पाठ बोधन MCQ Quiz - Objective Question with Answer for पाठ बोधन - Download Free PDF

Last updated on Jun 11, 2025

Latest पाठ बोधन MCQ Objective Questions

पाठ बोधन Question 1:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

फल निकट आने पर किसका उत्साह बढ़ जाता है ?

  1. जो उत्साह से काम करते हैं
  2. जो बेमन से काम करते हैं
  3. जो कर्मासक्त भाव से काम करते हैं
  4. जो फल की कामना से काम करते हैं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : जो उत्साह से काम करते हैं

पाठ बोधन Question 1 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "जो फल की कामना से काम करते हैं होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • जो लोग फल की कामना से काम करते हैं, उनका उत्साह फल के निकट आने पर बढ़ जाता है।
  • यह उत्साह फल की प्राप्ति की निकटता पर निर्भर करता है, और फल के दूर होने पर उनका उत्साह कम हो जाता है।
  • इसलिए, सही उत्तर "जो फल की कामना से काम करते हैं" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
जो उत्साह से काम करते हैं -
  • गद्यांश में "उत्साह से काम करने" का सामान्य उल्लेख नहीं है; यह विशेष रूप से फल की कामना या कर्त्तव्य भाव पर केंद्रित है।
जो बेमन से काम करते हैं -
  • गद्यांश में बेमन से काम करने वालों का कोई उल्लेख नहीं है।
जो कर्मासक्त भाव से काम करते हैं -
  • कर्मासक्त भाव से काम करने वाले (कर्त्तव्य भाव से) फल की कामना नहीं करते, और उनका उत्साह स्थिर रहता है, न कि फल के निकट आने पर बढ़ता है।

पाठ बोधन Question 2:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

उद्देश्य की प्राप्ति न होने पर कौन दुःखी होता है ?

  1. मेहनती मनुष्य
  2. उत्साही मनुष्य
  3. आलसी मनुष्य
  4. लोभी मनुष्य

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : लोभी मनुष्य

पाठ बोधन Question 2 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "लोभी मनुष्य होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • गद्यांश में स्पष्ट उल्लेख है कि लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य की प्राप्ति न होने पर दुःख होता है।
  • लोभयुक्त उत्साह वास्तव में सच्चा उत्साह नहीं है, बल्कि यह लोभ है, जो असफलता पर दुःख का कारण बनता है।
  • इसलिए, सही उत्तर "लोभी मनुष्य" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
मेहनती मनुष्य -
  • गद्यांश में मेहनती मनुष्य का उल्लेख नहीं है, और यह स्पष्ट नहीं है कि वे उद्देश्य की अप्राप्ति पर दुःखी होते हैं।
उत्साही मनुष्य -
  • सच्चे उत्साही मनुष्य, जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, असफलता पर दुःखी नहीं होते।
आलसी मनुष्य -
  • गद्यांश में आलसी मनुष्य का कोई उल्लेख नहीं है।

पाठ बोधन Question 3:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा

  1. उत्साह
  2. कर्म और लोभ
  3. कर्त्तव्य
  4. असफलता और सफलता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : उत्साह

पाठ बोधन Question 3 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "उत्साह होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • गद्यांश का मुख्य विषय उत्साह है, जिसमें सच्चे उत्साह (कर्त्तव्य भाव से प्रेरित) और लोभयुक्त उत्साह (फल की कामना से प्रेरित) की तुलना की गई है।
  • यह बताया गया है कि सच्चा उत्साह वही है जो असफलता या सफलता से प्रभावित नहीं होता।
  • इसलिए, गद्यांश का सबसे उपयुक्त शीर्षक "उत्साह" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
कर्म और लोभ -
  • यह शीर्षक गद्यांश के एक हिस्से को दर्शाता है, लेकिन उत्साह पर केंद्रित समग्र विषय को पूरी तरह नहीं समेटता।
कर्त्तव्य -
  • कर्त्तव्य गद्यांश का एक पहलू है, लेकिन यह उत्साह के व्यापक विषय को नहीं दर्शाता।
असफलता और सफलता -
  • यह शीर्षक गद्यांश के परिणामों को दर्शाता है, लेकिन मुख्य रूप से उत्साह पर केंद्रित नहीं है।

पाठ बोधन Question 4:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

सफल या असफल होने पर किसके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता

  1. मेहनती मनुष्य में
  2. सच्चे उत्साही में
  3. लोभयुक्त उत्साही में
  4. फलासक्त उत्साही में

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : सच्चे उत्साही में

पाठ बोधन Question 4 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "सच्चे उत्साही में होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • सच्चे उत्साही वे हैं जो फल की इच्छा न रखकर केवल कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, और उनके उत्साह में सफलता या असफलता से कोई अंतर नहीं आता।
  • उनका उत्साह सदा एक-सा रहता है, क्योंकि वे काम को ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं।
  • इसलिए, सही उत्तर "सच्चे उत्साही में" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
मेहनती मनुष्य में -
  • गद्यांश में मेहनती मनुष्य का उल्लेख नहीं है, और यह स्पष्ट नहीं है कि उनका उत्साह स्थिर रहता है या नहीं।
लोभयुक्त उत्साही में -
  • लोभयुक्त उत्साही का उत्साह फल पर निर्भर करता है, इसलिए असफलता पर उनके उत्साह में कमी आती है।
फलासक्त उत्साही में -
  • फलासक्त उत्साही भी फल की कामना से प्रेरित होते हैं, और असफलता पर उनके उत्साह में अंतर आता है।

पाठ बोधन Question 5:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

किन लोगों को अपनी असफलता पर दुःख नहीं होता ?

  1. जो फल की कामना से काम करते हैं
  2. जो मनोरंजन के लिए काम करते हैं
  3. जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं
  4. जो मज़बूरी में काम करते हैं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : जो फल की कामना से काम करते हैं

पाठ बोधन Question 5 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, उन्हें असफलता पर दुःख नहीं होता।
  • उनका उत्साह सदा एक-सा रहता है, क्योंकि वे काम को ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं।
  • इसलिए, सही उत्तर "जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
जो फल की कामना से काम करते हैं -
  • ये लोग असफलता पर दुःखी होते हैं, क्योंकि उनका उत्साह फल पर निर्भर करता है।
जो मनोरंजन के लिए काम करते हैं -
  • गद्यांश में मनोरंजन के लिए काम करने वालों का उल्लेख नहीं है।
जो मज़बूरी में काम करते हैं -
  • गद्यांश में मज़बूरी में काम करने वालों के बारे में कोई चर्चा नहीं है।

Top पाठ बोधन MCQ Objective Questions

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

फल निकट आने पर किसका उत्साह बढ़ जाता है ?

  1. जो उत्साह से काम करते हैं
  2. जो बेमन से काम करते हैं
  3. जो कर्मासक्त भाव से काम करते हैं
  4. जो फल की कामना से काम करते हैं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : जो उत्साह से काम करते हैं

पाठ बोधन Question 6 Detailed Solution

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इसका सही उत्तर "जो फल की कामना से काम करते हैं होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • जो लोग फल की कामना से काम करते हैं, उनका उत्साह फल के निकट आने पर बढ़ जाता है।
  • यह उत्साह फल की प्राप्ति की निकटता पर निर्भर करता है, और फल के दूर होने पर उनका उत्साह कम हो जाता है।
  • इसलिए, सही उत्तर "जो फल की कामना से काम करते हैं" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
जो उत्साह से काम करते हैं -
  • गद्यांश में "उत्साह से काम करने" का सामान्य उल्लेख नहीं है; यह विशेष रूप से फल की कामना या कर्त्तव्य भाव पर केंद्रित है।
जो बेमन से काम करते हैं -
  • गद्यांश में बेमन से काम करने वालों का कोई उल्लेख नहीं है।
जो कर्मासक्त भाव से काम करते हैं -
  • कर्मासक्त भाव से काम करने वाले (कर्त्तव्य भाव से) फल की कामना नहीं करते, और उनका उत्साह स्थिर रहता है, न कि फल के निकट आने पर बढ़ता है।

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

उद्देश्य की प्राप्ति न होने पर कौन दुःखी होता है ?

  1. मेहनती मनुष्य
  2. उत्साही मनुष्य
  3. आलसी मनुष्य
  4. लोभी मनुष्य

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : लोभी मनुष्य

पाठ बोधन Question 7 Detailed Solution

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इसका सही उत्तर "लोभी मनुष्य होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • गद्यांश में स्पष्ट उल्लेख है कि लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य की प्राप्ति न होने पर दुःख होता है।
  • लोभयुक्त उत्साह वास्तव में सच्चा उत्साह नहीं है, बल्कि यह लोभ है, जो असफलता पर दुःख का कारण बनता है।
  • इसलिए, सही उत्तर "लोभी मनुष्य" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
मेहनती मनुष्य -
  • गद्यांश में मेहनती मनुष्य का उल्लेख नहीं है, और यह स्पष्ट नहीं है कि वे उद्देश्य की अप्राप्ति पर दुःखी होते हैं।
उत्साही मनुष्य -
  • सच्चे उत्साही मनुष्य, जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, असफलता पर दुःखी नहीं होते।
आलसी मनुष्य -
  • गद्यांश में आलसी मनुष्य का कोई उल्लेख नहीं है।

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा

  1. उत्साह
  2. कर्म और लोभ
  3. कर्त्तव्य
  4. असफलता और सफलता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : उत्साह

पाठ बोधन Question 8 Detailed Solution

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इसका सही उत्तर "उत्साह होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • गद्यांश का मुख्य विषय उत्साह है, जिसमें सच्चे उत्साह (कर्त्तव्य भाव से प्रेरित) और लोभयुक्त उत्साह (फल की कामना से प्रेरित) की तुलना की गई है।
  • यह बताया गया है कि सच्चा उत्साह वही है जो असफलता या सफलता से प्रभावित नहीं होता।
  • इसलिए, गद्यांश का सबसे उपयुक्त शीर्षक "उत्साह" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
कर्म और लोभ -
  • यह शीर्षक गद्यांश के एक हिस्से को दर्शाता है, लेकिन उत्साह पर केंद्रित समग्र विषय को पूरी तरह नहीं समेटता।
कर्त्तव्य -
  • कर्त्तव्य गद्यांश का एक पहलू है, लेकिन यह उत्साह के व्यापक विषय को नहीं दर्शाता।
असफलता और सफलता -
  • यह शीर्षक गद्यांश के परिणामों को दर्शाता है, लेकिन मुख्य रूप से उत्साह पर केंद्रित नहीं है।

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

सफल या असफल होने पर किसके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता

  1. मेहनती मनुष्य में
  2. सच्चे उत्साही में
  3. लोभयुक्त उत्साही में
  4. फलासक्त उत्साही में

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : सच्चे उत्साही में

पाठ बोधन Question 9 Detailed Solution

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इसका सही उत्तर "सच्चे उत्साही में होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • सच्चे उत्साही वे हैं जो फल की इच्छा न रखकर केवल कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, और उनके उत्साह में सफलता या असफलता से कोई अंतर नहीं आता।
  • उनका उत्साह सदा एक-सा रहता है, क्योंकि वे काम को ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं।
  • इसलिए, सही उत्तर "सच्चे उत्साही में" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
मेहनती मनुष्य में -
  • गद्यांश में मेहनती मनुष्य का उल्लेख नहीं है, और यह स्पष्ट नहीं है कि उनका उत्साह स्थिर रहता है या नहीं।
लोभयुक्त उत्साही में -
  • लोभयुक्त उत्साही का उत्साह फल पर निर्भर करता है, इसलिए असफलता पर उनके उत्साह में कमी आती है।
फलासक्त उत्साही में -
  • फलासक्त उत्साही भी फल की कामना से प्रेरित होते हैं, और असफलता पर उनके उत्साह में अंतर आता है।

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

किन लोगों को अपनी असफलता पर दुःख नहीं होता ?

  1. जो फल की कामना से काम करते हैं
  2. जो मनोरंजन के लिए काम करते हैं
  3. जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं
  4. जो मज़बूरी में काम करते हैं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : जो फल की कामना से काम करते हैं

पाठ बोधन Question 10 Detailed Solution

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इसका सही उत्तर "जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, उन्हें असफलता पर दुःख नहीं होता।
  • उनका उत्साह सदा एक-सा रहता है, क्योंकि वे काम को ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं।
  • इसलिए, सही उत्तर "जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
जो फल की कामना से काम करते हैं -
  • ये लोग असफलता पर दुःखी होते हैं, क्योंकि उनका उत्साह फल पर निर्भर करता है।
जो मनोरंजन के लिए काम करते हैं -
  • गद्यांश में मनोरंजन के लिए काम करने वालों का उल्लेख नहीं है।
जो मज़बूरी में काम करते हैं -
  • गद्यांश में मज़बूरी में काम करने वालों के बारे में कोई चर्चा नहीं है।

पाठ बोधन Question 11:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

फल निकट आने पर किसका उत्साह बढ़ जाता है ?

  1. जो उत्साह से काम करते हैं
  2. जो बेमन से काम करते हैं
  3. जो कर्मासक्त भाव से काम करते हैं
  4. जो फल की कामना से काम करते हैं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : जो उत्साह से काम करते हैं

पाठ बोधन Question 11 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "जो फल की कामना से काम करते हैं होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • जो लोग फल की कामना से काम करते हैं, उनका उत्साह फल के निकट आने पर बढ़ जाता है।
  • यह उत्साह फल की प्राप्ति की निकटता पर निर्भर करता है, और फल के दूर होने पर उनका उत्साह कम हो जाता है।
  • इसलिए, सही उत्तर "जो फल की कामना से काम करते हैं" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
जो उत्साह से काम करते हैं -
  • गद्यांश में "उत्साह से काम करने" का सामान्य उल्लेख नहीं है; यह विशेष रूप से फल की कामना या कर्त्तव्य भाव पर केंद्रित है।
जो बेमन से काम करते हैं -
  • गद्यांश में बेमन से काम करने वालों का कोई उल्लेख नहीं है।
जो कर्मासक्त भाव से काम करते हैं -
  • कर्मासक्त भाव से काम करने वाले (कर्त्तव्य भाव से) फल की कामना नहीं करते, और उनका उत्साह स्थिर रहता है, न कि फल के निकट आने पर बढ़ता है।

पाठ बोधन Question 12:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

उद्देश्य की प्राप्ति न होने पर कौन दुःखी होता है ?

  1. मेहनती मनुष्य
  2. उत्साही मनुष्य
  3. आलसी मनुष्य
  4. लोभी मनुष्य

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : लोभी मनुष्य

पाठ बोधन Question 12 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "लोभी मनुष्य होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • गद्यांश में स्पष्ट उल्लेख है कि लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य की प्राप्ति न होने पर दुःख होता है।
  • लोभयुक्त उत्साह वास्तव में सच्चा उत्साह नहीं है, बल्कि यह लोभ है, जो असफलता पर दुःख का कारण बनता है।
  • इसलिए, सही उत्तर "लोभी मनुष्य" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
मेहनती मनुष्य -
  • गद्यांश में मेहनती मनुष्य का उल्लेख नहीं है, और यह स्पष्ट नहीं है कि वे उद्देश्य की अप्राप्ति पर दुःखी होते हैं।
उत्साही मनुष्य -
  • सच्चे उत्साही मनुष्य, जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, असफलता पर दुःखी नहीं होते।
आलसी मनुष्य -
  • गद्यांश में आलसी मनुष्य का कोई उल्लेख नहीं है।

पाठ बोधन Question 13:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक होगा

  1. उत्साह
  2. कर्म और लोभ
  3. कर्त्तव्य
  4. असफलता और सफलता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : उत्साह

पाठ बोधन Question 13 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "उत्साह होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • गद्यांश का मुख्य विषय उत्साह है, जिसमें सच्चे उत्साह (कर्त्तव्य भाव से प्रेरित) और लोभयुक्त उत्साह (फल की कामना से प्रेरित) की तुलना की गई है।
  • यह बताया गया है कि सच्चा उत्साह वही है जो असफलता या सफलता से प्रभावित नहीं होता।
  • इसलिए, गद्यांश का सबसे उपयुक्त शीर्षक "उत्साह" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
कर्म और लोभ -
  • यह शीर्षक गद्यांश के एक हिस्से को दर्शाता है, लेकिन उत्साह पर केंद्रित समग्र विषय को पूरी तरह नहीं समेटता।
कर्त्तव्य -
  • कर्त्तव्य गद्यांश का एक पहलू है, लेकिन यह उत्साह के व्यापक विषय को नहीं दर्शाता।
असफलता और सफलता -
  • यह शीर्षक गद्यांश के परिणामों को दर्शाता है, लेकिन मुख्य रूप से उत्साह पर केंद्रित नहीं है।

पाठ बोधन Question 14:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

सफल या असफल होने पर किसके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता

  1. मेहनती मनुष्य में
  2. सच्चे उत्साही में
  3. लोभयुक्त उत्साही में
  4. फलासक्त उत्साही में

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : सच्चे उत्साही में

पाठ बोधन Question 14 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "सच्चे उत्साही में होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • सच्चे उत्साही वे हैं जो फल की इच्छा न रखकर केवल कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, और उनके उत्साह में सफलता या असफलता से कोई अंतर नहीं आता।
  • उनका उत्साह सदा एक-सा रहता है, क्योंकि वे काम को ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं।
  • इसलिए, सही उत्तर "सच्चे उत्साही में" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
मेहनती मनुष्य में -
  • गद्यांश में मेहनती मनुष्य का उल्लेख नहीं है, और यह स्पष्ट नहीं है कि उनका उत्साह स्थिर रहता है या नहीं।
लोभयुक्त उत्साही में -
  • लोभयुक्त उत्साही का उत्साह फल पर निर्भर करता है, इसलिए असफलता पर उनके उत्साह में कमी आती है।
फलासक्त उत्साही में -
  • फलासक्त उत्साही भी फल की कामना से प्रेरित होते हैं, और असफलता पर उनके उत्साह में अंतर आता है।

पाठ बोधन Question 15:

Comprehension:

निर्देश (प्रश्न संख्या 21 से 25 तक) : निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दिए गए चार विकल्पों में से सही विकल्प का चयन करके उत्तर पत्रक में चिह्नित कीजिए ।

जो पुरुष फल की कामना रखकर काम आरंभ करते हैं, उन्हें फल जब निकट होता है, तब उनका उत्साह बढ़ जाता है और जब उन्हें फल दूर ज्ञात होता है तब उनका उत्साह कम हो जाता है। इस प्रकार उनके उत्साह में निरंतर अंतर आता रहता है। इसके विपरीत जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल काम करने को ही अपना कर्तव्य मानकर काम करने में जुट जाते हैं, उन्हें अपनी असफलता पर कोई दुःख नहीं होता और इस प्रकार उनके उत्साह में कोई अंतर नहीं आता और वह सदा एक-सा रहता है। इसलिए जब फल को चाहने वाले व्यक्ति को असफलता मिलती है तब वह दुःखी होता है और कर्म करने को ही अपना कर्त्तव्य मानकर कर्म करने वाले उत्साही को असफलता मिलती है, वह दुःखी नहीं होता और केवल उसकी वही दशा हो जाती है जो काम आरंभ करते समय थी। इस प्रकार यह निष्कर्ष निकलता है कि दूसरे प्रकार के मनुष्यों का उत्साह ही सच्चा उत्साह है और पहले प्रकार के मनुष्यों का उत्साह वास्तविक उत्साह नहीं है, वह भी एक प्रकार का लोभ कहा जा सकता है। जिस प्रकार लोभी मनुष्य को अपने उद्देश्य के न प्राप्त होने पर दुःख होता है, उसी प्रकार इन लोगों को भी असफल होने पर दुःख की प्राप्ति होती है। अतः इस उत्साह को लोभकहना ही उचित है।

किन लोगों को अपनी असफलता पर दुःख नहीं होता ?

  1. जो फल की कामना से काम करते हैं
  2. जो मनोरंजन के लिए काम करते हैं
  3. जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं
  4. जो मज़बूरी में काम करते हैं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : जो फल की कामना से काम करते हैं

पाठ बोधन Question 15 Detailed Solution

इसका सही उत्तर "जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं होगा
Key Points
गद्यांश के अनुसार,
  • जो पुरुष फल की इच्छा न रखकर केवल कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं, उन्हें असफलता पर दुःख नहीं होता।
  • उनका उत्साह सदा एक-सा रहता है, क्योंकि वे काम को ही अपना कर्त्तव्य मानते हैं।
  • इसलिए, सही उत्तर "जो कर्त्तव्य भाव से काम करते हैं" है।
Additional Information अन्य विकल्प:
जो फल की कामना से काम करते हैं -
  • ये लोग असफलता पर दुःखी होते हैं, क्योंकि उनका उत्साह फल पर निर्भर करता है।
जो मनोरंजन के लिए काम करते हैं -
  • गद्यांश में मनोरंजन के लिए काम करने वालों का उल्लेख नहीं है।
जो मज़बूरी में काम करते हैं -
  • गद्यांश में मज़बूरी में काम करने वालों के बारे में कोई चर्चा नहीं है।
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