व्याकरण MCQ Quiz - Objective Question with Answer for व्याकरण - Download Free PDF
Last updated on Jun 25, 2025
Latest व्याकरण MCQ Objective Questions
व्याकरण Question 1:
‘विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्’ इत्यत्र कः अलङ्कारः?
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 1 Detailed Solution
प्रश्न का हिन्दी अनुवाद – ‘विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्’ यहाँ कौन-सा अलंकार है?
स्पष्टीकरण –
‘विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्’ अर्थात् विद्या रूपी धन सभी धनों में प्रधान है।
- यहाँ विद्या में धन का निषेध रहित आरोप हुआ है। अतः यहाँ रूपक अलङ्कार है।
- लक्षण - "रूपकं रूपितारोपे विषये निरपह्नवे" अर्थात् जहाँ निषेध रहित विषय में उपमेय में उपमान का अभेद कल्पना या भेद रहित आरोप हो, उसे रूपक कहते हैं।
उदाहरण – मुखचन्द्रः भाति। (मुख चन्द्रमा के समान दिखता है।)
अतः यहाँ रूपक सही उत्तर है।
व्याकरण Question 2:
यमकम् इत्यलङ्कार: कदा भवति?
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 2 Detailed Solution
प्रश्न अनुवाद - यमकम्, यह अलंकार कब होता है ?
स्पष्टीकरण -
- स्वरव्यंजन (वर्ण) समूह की आवृत्ति (वर्णसमूहस्य आवृत्तौ) यमक अलंकार में होती है।
- यह शब्दालंकार है। 'यमौ द्वौ समजातौ तत्प्रकृतिर्यमकम्’
- अर्थात् जहाँ समान रूप से दिखाई देने वाले दो शब्द अर्थ की दृष्टि से (प्रकृति की दृष्टि से) भिन्न होते हैं, वहाँ यमक अलंकार होता है।
- यमक का अर्थ होता है - जोड़ा। स्वर और व्यंजनों (वर्णों) के समूह का यहाँ जोड़ा बनता है।
Additional Information
लक्षण -
“सत्यर्थे पृथगर्थायाः स्वरव्यञ्जन संहतेः।
क्रमेण तेनैवावृत्तिर्यमकं विनिगद्यते।”
- अर्थात् जहाँ अर्थयुक्त भिन्न-भिन्न अर्थों के शब्दों की पूर्वक्रम से आवृत्ति होती है, वहाँ यमक अलंकार होता है।
- यहाँ एक वर्णसमूह का अर्थ दूसरे वर्णसमूह से अलग होगा।
- जैसे - ‘समरसमरसोऽयम्’, यहाँ पहले पद ‘समर’ का अर्थ - युद्ध है, द्वितीय पद ‘समरस’ का अर्थ - समानभावयुक्त है।
अत: "वर्णसमूहस्य आवृत्तौ" विकल्प सही है।
व्याकरण Question 3:
'अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तदूपमनघम्' अस्यां पंक्तयाम् अलङ्कारोऽस्ति-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 3 Detailed Solution
प्रश्न की हिन्दी - अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तदूपमनघम्' इस पंक्ति में अलङ्कार है-
स्पष्टीकरण -
अनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै-
रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्।
अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपमनघम्
न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः॥
- अर्थात् यह तो बिना सूँघा फूल है, अनछुआ पत्ता है, अनबिंधा रत्न है, अनचखा शहद है। न जाने कितने संचित पुण्यों के फल जैसी इस शकुन्तला को पता नहीं विधाता ने किसके भाग्य में लिखा है।
- प्रस्तुत श्लोक महाकवि कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक का है।
- शकुन्तला के अछूते सौंदर्य को देखकर दुष्यंत के द्वारा कहा गया यह कथन है।
- जिसको कालिदास ने उपमाओं के द्वारा बड़े ही सुन्दर तरीके से पिरोया है।
- इसीलिये कालिदास को कहा भी जाता है - "उपमा कालिदासस्य"
Key Points
उपमा अलङ्कार -
- जब किसी वस्तु या व्यक्ति की विशेषता दर्शाने के लिए उसकी समानता उस गुण में बढ़ी हुई।
- किसी अन्य वस्तु या व्यक्ति से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।
- जैसे - सीता का मुख चंद्रमा के समान सुंदर है।
- यहाँ पर सीता जी के मुख की तुलना चंद्रमा से की गयी है।
उपमा अलंकार के अंग -
- 1.उपमेय - जिस व्यक्ति या वस्तु की समानता की जाती है।
- 2.उपमान - जिस प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से उपमेय की समानता की जाती है।
- 3.समान धर्म - उपमेय और उपमान में जो गुण समान पाया जाता है।
- 4.वाचक शब्द - जिस शब्द-विशेष से समानता या उपमा का बोध होता है।
उपमा अलंकार के भेद -
- पूर्णोपमा अलंकार - जिस उपमा अलंकार में उसके चारों अंग उपस्थित होते हैं।
- लुप्तोपमा अलंकार - जहां उपमा अलंकार के सभी अंग उपस्थित न हो, उनमें से कोई एक अंग अनुपस्थित हो।
- मालोपमा अलंकार - जहां एक उपमा के कई उपमान हो, जिससे उपमान की एक माला तैयार हो जाए।
व्याकरण Question 4:
अतिशयोक्ति-नामकेऽलङ्कारे भवति ?
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 4 Detailed Solution
प्रश्न का अनुवाद - अतिशयोक्ति नामक अलङ्कार होता है ?
स्पष्टीकरण -
उपमान के द्वारा उपमेय का निगरण करके जो अध्यवसान करना है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
अलंकार -
- 'अलंकार शब्द 'अलम्' और 'कार' के योग से बना है, जिसका अर्थ होता है- आभूषण या विभूषित करनेवाला।
- शब्द और अर्थ दोनों ही काव्य के शरीर माने जाते हैं, अतएव वाक्यों में शब्दगत और अर्थगत चमत्कार बढ़ाने वाले तत्व को ही अलंकार कहा जाता है।
Key Points
अतिशयोक्ति अलङ्कार -
- लक्षण- सिद्धत्वेऽध्यवसायस्यातिशयोक्तिर्निगद्यते।
- अध्यवसाय (clinging to) के सिद्ध होने पर अतिशयोक्ति अलङ्कार कहा जाता है।
- उपमेय (विषय) के निगरणपूर्वक विषय के साथ विषयी अर्थात् उपमान की अभेद प्रतीति को अध्यवसाय कहते हैं।
- विषयी अर्थात् उपमान के द्वारा विषय अर्थात् उपमेय का निगरण करके, दोनों के पारस्परिक अभेद ज्ञान अर्थात् भेदरहित ज्ञान को ही अध्यवसाय कहते हैं तथा इस अध्यवसाय के सिद्ध अर्थात् निश्चित होने पर ही अतिशयोक्ति होती है।
- उदाहरण- मुखं द्वितीयश्चन्द्रः।
- अर्थ - मुख दूसरा चन्द्रमा है।
- अन्विति – प्रस्तुत उदाहरण में मुख को बढ़ा-चढ़ा कर चन्द्रमा कहा गया है, अतः यहाँ उपमान की अभेद प्रतीति होने के कारण यह अतिशयोक्ति अलङ्कार है।
अतः स्पष्ट है की उपमान के द्वारा उपमेय का निगरण करके जो अध्यवसान करना है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।
Additional Information
- उपमानोपमेययोः साधर्म्यम् - उपमान और उपमेय में साधर्म्य।
- उपमेयतः उपमानस्य श्रेष्ठत्वम् - उपमेय से उपमान का श्रेष्ठत्व।
- उपमानस्य सम्भावनमुपमेये - उपमान का संभाव्य उपमेय।
टिपण्णी:
- उपमेय शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है- "जिसके लिए उपमा दी जाए"। जिस व्यक्ति या वस्तु की किसी अन्य से समता या तुलना की जाती है उसे 'उपमेय' कहा जाता है।
- उपमान का शाब्दिक अर्थ है- "जिससे तुलना या समता हो।" जिस प्रसिद्ध व्यक्ति या वस्तु से समानता बताई जाती है या तुलना की जाती है, उसे उपमेय कहा जाता है।
व्याकरण Question 5:
संसारविषवृक्षस्य द्वे एवं रसवत्फले।काव्यामृत - रसास्वादः सङ्गमः सज्जनैः सह'। इति उदाहरण अस्ति
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 5 Detailed Solution
प्रश्नानुवाद - 'संसारविषवृक्षस्य द्वे एवं रसवत्फले।काव्यामृत - रसास्वादः सङ्गमः सज्जनैः सह' - यह एक उदाहरण है।
स्पष्टीकरण -
'संसारविषवृक्षस्य द्वे एवं रसवत्फले।काव्यामृत - रसास्वादः सङ्गमः सज्जनैः सह' - यह एक उदाहरण है रूपक का।
श्लोक -
"संसार विषवृक्षस्य द्वे फले ह्यमृतोमपे ।
सुभाषित रसस्वादः सङ्गतिः सुजनैः सह॥"
अर्थ - संसाररुपी इस विषैले वृक्षपर केवल दो फल अमृत के समान है - १) सुभाषितोंका रस स्वाद २) अच्छे लोगो की संगती।
रूपक अलंकार -
लक्षणम् - "तद्रूपकमभेदो य उपमानोपमेययोः। अत्यन्त सादृश्येन यत्र उपमानोपमेययोः अभेदो जायते तत्र रूपक अलङ्कारः भवति"।
अर्थ - अत्यन्त सादृश्य के कारण यहाँ उपमान और उपमेय में अभेद बताया जाये वहाँ रूपक अलंकार होता है।
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माहेश्वर सूत्रों की संख्या हैं
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 6 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण:- पाणिनी ने अपने अष्टाध्यायी में १४ माहेश्वर सूत्र बताये है। वह इसप्रकार हैं-
१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।
इन माहेश्वर सूत्र को प्रत्याहार सूत्र के साथ 'चतुर्दश सूत्र' से भी जाने जाते है।
अतिरिक्त जानकारी
उत्पत्ति:- एक आख्यायिका के अनुसार पाणिनि को यह सूत्र भगवान शङ्कर से प्राप्त हुए।
नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्।
उद्धर्तुकामः सनकादिसिद्धान् एतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम् ॥
अर्थ:- "नृत्य (ताण्डव) के अवसान (समाप्ति) पर नटराज (शिव) ने सनकादि ऋषियों की सिद्धि और कामना का उद्धार (पूर्ति) के लिये नवपंच (चौदह) बार डमरू बजाया। इस प्रकार चौदह शिवसूत्रों का ये जाल (वर्णमाला) प्रकट हुयी।"
इस तरह से इन माहेश्वर सूत्रोंकी उत्त्पत्ति है। इन्हे शिवसूत्र भी कहते हैं। इन्ही १४ शिवसूत्रोंको पाणिनि ने भगवान शङ्कर से प्राप्त किया और उनसे अष्टाध्यायी के प्रत्याहार बनाये। इसलिए इन सूत्रों को प्रत्याहार विधायक सूत्र भी कहते हैं।
'उच्चरति' शब्द में जुड़ा उपसर्ग है-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 7 Detailed Solution
Download Solution PDFधात रूपों तथा धातुओ से निष्पन्न शब्दरूपों से पूर्व प्रयुक्त होकर उनके अर्थ का परिवर्तन करने वाले शब्दों को उपसर्ग कहते है -
"उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।
प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत्॥"
उदाहरण
उपसर्ग | निर्मित शब्द |
वि | विराम, विश्राम |
परि | परिहार, परिपूर्ण |
प्र | प्रगति, प्रतिष्ठा |
उत् |
उत्थान, उद्घाटन |
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'उच्चरति' पद में "उत्" उपसर्ग प्रयुक्त है।Hintसंस्कृत में कुल 22 उपसर्ग माने गये हैं-
उपसर्ग |
अर्थ |
उदाहरण |
प्र |
प्रकृष्ट |
प्रगति, प्रतिष्ठा |
परा |
निषेध, विपरित |
पराजितं पराभवति |
अप |
न्यूनता या हीनता |
अपकरोति, अपहरति |
सम् |
अच्छा |
संगच्छति, संस्करोति |
अपि | ढ़कना | अप्यस्ति |
अनु |
अनुकरण |
अनुगमनं अनुकरोति |
अव |
निचे |
अवगच्छति, अवजानन्ति |
निर् |
निषेध |
निर्गच्छति, निराकरोति |
निस् |
निषेध |
निष्कारणं, निस्सरति |
दुस् |
कठिन, दुष्कर |
दुष्टः, दुष्प्रयोजन |
दुर् |
कठिन, दुष्कर |
दुर्गति, दुर्बोध्य |
वि |
विशिष्ट |
विजयते, विगत |
आङ् |
सिमा |
आजिवनम्, आकण्ठम् |
नि |
निचे |
निगदति, निपतति |
अधि |
प्रधानता या आधार |
अधिराजते, अधिहरि |
अति |
अतिशय |
अत्यन्त, अत्याचारः |
सु |
अच्छा |
स्वागतं, सुशोभते |
उत् |
ऊँचा |
उत्कर्षं, उत्पतति |
अभि |
समीप |
अभ्यागतः, अभ्यासः |
प्रति |
विपरित |
प्रत्युपकारः, प्रत्यवदत् |
परि |
चारो ओर |
पर्यावरणं, परिवर्तनम् |
उप |
समीप |
उपकार, उपहार |
मातृ शब्द का पंचमी विभक्ति का एकवचन रूप है-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 8 Detailed Solution
Download Solution PDF'मातृ' यह प्रातिपदिक 'ऋकारान्त स्त्रीलिंग शब्द है। इसके विभिन्न विभक्ति-वचन में रूप निम्नलिखित हैं-
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
माता |
मातरौ |
मातरः |
द्वितीया |
मातरम् |
मातरौ |
मातृ |
तृतीया |
मात्रा |
मातृभ्याम् |
मातृभिः |
चतुर्थी |
मात्रे |
मातृभ्याम् |
मातृभ्यः |
पन्चमी |
मातुः |
मातृभ्याम् |
मातृभ्यः |
षष्ठी |
मातुः |
मात्रोः |
मातृणाम् |
सप्तमी |
मातरि |
मात्रोः |
मातृषु |
सम्बोधन |
हे माता! |
हे मातरौ! |
हे मातरः! |
उपर्युक्त सारणी के अनुसार यह स्पष्ट होता है कि 'मातृ' शब्द की पञ्चमी विभक्ति एकवचन में 'मातुः' रूप होता है।
Additional Information
मातृ की तरह दुहितृ, स्वसृ, ननादृ यह कुछ अन्य 'ऋकारान्त' स्त्रीलिंग पद है।
'नदी' शब्द का सप्तमी, एकवचन रूप है
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 9 Detailed Solution
Download Solution PDF‘नदी’ का अर्थ ‘नदी’ या 'सरिता' होता है। ‘नद्याम्’ शब्द रूप – ईकारान्त स्त्रीलिङ्ग सप्तमी एकवचन’ है।
‘नदी’ शब्द का प्रयोग निम्नलिखित है:-
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
नदी |
नद्यौ |
नद्यः |
द्वितीया |
नदीम् |
नद्यौ |
नदीः |
तृतीया |
नद्या |
नदीभ्याम् |
नदीभिः |
चर्तुथी |
नद्यै |
नदीभ्याम् |
नदीभ्यः |
पन्चमी |
नद्याः |
नदीभ्याम् |
नदीभ्यः |
षष्ठी |
नद्याः |
नद्योः |
नदीनाम् |
सप्तमी |
नद्याम् |
नद्योः |
नदीषु |
सम्बोधन |
हे नदि! |
हे नद्यौ! |
हे नद्यः! |
'दास्यति' क्रियापद में लकार है
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 10 Detailed Solution
Download Solution PDFस्पष्टीकरण - 'दास्यति' का अर्थ होता है, 'देगा/देगी' जो भविष्यकाल है।
‘दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-
पुरूष |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमपुरूष |
दास्यति |
दास्यतः |
दास्यन्ति |
मध्यमपुरूष |
दास्यसि |
दास्यथः |
दास्यथ |
उत्तमपुरूष |
दास्यामि |
दास्यावः |
दास्यामः |
अतः स्पष्ट है कि 'दास्यामि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' प्रथम पुरुष एकवचन है।
Hint
लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है।
जैसे - वह पढेगा - सः पठिष्यति।
लृट् लकार क सूत्र = धातु + स्य + लट्लकार प्रत्यय
उदा.
- पठिष्यति = पठ् + स्य + ति
- लेखिष्यति = लिख् + स्य + ति
- भविष्यति = भू-भव् + स्य + ति
- दास्यत्ति = दा + स्य + ति
Additional Information
लकार - संस्कृत में दस लकारों का वर्णन मिलता है -
लकारों के नाम तथा अर्थ -
i)- लट् लकार - 'वर्तमाने लट्' लट् लकार वर्तमान काल अर्थ में होता है। यथा - राम जाता है - रामः गच्छति।
ii)- लोट् लकार - 'आशिषि लिङ् लोटौ' लोट् लकार का प्रयोग विविध अर्थों में होता है -
- आज्ञा - तुम जाओ - त्वं गच्छ।
- प्रार्थना - आप आईये - भवान् आगच्छ।
- अनुमति - मै क्या करू - अहं किं करवाणि।
- आशीर्वाद - दीर्घायु हो - दीर्घायु भव।
iii)- लङ् लकार - 'अनद्यतने लङ्' अनद्यतन भूत काल अर्थ में लङ् लकार का प्रयोग होता है। उसने लिखा - सः अलिखत्।
iv)- विधिलिङ्ग लकार - 'विधिनिमन्त्रणामन्त्रणाधीष्टसंप्रश्नप्रार्थनेषु लिङ्' विधिलिङ्ग लकार का निम्न अर्थों में प्रयोग होता है -
- विधि - सत्य बोलना चाहिए - सत्यं ब्रूयात्।
- छात्राओं को पढना चाहिए - छात्राः पठेयुः।
- निमन्त्रण - आप आज यहाँ भोजन करें - भवान् अद्य अत्र भक्षयेत्।
- आदेश - तुम पुस्तक पढो - त्वं पुस्तकं पठे।
- प्रश्न - मुझे क्या पढना चाहिए - अहं किम् पठेयम्।
- इच्छा अथवा प्रार्थना - तुम सुखी रखो - यूयं सुखी भवेत।
v)- लृट् लकार - 'लृट् शेषे च' सामान्य भविष्य काल के लिए लृट् लकार प्रयुक्त होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिष्यति।
vi)- लुट् लकार - 'अनद्यतने लुट्' लुट् लकार का प्रयोग अनद्यतन भविष्य के लिए होता है। यथा - वह पढेगा - सः पठिता।
vii)- लृङ्लकार - जहाँ एक क्रिया दूसरी क्रिया पर आश्रित होता है वहाँ हेतुमत् भूत काल अर्थात् लृङ् लकार होता है। यथा - यदि वह पढता तो विद्वान् हो जाता - यदि सः अपठिष्यत् तर्हि विद्वान् अभविष्यत्।
viii)- आशीर्लिङ् लकार - आशीर्वाद अर्थ में आशीर्लिङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - वह पढे - सः पठ्यात्।
ix)- लुङ् लकार - सामान्य भूत काल में लुङ् लकार का प्रयोग होता है। यथा - उसने पढा - सः अपाठीत्।
x)- लिट् लकार - 'परोक्षेलिट्' लोट् लकार परोक्ष भूत काल अर्थ में होता है। यथा - उसने पढा - सः पपाठ।
'दा' धातु के लृट लकार, मध्यम पुरुष, एकवचन में रूप बनता है-
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 11 Detailed Solution
Download Solution PDF‘दा’ धातु से ‘लृट् लकार’ के विविध वचनों और पुरूषों में प्राप्त रूप इस प्रकार है-
पुरूष |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमपुरूष |
दास्यति |
दास्यतः |
दास्यन्ति |
मध्यमपुरूष |
दास्यसि |
दास्यथः |
दास्यथ |
उत्तमपुरूष |
दास्यामि |
दास्यावः |
दास्यामः |
अतः स्पष्ट है कि 'दास्यसि' इस पद में मूलधातु 'दा' धातु का 'लृट् लकार' मध्यम पुरुष एकवचन है।
'गाः' पद में विभक्ति वचन है
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 12 Detailed Solution
Download Solution PDF‘गाः’ का अर्थ होता है गायों को, ओकारान्त 'गो' शब्द का यह द्विवचन रूप है।
ओकारान्त ‘गो’ शब्द का विभिन्न विभक्तियों और वचनों में रूप चलता है -
ओकारान्त ‘गो’ शब्द | |||
विभक्ति |
एकवचन |
द्विवचन |
बहुवचन |
प्रथमा |
गौः |
गावौ |
गावः |
द्वितीया |
गाम् |
गावौ |
गाः |
तृतीया |
गवा |
गोभ्याम् |
गोभिः |
चर्तुथी |
गवे |
गोभ्याम् |
गोभ्यः |
पन्चमी |
गोः |
गोभ्याम् |
गोभ्यः |
षष्ठी |
गोः |
गवोः |
गवाम् |
सप्तमी |
गवि |
गवोः |
गोषु |
सम्बोधन |
हे गौः! |
हे गावौ! |
हे गावः! |
अव्यय शब्द-समूह हैं
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 13 Detailed Solution
Download Solution PDFअव्यय वह शब्द होते है जिनका कभी व्यय नहीं होता। लिंग वचन कारक आदि सम्बंधित परिवर्तन अव्ययों में नहीं होते। इस तरह से अव्यय अविकारी होते है और नाम, सर्वनाम, विशेषण आदि विकारी होते है।
सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु।
वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्येति तदव्ययम्॥
(अर्थ:- तीनों लिंगों में, सभी विभक्तियों और सभी वचनों में जो समान ही रहता है, रूप में परिवर्तन नहीं होता, वह अव्यय होता है।)
Important Points
विकल्पोंका स्पष्टीकरण:-
- सा, ते, युयम्- ये सर्वनाम हैं।
- अत्र, तत्र, तस्य- अत्र, तत्र अव्यय और तस्य सर्वनाम है।
- सर्वत्र, अधुना, उपरि- ये सभी अव्यय हैं ।
- नमः, सह, जेष्ठः- नमः, सह अव्यय और जेष्ठः सर्वनाम है।
अतः यह स्पष्ट है कि 'सर्वत्र, अधुना, उपरि' शब्द अव्यय ।
'वसन्तर्तुः' मे कौन सन्धि है?
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 14 Detailed Solution
Download Solution PDF'वसन्तर्तुः' का संधि विच्छेद 'वसन्त + ऋतु:' होगा।
सूत्र- आद् गुणः।
नियम- अ/आ + इ/ई = ए, अ/आ + उ/ऊ = ओ, अ/आ + ऋ/ॠ = अर्
यहाँ सन्धि- वसन्त + ऋतु = वसन्तर्तुः
Important Points
विकल्पों का स्पष्टीकरण–
स्वर सन्धि |
सूत्र |
नियम |
उदाहरण |
यण् सन्धि |
इको यणचि |
इ/ई + विजातीय स्वर = य् उ/ऊ + विजातीय स्वर = व् |
नदी + अत्र = नद्यत्र मधु + इति = मध्विति पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा |
गुण सन्धि |
आद् गुणः |
अ/आ + इ/ई = ए अ/आ + उ/ऊ = ओ अ/आ + ऋ/ॠ = अर् |
उप + इन्द्र = उपेन्द्र यथा + उचितम् = यथोचितम् देव + ऋषि = देवर्षि |
वृद्धि सन्धि |
वृद्धिरेचि |
अ/आ + ए/ऐ = 'ऐ अ/आ + ओ/औ = औ |
मम + एक = ममैक जल + ओघः = जलौघः |
Additional Information
विशेष–
दो शब्दों के मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है उसे संधि कहते हैं।जैसे-
- विद्या + आलय = विद्यालय।
- रमा + ईश = रमेश
- न + एकः = नैकः
- सम्यक् + ज्ञानम् = सम्यग्ज्ञानम्
संधि के तीन प्रकार हैं - 1. स्वर, 2. व्यंजन और 3. विसर्ग,
संधि |
परिभाषा |
उदाहरण |
स्वर |
स्वर वर्ण के साथ स्वर वर्ण के मेल से विकार उत्पन्न होता है। |
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी महा + ईशः = महेशः |
व्यंजन |
एक व्यंजन से दूसरे व्यंजन या स्वर के मेल से विकार उत्पन्न होता है। |
अहम् + कार = अहंकार उत् + लासः = उल्लास |
विसर्ग |
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के |
दुः + आत्मा = दुरात्मा निः + कपटः = निष्कपटः |
उष्म वर्णों का बोधक प्रत्याहार है -
Answer (Detailed Solution Below)
व्याकरण Question 15 Detailed Solution
Download Solution PDF`शल उष्माणः' सूत्र के अनुसार 'शल्' प्रत्याहार के अन्तर्गत आने वाले 'श्, ष्, स्, ह्' वर्ण उष्म वर्ण होते हैं।
Additional Information
`आदिरन्त्येन सहेता' सूत्र के अनुसार आदि और अंत में 'इत्' से प्रत्याहार बनते है। उदा. 'अच्' में 'अ' से लेकर 'च्' तक के 'इत्' के अलावा के वर्ण आते है। पाणिनि के १४ माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बने है-
१४ माहेश्वर सूत्र:- १. अइउण्। २. ऋऌक्। ३. एओङ्। ४. ऐऔच्। ५. हयवरट्। ६. लण्। ७. ञमङणनम्। ८. झभञ्। ९. घढधष्। १०. जबगडदश्। ११. खफछठथचटतव्। १२. कपय्। १३. शषसर्। १४. हल्।
इन माहेश्वर सूत्रों से अनेकों प्रत्याहार बनते हैं जिनमें कुछ महत्वपूर्ण प्रत्याहार है-
प्रत्याहार:- अण्, अण्, इण्, यण्, अक्, इक्, उक्, एङ्, अच्, इच्, एच्, ऐच्, अट्, अम्, अल्, यम्, ङम्, ञम्, यञ्, झष्, भष्, अश्, हश्, वश्, झश्, जश्, बश्, छव्, यय्, मय्, झय्, खय्, चय्, यर्, झर्, चर्, शर्, हल्, वल्, रल्, झल्। इनमें कुछ प्रमुख इसप्रकार हैं-
- इक्- इ, उ, ऋ, लृ
- यण्- य्, व्, र्, ल्
- अक्- अ, इ, उ, ऋ, लृ
- अच्- सभी स्वर वर्ण- अ, इ, उ, ऋ, लृ, ए, ओ, ऐ, औ
- एच्- ए, ओ, ऐ, औ
- हल्- सभी व्यञ्जन वर्ण आते हैं।
- हश्- वर्गों के तृतीय, चतुर्थ, पञ्चम वर्ण तथा य्, व्, र्, ल् आते हैं।
- जश्- वर्गों के तृतीय वर्ण - ज्, ब्, ग्, ड, द्।
- शल् - श्, ष्, स्, ह्