Question
Download Solution PDFरामचंद्र शुक्ल ने 'उसने कहा था' कहानी के बारे में लिखा है -
(A) ये कहानियाँ जीवन के बड़े मार्मिक रूप में होती थीं I
(B) उसमें भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है I
(C) दूसरी कोटि की कहानियों में एक बड़ा भारी भेद है I
(D) इसकी घटनाएँ ही बोल रही हैं, पत्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं I
नीचे दिये गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए -
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDFविकल्प 3 (B और D) सही है।
रामचंद्र शुक्ल ने उसने कहा था कहानी के बारे में लिखा है कि -
- इस कहानी के भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है।
- इसकी घटनाएं ही बोल रही है, पत्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।
- शुक्ल ने 'उसने कहा था' कहानी को अद्वितीय कहानी माना है।
- “इसके पक्के यथार्थवाद के बीच, सुरुचि की चरम मर्यादा के भीतर, भावुकता का चरम उत्कर्ष अत्यंत निपुणता के साथ संपुटित है।
- घटना इसकी ऐसी है जैसे बराबर हुआ करती है, पर उसमें भीतर से प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झांक रहा है- केवल झांक रहा है।
उसने कहा था
लेखक :- चंद्रधर शर्मा गुलेरी
पात्र :- लहना सिंह , सूबेदारनी
लहना सिंह ने अपने प्राण देकर बोधा सिंह और हजारा सिंह के प्राण की रक्षा की।
ऐसा लहना सिंह ने सूबेदारनी के मात्र 'उसने कहा था' वाक्य को ध्यान में रखकर प्राणोत्सर्ग किया था।
राम चन्द्र शुक्ल जी के द्वारा कहे गए प्रमुख कथन
- इस वेदना को लेकर उन्होंने ह्रदय की ऐसी अनुभूतियाँ सामने रखीं, जो लोकोत्तर हैं। कहाँ तक वे वास्तविक अनुभूतियाँ हैं और कहाँ तक अनुभूतियों की रमणीय कल्पना, यह नहीं कहा जा सकता।" ౼ आचार्य रामचंद्र शुक्ल (महादेवी वर्मा के बारे में)
- ''इनकी रहस्यवादी रचनाओं को देख चाहेतो यह कहें कि इनकी मधुवर्षा के मानस प्रचार के लिए रहस्यवाद का परदा मिल गया अथवा यों कहें कि इनकी सारी प्रणयानूभूति ससीम पर से कूदकर असीम पर जा रही।'' (जयशंकर प्रसाद के बार में)
- कबीर की अपेक्षा ख़ुसरो का ध्यान की भाषा की ओर अधिक था।
- जायसी के श्रृंगार में मानसिक पक्ष प्रधान है, शारीरिक गौण हैं।
- 'इसमें कोई सन्देह नहीं कि कबीर को राम नाम रामानन्द जी से ही प्राप्त हुआ पर आगे चलकर कबीर के राम रामानन्द से भिन्न हो गए।'
- भारतेन्दु ने जिस प्रकार हिन्दी गद्य की भाषा का परिष्कार किया, उसी प्रकार काव्य की ब्रजभाषा का भी।
- काव्य की पूर्ण अनुभूति के लिए कल्पना का व्यापार कवि और श्रोता दोनों के लिए अनिवार्य है।
- वैर क्रोध का अचार या मुरब्बा है।
- काव्यानुभूति की जटिलता चित्तवृत्तियों की संख्या पर निर्भर नहीं, बल्कि संवादी-विसंवादी वृत्तियों के द्वन्द्व पर आधारित है।
- ‘आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान घटना है।’
- करुणा दुखात्मक वर्ग में आनेवाला मनोविकार है।
- नाद सौन्दर्य से कविता की आयु बढ़ती है।
- भक्ति धर्म की रसात्मक अनुभूति है।
- करुणा सेंत का सौदा नहीं है।
- प्रकृति के नाना रूपों के साथ केशव के हृदय का सामंजस्य कुछ भी न था।'
- 'विरुद्धों का सामंजस्य कर्मश्रेत्र का सौन्दर्य है।'
Last updated on Jul 7, 2025
-> The UGC NET Answer Key 2025 June was released on the official website ugcnet.nta.ac.in on 06th July 2025.
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