परिसीमा अधिनियम, 1963 के प्रयोजनार्थ अकिंचन की दशा में वाद संस्थित होता है; 

  1. जब समुचित कार्यालय में वादपत्र प्रस्तुत किया जाता है।
  2. जब अकिंचन के रूप में वाद लाने की अनुमति का आवेदन किया जाता है।
  3. जब अकिंचन के रूप में वाद लाने की अनुमति का आवेदन पत्र स्वीकार किया जाता है।
  4. उपरोक्त में से कोई नहीं।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : जब अकिंचन के रूप में वाद लाने की अनुमति का आवेदन किया जाता है।

Detailed Solution

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सही उत्तर विकल्प 2 है। Key Points

  • परिसीमा अधिनियम 1963 की धारा 3 परिसीमा निषेध से संबंधित है
  • (1) धारा 4 से धारा 24 (सम्मिलित) में अंतर्विष्ट उपबंधों के अधीन रहते हुए, विहित अवधि के पश्चात् संस्थित किया गया प्रत्येक वाद, प्रस्तुत की गई प्रत्येक अपील और किया गया आवेदन खारिज कर दिया जाएगा, भले ही बचाव के रूप में परिसीमा स्थापित न की गई हो।
  • (2) इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए:
  • (a) कोई वाद संस्थित किया जाता है ,—
    • (i) किसी साधारण मामले में, जब वादपत्र उचित अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है;
    • (ii) किसी प्रयोजनार्थ अकिंचन की दशा में, जब वह अकिंचन के रूप में वाद लाने की अनुमति के लिए आवेदन करता है ; तथा
    • (iii) किसी कंपनी के विरुद्ध दावे के मामले में, जिसका न्यायालय द्वारा परिसमापन किया जा रहा है, जब दावेदार सबसे पहले अपना दावा आधिकारिक परिसमापक के पास भेजता है;
  • (b) मुजरई या प्रतिदावे के माध्यम से कोई भी दावा एक अलग मुकदमा माना जाएगा और उसे संस्थित किया गया माना जाएगा:
    • (i) मुजरे के मामले में, उसी तारीख को जिस दिन वह वाद है जिसमें मुजरे का अभिवचन किया गया है;
    • (ii) प्रतिदावे के मामले में, जिस तारीख को प्रतिदावा न्यायालय में किया गया हो;
  • (c) किसी उच्च न्यायालय में प्रस्ताव की सूचना द्वारा आवेदन तब किया जाता है जब आवेदन उस न्यायालय के समुचित अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।
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