'किरातार्जुनीयमे' कस्याः रीतेः प्रयोगोऽभवत् ?

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  1. पाञ्चाली 
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  3. वैदर्भी 
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Option 3 : वैदर्भी 
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HTET PGT Official Computer Science Paper - 2019
60 Qs. 60 Marks 60 Mins

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प्रश्न का अनुवाद - किरातार्जुनीयम्  में किस रीती का प्रयोग किया गया है ?
स्पष्टीकरण - किरातार्जुनीयम्  में वैदर्भी रीती का प्रयोग किया गया है। 

Key Points 

  • महाकवि भारवि रचित किरातार्जुनीयम् में अट्ठारह सर्ग हैं। इसकी कथा इतिहास प्रसिद्ध महाभारत की कथा है। काव्य के नायक अर्जुन हैं। इसे एक उत्कृष्ट श्रेणी की काव्यरचना माना जाता है। इनका काल छठी सातवीं शताब्दि बताया जाता है। यह काव्य किरातरूपधारी शिव एवं पांडुपुत्र अर्जुन के बीच के धनुर्युद्ध तथा वाद वार्तालाप पर केंद्रित है।
  • महाभारत के वन पर्व पर आधारित इस महाकाव्य में अट्ठारह सर्ग हैं। भारवि सम्भवतः दक्षिण भारत के कहीं जन्मे थे। उनका रचनाकाल पश्चिमी गंग राजवंश के राजा दुर्विनीत तथा पल्लव राजवंश के राजा सिंहविष्णु के शासनकाल के समय का है।   Important Points
  • कवि ने बड़े से बड़े अर्थ को थोड़े से शब्दों में प्रकट कर अपनी काव्य कुशलता का परिचय दिया है। कोमल भावों का प्रदर्शन भी कुशलतापूर्वक किया गया है। इसकी भाषा उदात्त एवं हृदय भावों को प्रकट करने वाली है। प्रकृति के दृश्यों का वर्णन भी अत्यन्त मनोहारी है। भारवि ने केवल एक अक्षर 'न' वाला श्लोक लिखकर अपनी काव्य चातुरी का परिचय दिया है।
  •  उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट रूप से प्रतीत होता है कि भारवि ने वैदर्भी रीती से काव्य में कला और भाव पक्ष दोनों का ही महत्त्व स्वीकार करते हुये अपने महाकाव्य की रचना की है। भारवि का मत है कि काव्य में शब्द और अर्थ दोनों का ही महत्त्व है, जो बात कही जाय वह निश्चित अर्थ वाली तथा प्रमाणों से युक्त होनी चाहिये। काव्य में जो वारगी कही जावे उसका अर्थ स्पष्ट होना चाहिये और अर्थगौरव भी अपेक्षित होता है। परन्तु पुनरुक्ति नहीं होनी चाहिये। अतः भारवि की काव्यशैली वैदर्भी रीति प्रधान, प्रथंगाम्भीर्य युक्त, शब्दों की समुचित योजना से सुसज्जित प्राञ्जल एवं परिष्कृत है। जिसका परवर्ती कवियों ने अनुकरण किया है।

अतः स्पष्ट है कि , किरातार्जुनीयम्  में वैदर्भी रीती का प्रयोग किया गया है। 

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