोष के अंतर्गत आते है।
च्युत संस्कारत्व-
- जहाँ कोई शब्द व्याकरण के नियमों के विरुद्ध हो, वहाँ च्युतसंस्कृत दोष होता है।
- उदाहरण-
- इस निराशता को छोड़ो, आशा से काम लो।
- यहाँ निराशता शब्द व्याकरण की दृष्टि से गलत है।
Key Pointsशब्द दोष-
- जहाँ शब्दों की रमणीयता में अपकर्षत्व हो, वहाँ शब्द-दोष होता है।
Important Pointsग्राम्यत्व-
- जहाँ साहित्यिक भाषा में गँवारू शब्दों का प्रयोग किया जाए, वहाँ ग्रामयत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- तुम तो निखबख गँवार हो।
- यहाँ निखबख से तात्पर्य बिल्कुल शब्द से है।
प्रतिकूल वर्णत्व-
- जहाँ वाक्य में प्रतिकूल वर्णों का प्रयोग न हो वहाँ प्रतिकूल वर्णत्व दोष होता है।
निरर्थकत्व-
- जहाँ वाक्य में अर्थगत शब्दों की जगह निरर्थक शब्दों का प्रयोग हो वहाँ निरार्थकत्व दोष होता है।
Additional Informationकाव्य दोष-
- ये दोष काव्य के मुख्य अर्थ की प्रतीति में बाधा पहुंचाते हैं।
- दोष शब्द, अर्थ और रस-इन तीनों के सौन्दर्य में व्याघात उत्पन्न करता है।
- आचार्य विश्वनाथ के अनुसार-
- ’’रस के अपकर्षक दोष कहलाते हैं।’’
Top काव्य दोष MCQ Objective Questions
'सब कोऊ जानत तुम्हें सारे जगत जहान' - इस वाक्य में कौन-सा काव्य-दोष है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDF- 'सब कोऊ जानत तुम्हें सारे जगत जहान में पुनरूक्ति दोष है।
- काव्य में गुण के विरोधी तत्व को दोष कहते हैं।
Key Points
- जिसके द्वारा किसी उक्ति के मुख्यार्थ को समझने में किसी प्रकार की रूकावट पड़ती हो , उसे दोष कहते हैं।
- काव्य दोष के पांच भेद भी माने गए हैं - शब्द दोष , छंद दोष , रस दोष , अर्थ दोष और वाक्य दोष।
'राजन देहु तुरंग मोहि, अथवा देहु मतंग।' इस पंक्ति में कौनसा काव्य दोष है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDF'राजन देहु तुरंग मोहि, अथवा देहु मतंग।' इस पंक्ति में दुष्क्रमत्व काव्य दोष है।
पंक्तियों का अर्थ-
- राजन मुझे तुरंग(घोड़ा) दो या मतंग(हाथी) दो।
- मतंग तुरंग की अपेक्षा अधिक मूल्यवान होता है।
- अतः पहले मांग मतंग की होनी चाहिए जो तुरंग नहीं देगा वह मतंग क्या देगा।
- अतः यहाँ दुष्क्रमत्व दोष है ।
Key Points
दुष्क्रमत्व दोष-
- लोक परम्परा शास्त्रीय विधि के विरुद्ध कोई बात करने से दुष्क्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
- मन का वेग मारुत तथा खगराज के वेग से अधिक होने के कारण उसको सबसे अंत में रखा जाना चाहिए।
Important Pointsअप्रतीतत्व दोष-
- लोक व्यवहार में न प्रयुक्त होने वाले शास्त्रीय शब्दों का काव्य में प्रयोग होने पर अप्रतीतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।
- यहां विष शब्द का प्रयोग जल के लिए होता है, जो सामान्यतः लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता अतः अप्रतीतत्व दोष है।
क्लिष्टत्व दोष-
- क्लिष्टत्व शब्द का अर्थ है-कठिन अथवा दुर्बोध होना ।
- काव्य में जहां सरल एवं सुबोध शब्दों का प्रयोग ना करके कठिन और दुर्बोध शब्दों का प्रयोग किया जाता है वहां क्लिष्टतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- खगपति-पति-तिय-पितुवधू-जल समान तुव बैन।
अक्रमत्व दोष-
- जब काव्य में शब्दों का प्रयोग उचित क्रम से ना हो तो वहां ‘अक्रमत्व दोष’ होता है।
- उदाहरण-
- अब तो मिलते नहीं वीर जन अर्जुन-भीम सामान के।
- यहां शब्दों का उचित क्रम ‘अर्जुन भीम के समान’ होना चाहिए परंतु इस पंक्ति में ऐसा नहीं है इसीलिए इस पंक्ति में अक्रमत्व दोष है।
Additional Informationकाव्य दोष-
- गुण के विरोधी तत्वों को दोष कहते है।
- मुख्यार्थ में बाधा पहुँचाने वाले कारकों को काव्य-दोष कहते हैं।
- काव्य-दोष रसानुभूति में बाधा उत्पन्न करने तथा काव्योद्देश्य में व्यवधान पैदा करने वाले तत्वों को कहते हैं।
व्याकरण-विरुद्ध शब्द-प्रयोग से उत्पन्न काव्य-दोष कौन-सा है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDFव्याकरण-विरुद्ध शब्द-प्रयोग से उत्पन्न काव्य-दोष च्युतसंस्कृति है।
च्युतसंस्कृति दोष-
- जहाँ काव्य में व्याकरण के नियमों का उल्लंघन करके शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वहाँ च्युत संस्कृति दोष होता है।
Key Pointsच्युतसंस्कृति दोष-
- उदाहरण-
- फूलों की लावण्यता देती है आनन्द।
- यहाँ लावण्यता’ शब्द का प्रयोग दोषपूर्ण है।
- ‘लावण्य’ कहना ही ठीक है।उसमें ‘ता’ प्रत्यय जोड़ना ठीक नहीं है।
Important Pointsग्राम्यत्व दोष-
- जहाँ साहित्यिक भाषा में गँवारू शब्दों का प्रयोग किया जाए,वहाँ ग्राम्यत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- तुम तो निखबख गँवार हो।
- यह निखबख का अर्थ है- बिल्कुल।
अप्रतीतत्व दोष-
- लोक व्यवहार में न प्रयुक्त होने वाले शास्त्रीय शब्दों का काव्य में प्रयोग होने पर अप्रतीतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।
- यहां विष शब्द का प्रयोग जल के लिए होता है, जो सामान्यतः लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता अतः अप्रतीतत्व दोष है।
अश्लीलत्व दोष-
- जहाँ किसी काव्य में घृणास्पद, अभद्र तथा असंस्कृत शब्दों का प्रयोग होता है जिनके कारण काव्य में भद्दापन आ जाता है। वहाँ अश्लीलत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- रावण के दरबार में थिर अंग का पाद।
- इस पंक्ति में ‘पाद’ शब्द का अर्थ पैर है किन्तु यह अपान वायु के लिए भी प्रयुक्त होता है।
- इसे पढ़ने से घृणा का भाव पैदा होता है।
Additional Informationकाव्य दोष-
- गुण के विरोधी तत्वों को दोष कहते है।
- मुख्यार्थ में बाधा पहुँचाने वाले कारकों को काव्य-दोष कहते हैं।
- काव्य-दोष रसानुभूति में बाधा उत्पन्न करने तथा काव्योद्देश्य में व्यवधान पैदा करने वाले तत्वों को कहते हैं।
आचार्य भरत ने काव्य दोषों की संख्या कितनी मानी है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDF"आचार्य भरत" ने काव्य दोषों की संख्या दस मानी है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (3) दस सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं।
- आचार्य भरत ने काव्य दोषों की संख्या 10 मानी है।
- आचार्य भरत के काव्य दोष निम्नलिखित हैं:-
- गूढार्थ, अर्थांतर, अर्थहीन, भिन्नार्थ ,एकार्थ, अनिप्लुतार्थ, न्यायोपेत, विषम, विसन्धि तथा शब्दच्युत।
- काव्य के मुख्यार्थ में बाधा उत्पन्न करने वाले तत्वों को आचार्यों ने काव्य-दोष कहा है-‘मुख्यार्थ-हति दोषः।
- भामह, वामन, मम्मट आदि सभी आचार्यों ने काव्य-दोष पर विचार किया है।
- वामन के अनुसार काव्य-सौन्दर्य को क्षति पहुँचाने वाले तत्व काव्य-दोष होते हैं।
- ‘काव्य-प्रकाश’ के रचयिता आचार्य मम्मट कहते हैं कि "मुख्यार्थ का अपकर्ष करने वाले तत्व", काव्य-दोष हैं।
- काव्य का उद्देश्य रसानुभूति है। इसमें बाधा आने से मुख्यार्थ का अपकर्ष होता है।
- आचार्य वामन दोषों की संख्या चार मानते हैं।
- साहित्य दर्पण में कविराज विश्वनाथ में काव्य दोषों को पांच भागों में विभक्त किया है।
लोक या शास्त्र के विरुद्ध पदक्रम होने पर कौन सा काव्य दोष होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFलोक या शास्त्र के विरुद्ध पदक्रम होने पर 'दुष्कमत्व' काव्य दोष होता है।
Key Points
- काव्य रस के आस्वादन मे बाधा पहुँचाने वाले तत्व काव्य दोष कहलाते है।
- आचार्य मम्मट ने काव्य के तीन दोष माने है।
काव्य दोष | काव्य दोष की संख्या |
शब्द दोष | 37 |
अर्थदोष | 23 |
रस दोष | 10 |
Additional Information
दोष | परिभाषा | उदाहरण |
ग्राम्यत्व | काव्य में जहाँ ग्रामीण शब्दों का प्रयोग हो, वहाँ ग्राम्यत्व दोष होता है। |
कैसे कहते हो इस दुआर पर फिर कभी न आना। (इसमें दुआर ग्रा मीण शब्द है, इसलिए ग्राम्यत्व दोष है।) |
अप्रतीतत्व | जब काव्य में किसी विशेष शास्त्र के परिभााषिक शब्द का प्रयोग किया जाए , वहाँ अप्रतीत्व दोष है। |
बहुत देखे तेरे यह अनुभाव। ( इमसे अनुभाव साहित्य शास्त्र का पारिभाषिक शब्द है , जिसका अर्थ आश्रय की चेस्टाएं है।) |
अक्रमत्व | यह एक शब्द दोष है काव्य के शब्द प्रयोग में व्यतिक्रम (बाधा) हो जाना है अक्रमत्व दोष है। |
क्यों नहीं करुणा तुम्हारी छलकती है मूक। ( यहाँ मूक शब्द करुणा का विशेषण है , जो पद के अंत में रखा हुआ है।) |
जहाँ ऐसे शब्दों का प्रयोग हो जो किसी शास्त्र में प्रसिद्ध होने पर भी लोक व्यवहार में अप्रसिद्ध हों, वहाँ कौन सा काव्य दोष होता है?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDFजहाँ ऐसे शब्दों का प्रयोग हो जो किसी शास्त्र में प्रसिद्ध होने पर भी लोक व्यवहार में अप्रसिद्ध हों, वहाँ अप्रतीतत्व काव्य दोष होता है।
Key Pointsअप्रतीतत्व दोष-
- लोक व्यवहार में न प्रयुक्त होने वाले शास्त्रीय शब्दों का काव्य में प्रयोग होने पर अप्रतीतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।
- यहां विष शब्द का प्रयोग जल के लिए होता है, जो सामान्यतः लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता अतः अप्रतीतत्व दोष है।
Important Pointsक्लिष्टत्व दोष-
- क्लिष्टत्व शब्द का अर्थ है-कठिन अथवा दुर्बोध होना ।
- काव्य में जहां सरल एवं सुबोध शब्दों का प्रयोग ना करके कठिन और दुर्बोध शब्दों का प्रयोग किया जाता है वहां क्लिष्टतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- कहत कत परदेशी की बात।
मन्दिर अरध अवधि बदि हमसौं हरि अहार चलि जात ॥
वेद, नखत, ग्रह जोरि अरध करि सोई बनत अब खाता ॥ - यह सूरदास का कूट पद है,इसके अर्थ ग्रहण करने में कठिनाई होती है,इसलिए यहाँ क्लिष्टत्व दोष है।
- कहत कत परदेशी की बात।
दुष्क्रमत्व दोष-
- जब क्रम शास्त्र अथवा लोक की वजह से दूषित या अनुचित हो,वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- 'राजन देहु तुरंग मोहि, अथवा देहु मतंग।'
- यहाँ मतंग तुरंग की अपेक्षा अधिक मूल्यवान होता है।
- अतः पहले मांग मतंग की होनी चाहिए जो तुरंग नहीं देगा वह मतंग क्या देगा।
- अतः यहाँ दुष्क्रमत्व दोष है ।
ग्राम्यत्व दोष-
- जहाँ साहित्यिक भाषा में गँवारू शब्दों का प्रयोग किया जाता,वहाँ ग्राम्यत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- वाह रे अकबरा, तेरे जे जे ठाठ।
नीचे दरी और ऊपर खाट॥ - यहाँ बादशाह अकबर को ‘अकबरा’, राजसिंहासन को ‘खाट’ तथा कालीन को ‘दरी’ कहने से ग्राम्यत्व दोष है।
- वाह रे अकबरा, तेरे जे जे ठाठ।
Additional Informationकाव्य दोष-
- जिस तत्व के कारण कविता के अर्थ को समझने में बाधा उत्पन्न होती है और काव्य-सौन्दर्य का अपकर्ष होता है, उसको काव्य-दोष कहते हैं।
लक्षण ग्रंथ का अर्थ है-
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDF- सही उत्तर - काव्यांग विवेचन
- लक्षण ग्रंथ रीतिकाल में सर्वाधिक लिखे गये।
- इनमें काव्य के लक्षण अथवा अंगों का परिचय एवं प्रयोग होता था।
- रीतिकाल के कवि आचार्य और कवि दोनों थे।
Important Points
- महत्वपूर्ण लक्षण ग्रंथ - कवि प्रिया, रसिकप्रिया आदि
- नायिका भेद (नायिका के सौंदर्य का वर्णन), काव्य के गुण दोष, रस निष्पत्ति (रस की महत्ता) - काव्यांग विवेचन के अंतर्गत ही आते हैं।
- लक्षण ग्रंथ काव्य शास्त्र से सबंधित होते हैं।
राजन् ! देहु तुरंग मोहि, अथवा देहु मतंग' इस पंक्ति में कौन सा काव्य दोष है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFराजन! देहु तुरंग मोहि अथवा देहु मतंग में दुष्क्रमत्व दोष है।
- याचक को पहले हाथी मांगना चाहिए और फिर हाथी न मिलने पर घोडे की याचना करनी चाहिए, किन्तु यहां पहले 'हय' अर्थात् घोडे की और तदुपरान्त हाथी की याचना करके लोक विरुद्ध क्रम रखा गया है अतः दुष्क्रमत्व दोष है।
दुष्क्रमत्व दोष
- जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
अन्य उदाहरण-
- "मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।"
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
- मन का वेग मारुत तथा खगराज के वेग से अधिक होने के कारण उसको सबसे अंत में रखा जाना चाहिए।
क्लिष्टत्व दोष
- जहाँ किसी शब्द का अर्थ आसानी से समझ में न आये वहाँ किलष्टत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- कहत कत परदेशी की बात।
- मन्दिर अरध अवधि बदि हमसौं हरि अहार चलि जात ॥
- वेद, नखत, ग्रह जोरि अरध करि सोई बनत अब खाता।
अक्रमत्व दोष
- जब वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक नहीं होता वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
- यह दोष विभक्ति चिह्नों, अव्यय, उपसर्ग आदि क्रम भंग होने से होता है।
- उदाहरण-
- "ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।"
- इस पंक्ति में ‘देना’ शब्द ‘दिखला’ शब्द के पश्चात् आना चाहिए अत: इसमें अक्रमत्व दोष है।
- "ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।"
अप्रतीतत्व दोष
- लोक व्यवहार में न प्रयुक्त होने वाले शास्त्रीय शब्दों का काव्य में प्रयोग होने पर अप्रतीतत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।"
- यहां विष शब्द का प्रयोग जल के लिए होता है, जो सामान्यतः लोक व्यवहार में प्रयुक्त नहीं होता अतः अप्रतीतत्व दोष है।
- "विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत।"
सुमेलित कीजिए :
(क) | कृपादृष्टि हो जाए तो बन जाएँ सब काम। | (i) | दुष्क्रमत्व दोष |
(ख) | लपटी पुष्प पराग रज, सनी स्वेद मकरंद। | (ii) | अक्रमत्व दोष |
(ग) | विश्व में मिलते नहीं हैं, वीर भीम समान के। | (iii) | अधिकपदत्व दोष |
(घ) | नृप मो को हय दीजिये, अथवा मत्त गजेन्द्र। | (iv) | न्यूनपदत्व दोष |
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDFसही सुमेलन हैं-
कृपादृष्टि हो जाए तो बन जाएँ सब काम। | न्यूनपदत्व दोष |
लपटी पुष्प पराग रज, सनी स्वेद मकरंद। | अधिकपदत्व दोष |
विश्व में मिलते नहीं हैं, वीर भीम समान के। | अक्रमत्व दोष |
नृप मो को हय दीजिये, अथवा मत्त गजेन्द्र | दुष्क्रमत्व दोष |
Key Pointsअधिकपदत्व दोष-
- जहाँ काव्य में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग किया जाए, वहाँ अधिक पदत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- पुष्प पराग से रंगकर भ्रमर गुंजारता है।
- उपर्युक्त पंक्ति में ‘पुष्प’ शब्द को हटा देने पर भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है। ‘पुष्प’ का प्रयोग अधिक होने के कारण अधिकपदत्व दोष है।
न्यूनपदत्व दोष-
- जहाँ अभीष्ट अर्थ को सूचित करने वाले पद की कमी हो और अर्थ को स्पष्ट करने के लिए कोई शब्द जोडना पड़े, वहाँ न्यून पदत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "पानी, पावक पवन प्रभु ज्यों असाधु त्यों साधु।"
- पानी, पावक पवन और प्रभु साधु और असाधु के साथ समान व्यवहार करते हैं- कवि यह कहना चाहता है, किन्तु समान व्यवहार शब्द को यहां छोड़ दिया गया है जिससे अर्थ में बाधा उत्पन्न हो रही है, अतः न्यून पदत्व दोष है।
अक्रमत्व दोष-
- जहाँ कोई पद उचित स्थान पर प्रयुक्त न होकर अनुचित स्थान पर प्रयुक्त हो और उसका क्रम जोडने में कठिनाई हो, वहाँ अक्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- विश्व में लीला निरन्तर कर रहे हैं मानवी।
- यहां मानवी शब्द लीला से पहले प्रयुक्त होना चाहिए। वे प्रभु इस संसार में निरन्तर मानवी लीला कर रहे हैं।
दुष्क्रमत्व दोष-
- जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
- उदाहरण-
- "मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।"
- उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है।
काव्य दोष Question 15:
'सब कोऊ जानत तुम्हें सारे जगत जहान' - इस वाक्य में कौन-सा काव्य-दोष है ?
Answer (Detailed Solution Below)
काव्य दोष Question 15 Detailed Solution
- 'सब कोऊ जानत तुम्हें सारे जगत जहान में पुनरूक्ति दोष है।
- काव्य में गुण के विरोधी तत्व को दोष कहते हैं।
Key Points
- जिसके द्वारा किसी उक्ति के मुख्यार्थ को समझने में किसी प्रकार की रूकावट पड़ती हो , उसे दोष कहते हैं।
- काव्य दोष के पांच भेद भी माने गए हैं - शब्द दोष , छंद दोष , रस दोष , अर्थ दोष और वाक्य दोष।