कारक MCQ Quiz - Objective Question with Answer for कारक - Download Free PDF

Last updated on May 15, 2025

Latest कारक MCQ Objective Questions

कारक Question 1:

'स्वधा' इति पदस्य योगे -

  1. चतुर्थी
  2. द्वितीया
  3. तृतीया
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : चतुर्थी

कारक Question 1 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - 'स्वधा' इस पद के योग में -

स्पष्टीकरण - स्वधा पद के योग में चतुर्थी विभक्ति होती है।

'नमः स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च।' इस सूत्र के अनुसार नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् इन शब्दों के योग में चतुर्थी होती है। यथा -

  • ईश्वराय नमः।
  • नृपाय स्वस्ति।
  • अग्नये स्वाहा।
  • पितृभ्यः स्वधा
  • इन्द्राय वषट्।
  • अलं मल्लो मल्लाय

 

अतः स्पष्ट है कि यहाँ चतुर्थी उचित विकल्प है।

 

कारक Question 2:

अनभिहिते कर्तरि विभक्तिः स्यात्-

  1. प्रथमा 
  2. द्वितीया 
  3. तृतीया 
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : तृतीया 

कारक Question 2 Detailed Solution

प्रश्न का अनुवाद- 'अनभिहिते कर्तरि करणे च' विभक्ति क्या होगी?

स्पष्टीकरण- 'अनभिहिते कर्तरि करणे च' इसकी 'तृतीया' विभक्ति होगी। 

सूत्र - कर्तृकरणयोस्तृतीया

अनभिहिते कर्तरि करणे च तृतीया स्यात् 

उदा- रामेण बाणेन हतो वाली।।

अर्थ- अनुक्त कर्ता और करण में तृतीया होती है।

 Important Pointsअनभिहिते (२.३.१)

  • अनभिहित शब्द का अर्थ है, अकथित इस विभक्तिविधायक प्रकरण में 'अनभिहित' इस सूत्र का अधिकार है। अर्थात् अनुक्त कर्मादि से विभक्ति का विधान होता है।
  • जो क्रिया से उक्त नहीं अर्थात् साक्षात् सम्बद्ध नहीं है वह अनुक्त कहलाता है।
  • पूर्व में अनुक्त का अर्थ गौण कहा जा चुका है। तृतीया विभक्ति दो स्थानों पर होती है। जिस वाक्य में कर्ता गौण हो, उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
  • क्रिया को पूर्ण करने में सबसे अधिक सहयोगी की प्रकृत प्रसंग में यह जानना आवश्यक है कि कहाँ पर कर्ता मुख्य हो जाता है और कहाँ पर गौण।
  • जहाँ कर्ता गौण या अनुक्त होगा वहाँ कर्ता में तृतीया विभक्ति होगी। 

Key Points करण कारक (तृतीया विभक्ति)-

  • ‘साधकतमं करणम्’ अर्थात् क्रिया की सिद्धि में अत्यन्त सहायक वस्तु अथवा साधन को करण कारक कहते हैं।
  • सरल शब्दों में कह सकते हैं कि, जिसकी सहायता से या जिसके द्वारा कार्य पूर्ण होते हैं; उसमें करण कारक होता है तथा उसमें तृतीया विभक्ति होती है।
  • हिन्दी में इसका चिह्न 'से' तथा 'के द्वारा' है।
  • यथा- सः हस्ताभ्यां कार्यं करोति (वह हाथों से कार्य करता है) यहाँ पर हाथों के द्वारा कार्य सम्पन्न हो रहा है; अत: हस्ताभ्याम् में तृतीया विभक्ति है।

 

इसप्रकार स्पष्ट हुआ कि ,अनभिहिते कर्तरि करणे च' इसकी 'तृतीया' विभक्ति होगी।

कारक Question 3:

स्पृहयतेः प्रयोगे ईप्सिते का विभक्तिः प्रयुज्यते?

  1. चतुर्थी।
  2. तृतीया
  3. पञ्चमी।
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : चतुर्थी।

कारक Question 3 Detailed Solution

प्रश्नानुवाद - 'स्पृहयति'  के प्रयोग में ईप्सित होने पर किस विभक्ति का प्रयोग किया जाता है?

स्पष्टीकरण - 

स्पृहयतेः प्रयोगे ईप्सिते चतुर्थी विभक्तिः प्रयुज्यते।

'स्पृहयति'  के प्रयोग में ईप्सित होने पर चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।

सूत्र -  ‘स्पृहेरीप्सितः’

सूत्रार्थ -  ‘स्पृह’ (चाहना) धातु के योग में ईप्सित अर्थात् जिस वस्तु को चाहा जाता है, उस वस्तु में चतुर्थी विभक्ति होती है

उदाहरण - रामः धनाय स्पृहयति (राम धन को चाहता है।) इस वाक्य में  ‘स्पृह’  धातु के योग में ईप्सित वस्तुअ है धन अतः 'धनाय' चतुर्थी विभक्ति हुआ है।

कारक Question 4:

कर्त्ता कर्मणा यमभिप्रैति सः किं भवति?

  1. सम्प्रदानम्
  2. अपादानम्
  3. करणम्
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : सम्प्रदानम्

कारक Question 4 Detailed Solution

प्रश्नानुवादकर्त्ता कर्म के द्वारा जिसको सन्तुष्ट करता है - वह क्या होता है?

स्पष्टीकरण -

  • कर्ता दान के कर्म के द्वारा जिसको सन्तुष्ट करता है, उसे सम्प्रदान कहते हैं।

सूत्र - 'कर्मणा यं अभिप्रैति स संप्रदानम्

  • नियम - दान के कर्म के द्वारा अथवा ‘दा’ धातु के अर्थ में प्रयुक्त होने वाले व्यक्ति की सम्प्रदान संज्ञा होती है, जिसमें ‘चतुर्थी सम्प्रदाने’ से चतुर्थी विभक्ति होती है। अर्थात् जिसे देना है, उसमें सम्प्रदान कारक-चतुर्थी विभक्ति होती है।

 

अतः यहाँ सम्प्रदानम् सही उत्तर है।

कारक Question 5:

'तस्य प्राङ्गणे गर्दभो बध्दः तिष्ठति' वाक्येस्मिन् अधिकरणकारकस्य पदमस्ति-

  1. प्राङ्गणे
  2. तिष्ठति
  3. गर्दभो
  4. उपर्युक्तेषु एकस्मात् अधिकम्
  5. उपर्युक्तेषु कश्चन अपि नास्ति

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : प्राङ्गणे

कारक Question 5 Detailed Solution

प्रश्न की हिन्दी - 'तस्य प्राङ्गणे गर्दभो बध्दः तिष्ठति' इस वाक्य में अधिकरण कारक वाला पद है-

स्पष्टीकरण -

  • अधिकरण कारक - जब कोई वस्तु किसी स्थान पर/में होती है, वहाँ अधिकरण कारक-सप्तमी विभक्ति होती है।

 

  • पंक्ति - 'तस्य प्राङ्गणे गर्दभो बध्दः तिष्ठति।'
  • हिन्दी अर्थ - उसके प्रांगण में गधा बंधा हुआ बैठा है।
    • पंक्ति से स्पष्ट है कि यहाँ प्रांगण शब्द में अधिकरण कारक है। जो एक स्थान विशेष है, जहाँ एक गधा बंधा हुआ है।

 

अतः यहाँ प्रागंणे सही उत्तर है।

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'सः चौरेभ्यः विभेति' इस वाक्य में 'चौरेभ्य∶' पद में किस विभक्ति का प्रयोग हुआ है ?

  1. तृतीया
  2. चतुर्थी 
  3. द्वितीया 
  4. पञ्चमी 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : पञ्चमी 

कारक Question 6 Detailed Solution

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स्पष्टीकरण -

  • भीत्रार्थानां भयहेतुः सूत्र के अनुसार भय या त्रस्त होने पर भय अथवा त्रस्त के हेतु की अपादान संज्ञा होती है और ‘अपादाने पञ्चमी’ सूत्र से उसकी पञ्चमी विभक्ति होती है। जैसे-
    • बालकः पितुः बिभेति।
    • सज्जनः दुर्जनेभ्यः त्रायते।
    • रामः सिंहात् बिभेति।
    • सः चौरेभ्यः विभेति

 

अतः स्पष्ट है कि 'सः चौरेभ्यः विभेति' इस वाक्य में भय के अर्थ में 'चौरेभ्यः' भय का हेतु होने के कारण उसकी अपादान संज्ञा हुई है और उसमें पञ्चमी विभक्ति है।

''सहयुक्‍तेऽप्रधाने'' इस सूत्र का उदाहरण है

  1. सुग्रीव∶ राम∶ सह लक्ष्‍मणश्‍च
  2. सहोदरो गच्‍छति नगरम्
  3. रामेण सह गतवती सीता
  4. मम सह त्‍वं गच्‍छसि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : रामेण सह गतवती सीता

कारक Question 7 Detailed Solution

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'सहयुक्तेऽप्रधाने' सूत्र के बारे में काशिका में 'सहार्थेन युक्ते अप्रधाने तृतीया विभक्तिर् भवति।' और सिद्धान्तकौमुदी में 'सहार्थेन युक्ते अप्रधाने तृतीया स्यात्।' लिखा है। जिसके अनुसार सह तथा सह के अर्थ में प्रयुक्त होने वाले सार्धम् आदि के योग में अप्रधान कर्त्ता  में तृतीया विभक्ति होती है। 

उदाहरण- पुत्रेण सह आगतः पिता। यहाँ आगतः क्रिया का कर्त्ता पिता है और क्रिया से संबन्ध न होने के कारण पुत्र अप्रधान कर्त्ता है उसमें प्रस्तुत सूत्र से तृतीया विभक्ति हुआ है।

विकल्पों में 'रामेण सह गतवती सीता' इस वाक्य में 'सहयुक्‍तेऽप्रधाने' इस सूत्र का प्रयोग करके तृतीया विभक्ति की योजना हुई है।

अतः स्पष्ट होता है कि 'सहयुक्तेऽप्रधाने' सूत्र का उदाहरण 'रामेण सह गतवती सीता' यह वाक्य है।

"सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति" इस वाक्य में ‘सर्वस्मिन्’ में कौन-सा कारक है?

  1. कर्म
  2. अधिकरण
  3. करण
  4. अपादान

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : अधिकरण

कारक Question 8 Detailed Solution

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"सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति" इस वाक्य में आत्मा का आधार होने के कारण ‘आधारोऽधिकरणम्’ सूत्र से ‘सर्वस्मिन्’ में अधिकरण कारक है। सूत्रानुसार आधार की अधिकरणसंज्ञा होती है। आधार तीन प्रकार का माना जाता है-

  • औपश्लेषिक आधार:- जहाँ किञ्चित् क्षण के लिए संयोग हो। जैसे-
    • वयं कक्षायां तिष्ठामः। ( हम कक्षा में बैठते हैं।)
  • अभिव्यापक आधार:- जहाँ हमेशा का संयोग हो। जैसे:-
    • सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति। (सबमें आत्मा रहती है।)
  • वैषयिक आधार:- किसी विषय विशेष का उल्लेख होने पर। जैसे:-
    • मम गणिते रुचिः अस्ति। (मेरी गणित में रुचि है।) 

Additional Information

 कारक - ‘क्रियाजनकत्वं कारकम्’ अर्थात् वाक्य में प्रयुक्त वे शब्द जिनका क्रिया के साथ प्रत्यक्ष सम्बन्ध हो उन्हें कारक कहते हैं। जैसे-

‘रामः कलमेन पत्रं लिखति।

यहाँ क्रिया ‘लिखति’ के साथ जिन पदों का साक्षात् सम्बन्ध है उनके लिए कुछ प्रश्न है -

प्रश्न

 उत्तर

कः लिखति?

रामः

केन लिखति?

कलमेन

किं लिखति?

पत्रं


अतः इसप्रकार के प्रश्नों के उत्तर रूप में प्राप्त पद कारक कहलाते हैं। संस्कृत में कारकों की संख्या छः होती है-

  • कर्त्ता कारक
  • कर्म कारक
  • करण कारक
  • सम्प्रदान कारक
  • अपादान कारक
  • अधिकरण कारक

Hint
इसके अतिरिक्त किञ्चित् साम्य के कारण कारक के अन्तर्गत जिन्हें हम पढते हैं - `सम्बन्ध' और `सम्बोधन' को कारक इसिलिये नहीं माना जाता क्योंकि इनका सम्बन्ध क्रिया से नहीं होता है। जैसे- ‘रामस्य पिता आगच्छति’ यहाँ आगच्छन् क्रिया का सम्बन्ध पिता से है क्योंकि आने का कार्य वही करते हैं, राम नहीं। अतः पिता तो कारक है पर राम प्रस्तुत वाक्य में सम्बन्ध मात्र है।

अपादानादिविशेषैरविवक्षिततं कारकं का संज्ञं स्यात?

  1. अपादानम्
  2. सम्प्रदानम् 
  3. कर्म
  4. अधिकरणम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : कर्म

कारक Question 9 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद- अपादानादिविशेषैरविवक्षिततं कारकं की संज्ञा क्या है?

उत्तर- कर्म

स्पष्टीकरण-

Key Pointsअपादानादिविशेषैः अविवक्षितं कारकं कर्मसंज्ञं स्यात् इसके लिए 'अकथितं च' है।  
अकथित का अर्थ होता है - जो कहा नहीं गया। अकथित = अप्रधान या गौण।

 Important Points

सूत्र - अकथितं च।

नियम - "अपादानादि विशेषैः अविवक्षितं कारकं कर्मसज्ञं स्यात्" अर्थात् अपादानादि कारकों द्वारा किसी कारक को अभिव्यक्त न करना हो तो उसकी कर्म संज्ञा होती है। उसे गौण कर्म कहते हैं। वहाँ भिन्न अर्थ की प्रतीति होती है।

'अकथितं च' सूत्र के अनुसार अपादान आदि कारकों के होने पर भी कर्ता द्वारा उसका प्रयोग न किया जाये तो उसे अकथित कहा जाता है। दुह्, याच् आदि 16 धातुओं और उनके समानार्थी धातुओं के योग में अपादान आदि के अकथित होने पर उनकी कर्मसंज्ञा होती है।
जिस वाक्य में दो कर्म हो तथा उसमें से एक कर्म अकथित अर्थात् गौण हो, उसमें द्वितीया विभक्ति होती है। अप्रधान कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। इस गौण कर्म का प्रयोग कभी अकेला नहीं किया जाता अपितु सदैव मुख्य कर्म के साथ गौण कर्म प्रयुक्त होता है।
सूत्र के अनुसार अधोलिखित 16 धातुओं में गौण तथा मुख्य दोनों कर्म लगे होते हैं। इन धातुओं का जो अर्थ होता है, उस अर्थ वाले अन्य धातुओं के अभिहित कर्म में भी द्वितीया विभक्ति होती है। 

अत: स्पष्टीकरण से यह ज्ञात होता है की, अपादानादिविशेषैरविवक्षिततं कारकं की संज्ञा कर्म है। 

"कटे आस्ते" में कटे पद कैसा आधार है ?

  1. वैषयिक
  2. अभिव्यापक
  3. औपश्लेषिक
  4. अव्यापक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : औपश्लेषिक

कारक Question 10 Detailed Solution

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‘आधारोऽधिकरणम्’ सूत्र से अधिकरण कारक होता है,और 'सप्तम्यधिकरणे च' इस सूत्र से अधिकरण कारक में सप्तमी विभक्ति होती है। इस सूत्र के अनुसार कर्ता और क्रियापद के संबध को अधिकरण कहते हैं। अधिकरण साक्षात क्रिया का आधार नही होता परन्तु कर्ता या कर्म के द्वारा क्रिया का आधार होता है। संस्कृत व्याकरण में पाणिनि आदि मुनियों ने आधार तीन प्रकार के बताये हैं -

  • औपश्लेषिक आधार:- जहाँ किञ्चित् क्षण के लिए संयोग हो। जैसे-
    • वयं कक्षायां तिष्ठामः। ( हम कक्षा में बैठते हैं।)
  • अभिव्यापक आधार:- जहाँ हमेशा का संयोग हो। जैसे:-
    • सर्वस्मिन् आत्मा अस्ति। (सबमें आत्मा रहती है।)
  • वैषयिक आधार:- किसी विषय विशेष का उल्लेख होने पर। जैसे:-
    • मम गणिते रुचिः अस्ति। (मेरी गणित में रुचि है।) 

वाक्य 'कटे आस्ते' का अर्थ होता है 'चटाई पर बैठता है।' जो कुछ समय के लिए होने के कारण यहाँ 'औपश्लेषिक आधार' बनता है।

Hint

 सप्तमी विभक्ति के प्रयोग के नियम या सूत्र-

नियम या सूत्र

उदाहरण

औपश्लेषिक आधार

कटे आस्ते।

 वैषयिक आधार

मोक्षे इच्छास्ति।

यतश्च निर्धारण

गोषु  कृष्णाबहुक्षीरा।

अभिव्यापक आधार

तिलेषु तैलम।

यस्यचभावेन भाव लक्षणम

गोषु दुह्यमानसु गत।

साध्वसाधुप्रयोगे च

कृष्ण: मातरि साधु:।

निमित्तात्कर्मयोगे

चर्मणिद्वीपिनं हन्ति।

बालकः .......... बिभेति। रिक्तस्थानं पूरयत-

  1. सर्पस्य 
  2. सर्पात्‌
  3. सर्पाय 
  4. सर्पे 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : सर्पात्‌

कारक Question 11 Detailed Solution

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प्रश्न अनुवाद​ - बालकः ______ बिभेति। रिक्तस्थान की पूर्ति करें।

स्पष्टीकरण -

  • बिभेति अर्थात् डरना, भय लगना। 
  • 'भीत्रार्थानां भयहेतुः' - इस सूत्र से भय या त्रस्त होने पर भय या त्रस्त के हेतु की अपादान संज्ञा होती है और अपादाने पञ्चमी सूत्र से उसकी पञ्चमी विभक्ति होती है।

उदाहरण - 

  • देवदत्तः सिंहात् बिभेति।
  • अहं शुनकात् बिभेमि।
  • कृष्णः राक्षसात् न बिभेति।

भय का हेतु होने के कारण सर्प की अपादान संज्ञा हुई और अपादान संज्ञा से पञ्चमी विभक्ति हुई। अतः यह स्पष्ट है कि यहाँ सर्पात् विकल्प उचित है।

Additional Informationसर्प (साँप) शब्दरूप अकारान्त पुल्लिंग का प्रयोग निम्नलिखित है-

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

सर्पः

सर्पौ

सर्पाः

द्वितीया

सर्पम्

सर्पौ

सर्पान्

तृतीया

सर्पेन

सर्पाभ्याम्

सर्पैः

चतुर्थी

सर्पाय

सर्पाभ्याम्

सर्पेभ्यः

पंचमी

सर्पात्

सर्पाभ्याम्

सर्पेभ्यः

षष्ठी

सर्पस्य

सर्पयोः

सर्पानाम्

सप्तमी

सर्पे

सर्पयोः

सर्पेषु

संबोधन

हे सर्पः

हे सर्पौ

हे सर्पाः

'रुच्' धातोः योगे कारकं भवति -

  1. अपादानम्‌
  2. कर्म
  3. करणम्‌ 
  4. सम्प्रदानम्‌

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : सम्प्रदानम्‌

कारक Question 12 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - 'रुच्' धातु के योग में कारक होता है-

स्पष्टीकरण -

  • ‘रुच्यार्थानां प्रीयमाणः’ सूत्र से रुच् तथा रुच् के अर्थ वाली धातुओं के योग में प्रसन्न होने वाले की सम्प्रदान संज्ञा होती है और ‘सम्प्रदाने चतुर्थी’ से उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-
    • शिशवे क्रीडनकं रोचते।
    • मह्यं संस्कृतं रोचते।
    • बालकाय मोदकं रोचते।
    • छात्रेभ्यः परीक्षां न रोचते।

 

अतः स्पष्ट है कि 'रुच्' धातु के योग में सम्प्रदान कारक होता है।

'उपन्वध्याङ्वसः' से कारक होता है 

  1. करण
  2. कर्ता
  3. कर्म
  4. सम्प्रदान

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : कर्म

कारक Question 13 Detailed Solution

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कारक- किसी वाक्य क्रिया को पूर्ण होने में जो सहायता कर्ता है उसे कारक है। ऐसे कारक के ६ प्रकार है।

  1. कर्ता
  2. कर्म
  3. करण
  4. सम्प्रदान
  5. अपादान
  6. अधिकरण

Important Points

सूत्र- उपान्वध्याङ्वसः

स्पष्टीकरण- इस सूत्र अंतर्गत बताया गया है अगर किसी शब्द के सम्बन्ध में 'उप', 'अनु', 'अधि' इनके योग से शब्द को कर्म संज्ञा मिलती है। इनके साथ अगर 'अभितः', 'परितः', 'समया', 'निकषा', 'हा', 'प्रति', 'उभयतः', 'सर्वतः', 'धिक्', 'उपरि', 'अधः' के योग में भी शब्द को कर्म संज्ञा मिलती है। 'कर्मणि द्वितीया' के बाद शब्द की द्वितीया की योजना होती है।

उदाहरण -

  • ग्रामम् उपवसति सेना। 
  • ग्रामम् अनुवसति सेना। 
  • ग्रामम् अधिवसति सेना। 

इससे स्पष्ट होता है की 'उपान्वध्याङ्वसः' से कर्म कारक होता है।

'सहयुक्तेप्रधाने' में कौन-सा कारक है?

  1. कर्त्ता
  2. कर्म
  3. करण
  4. अपादान

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : करण

कारक Question 14 Detailed Solution

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'सहयुक्तेऽप्रधाने' सूत्र के बारे में काशिका में 'सहार्थेन युक्ते अप्रधाने तृतीया विभक्तिर् भवति।' और सिद्धान्तकौमुदी में 'सहार्थेन युक्ते अप्रधाने तृतीया स्यात्।' लिखा है। जिसके अनुसार 'सह' तथा सह के अर्थ में प्रयुक्त होने वाले 'सार्धम्' आदि के योग में अप्रधान शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है। इसप्रकार सूत्र का तृतीया विभक्ति के साथ सम्बन्ध स्थापित होता है। तृतीया विभक्ति का कारक 'करण' होता है।

उदाहरण- पुत्रेण सह आगतः पिता। यहाँ आगतः क्रिया का कर्त्ता पिता है और क्रिया से संबन्ध न होने के कारण पुत्र अप्रधान शब्द है उसमें प्रस्तुत सूत्र से 'तृतीया विभक्ति' हुआ है तथा 'कारक करण' है।

अतः स्पष्ट है कि 'सहयुक्तेप्रधाने' में तृतीया विभक्ति का कारक 'करण' होता है।

‘बालक को लड्डु अच्छा लगता है’- इस वाक्य का संस्कृत अनुवाद होगा

  1. बालकं मोदकं रोचते।
  2. बालकस्य मोदकं रोचते।
  3. बालकाय मोदकं रोचते।
  4. बालकात् मोदकं रोचते।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : बालकाय मोदकं रोचते।

कारक Question 15 Detailed Solution

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‘रुच्यार्थानां प्रीयमाणः’ सूत्र से रुच् तथा रुच् के अर्थ वाली धातुओं के योग में प्रसन्न होने वाले की सम्प्रदान संज्ञा होती है और ‘सम्प्रदाने चतुर्थी’ से उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है। जैसे-

  • शिशवे क्रीडनकं रोचते।
  • मह्यं संस्कृतं रोचते।
  • बालकाय मोदकं रोचते।
  • छात्रेभ्यः परीक्षां न रोचते।

अतः स्पष्ट है कि ‘बालक को लड्डु अच्छा लगता है’- इस वाक्य का संस्कृत अनुवाद ‘रुच्’ धातु के योग के कारण ‘बालकाय मोदकं रोचते’ होगा।

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