निम्न में कौन-सा स्वरागम उच्चारण दोष का उदाहरण है?

This question was previously asked in
UTET-II 2021 Maths & Science (Hindi-English-Sanskrit)
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  1. 'अमृत' को 'अम्रित' कहना
  2. 'क्षत्रिय' को 'क्षत्री' कहना
  3. 'बृजेन्द्र' को 'बरजेन्दर' कहना
  4. 'स्नान' को 'अस्नान' कहना

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Option 4 : 'स्नान' को 'अस्नान' कहना
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Uttarakhand TET (UTET) CDP Mock Test - 1
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उच्चारण शिक्षण- मुख से अक्षरों को बोलना उच्चारण कहलाता है। सभी वर्णो के लिए मुख में उच्चारण स्थान होते हैं। उच्चारण, भाषा शिक्षण का एक अभिन्न अंग है जो अक्षरों को मुख से बोलने की प्रक्रिया से संबंधित है। उच्चारण शिक्षण का अर्थ केवल ध्वनि अथवा वर्णो के ही उच्चारण मात्र से नहीं अपितु शब्द, वाक्य और भाषा के रागात्मक तत्व आदि से है। उच्चारण करने में उच्चारण सम्बन्धी कई दोष होते है जो निम्नलिखित है -

  • स्वरागम- यथा ‘स्नान’ में ‘अ’ का आगम होकर ‘अस्नान्’, ‘स्कूल’ में ‘इ’ का आगम होकर ‘इस्कूल’।

अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि 'स्नान' को 'अस्नान' कहना स्वरागम उच्चारण दोष का उदाहरण है। 

Additional Information

उच्चारण दोष के प्रकार-

उच्चारण सम्बन्धी दोष अनेक कारणों से होते हैं। क्षेत्र विशेष एवं व्यक्ति विशेष के कारण ये दोष उच्चारण के विकृत स्वरूप को जन्म देते हैं। उच्चारण दोष के कुछ प्रकार नीचे दिये जा रहे हैं:

  • स्वर-लोप- यथा ‘क्षत्रिय’ का ‘छत्री’, ‘परमात्मा’ का ‘प्रमात्मा’, ‘ईश्वर’ का ‘इस्सर’।
  • स्वर-भक्ति- यथा ‘बृजेन्द्र’ को बढ़ाकर ‘बरजेन्दर’, ‘श्री’ को ‘सिरी’, ‘शक्ति’ को ‘सकती’।
  • स्वरागम- यथा ‘स्नान’ में ‘अ’ का आगम होकर ‘अस्नान्’, ‘स्कूल’ में ‘इ’ का आगम होकर ‘इस्कूल’।
  • ऋ का अशुद्ध उच्चारण- यथा ‘अमृत’ का ‘अम्रित’, पंजाब में ‘अम्रत’, मराठी में ‘अम्रत’।
  • इ, उ का ई, ऊ के साथ भ्रम- यथा ‘कवि’ का ‘कवी’, ‘हिन्दू’ का ‘हिन्दु’, ‘ईश्वर का ईसवर’, ‘किन्तु’ का ‘किन्तू’।
  • न और ण का भ्रम- यथा ‘रणभूमि’ का ‘रनभूमि’, ‘प्रणय’ का ‘प्रनय’, ‘कर्ण’ का ‘करन’ आदि।
  • क्ष और छ का भ्रम- यथा लक्ष्मण को लछमन, अक्षर का अछर, क्षत्री का छत्री।
  • श और ष का भ्रम- यथा प्रकाश का प्रकाश, निष्काम का निश्काम।
  • व और व का भ्रम- यथा ‘वन’ (जंगल) का ‘बन’, वचन का ‘बचन’ वसंत का ‘बसंत’।
  • ड और ड़ का भ्रम- जैसे गुड़ का गुड।
  • ढ और ढ़ का भ्रम- यथा पढ़ाई का पढाई, कढ़ाई का कढाई।
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