गद्यांश MCQ Quiz - Objective Question with Answer for गद्यांश - Download Free PDF

Last updated on Jun 19, 2025

Latest गद्यांश MCQ Objective Questions

गद्यांश Question 1:

Comprehension:

निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

डार्विन का कहना था कि जीवन एक लगातार संघर्ष है. इस महाभारत में वही बचेगा, जो बुद्धि और शरीर से सबसे अधिक सबल और सक्षम होगा : कमजोर धीरे- धीरे नस्तनाबूत हो जाएँगे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की यह आधार-मान्यता इस ईसाई विश्वास के विरूद्ध पड़ती है कि अन्त में विनम्र और विनयशील ही बचेंगे: जबर आपस में लड़-भिड़कर समाप्त हो जाएँगे। मार्क्स ने भी जीवन को अमीर-गरीब के बीच संघर्ष के रूप में ही देखा। वैज्ञानिक प्रगति की धारणा मूलतः यह मानकर चलती है कि सम्पूर्ण पृथ्वी आदमी के हाथों में सौंप दिया गया एक ऐसा अकूत खजानों का हिस्सा है। उसका एकछत्र मालिक नहीं, यह 'विवेक' एक- दूसरे तरह की 'अनुभूति' देता है। न केवल भारतीय बल्कि सम्पूर्ण पूर्वीय विचारधारा में यह बोध व्यास दिखता है कि प्रकृति केवल भक्षक नहीं, रक्षक भी है। हमें उसके विरूद्ध नहीं उसके साथ चलना है। वह पोषक है; मनुष्य से कहीं ज्यादा निरीह और कोमल प्राणियों की पालक। यह दम्भ कि मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, आत्मघाती है। पिछले दो महायुद्धों में जो नस्तनाबूत हुआ वह मनुष्य का यह मिथ्या दम्भ कि सर्वश्रेष्ठ होने का यह उन्माद आगे बढ़ता जाए तो किस सीमा तक पहुँच सकता है।

वैज्ञानिक प्रगति की धारणा में प्रकृति, मनुष्य के लिए-

  1. अकूत खजाना है
  2. एकाधिकार पूर्ण अकूत खजाना है
  3. वह इस खजाने का हिस्सा है
  4. उसका एकछत्र मालिक नहीं है
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : एकाधिकार पूर्ण अकूत खजाना है

गद्यांश Question 1 Detailed Solution

वैज्ञानिक प्रगति की धारणा में प्रकृति, मनुष्य के लिए- एकाधिकार पूर्ण अकूत खजाना है

  • गद्यांश के अनुसार-
    • मार्क्स ने भी जीवन को अमीर-गरीब के बीच संघर्ष के रूप में ही देखा।
    • वैज्ञानिक प्रगति की धारणा मूलतः यह मानकर चलती है
    • कि सम्पूर्ण पृथ्वी आदमी के हाथों में सौंप दिया गया एक ऐसा अकूत खजानों का हिस्सा है।
    • उसका एकछत्र मालिक नहीं, यह 'विवेक' एक- दूसरे तरह की 'अनुभूति' देता है।

Key Points

  • एकाधिकार-
    • एक ही व्यक्ति या संस्था का अधिकार।
  • अकूत- 
    • जिसका आकलन करना मुश्किल हो, अगणनीय, अपरिमित, अथाह
  • खजाना- 
    • कोष, निधान, निधि, कोषागार, संग्रह, भंडार, गोदाम। 

Additional Information

एकछत्र जो (राज्य या साम्राज्य) एक ही शासक के अधीन हो
मालिक  स्वामी, ईश्वर, ख़ुदा, पति, शौहर, अध्यक्ष, सरदार।

गद्यांश Question 2:

Comprehension:

निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

डार्विन का कहना था कि जीवन एक लगातार संघर्ष है. इस महाभारत में वही बचेगा, जो बुद्धि और शरीर से सबसे अधिक सबल और सक्षम होगा : कमजोर धीरे- धीरे नस्तनाबूत हो जाएँगे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की यह आधार-मान्यता इस ईसाई विश्वास के विरूद्ध पड़ती है कि अन्त में विनम्र और विनयशील ही बचेंगे: जबर आपस में लड़-भिड़कर समाप्त हो जाएँगे। मार्क्स ने भी जीवन को अमीर-गरीब के बीच संघर्ष के रूप में ही देखा। वैज्ञानिक प्रगति की धारणा मूलतः यह मानकर चलती है कि सम्पूर्ण पृथ्वी आदमी के हाथों में सौंप दिया गया एक ऐसा अकूत खजानों का हिस्सा है। उसका एकछत्र मालिक नहीं, यह 'विवेक' एक- दूसरे तरह की 'अनुभूति' देता है। न केवल भारतीय बल्कि सम्पूर्ण पूर्वीय विचारधारा में यह बोध व्यास दिखता है कि प्रकृति केवल भक्षक नहीं, रक्षक भी है। हमें उसके विरूद्ध नहीं उसके साथ चलना है। वह पोषक है; मनुष्य से कहीं ज्यादा निरीह और कोमल प्राणियों की पालक। यह दम्भ कि मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, आत्मघाती है। पिछले दो महायुद्धों में जो नस्तनाबूत हुआ वह मनुष्य का यह मिथ्या दम्भ कि सर्वश्रेष्ठ होने का यह उन्माद आगे बढ़ता जाए तो किस सीमा तक पहुँच सकता है।

भारतीय विचारधारा में प्रकृति संबंधी कौन-सी धारणा सही नहीं है?

  1. वह केवल भक्षक नहीं रक्षक भी है
  2. वह विरूद्ध नहीं साथ भी हैं
  3. वह मनुष्य के साथ-साथ निरीह प्राणियों की पोषक है
  4. वह मनुष्य से सतत् संघर्षरत है
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : वह मनुष्य से सतत् संघर्षरत है

गद्यांश Question 2 Detailed Solution

भारतीय विचारधारा में प्रकृति से संबंधी धारणा सही नहीं है- वह मनुष्य से सतत् संघर्षरत है

  • गद्यांश के अनुसार-
    • न केवल भारतीय बल्कि सम्पूर्ण पूर्वीय विचारधारा में यह बोध व्यास दिखता है।
    • कि प्रकृति केवल भक्षक नहीं, रक्षक भी है। हमें उसके विरूद्ध नहीं उसके साथ चलना है
    • वह पोषक है; मनुष्य से कहीं ज्यादा निरीह और कोमल प्राणियों की पालक।
    • यह दम्भ कि मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, आत्मघाती है। पिछले दो महायुद्धों में जो नस्तनाबूत हुआ

Key Points

  • सतत्-
    • हमेशा, सदा, सर्वदा, निरन्तर। 
  • संघर्षरत-
    • ​जो संघर्ष कर रहा हो।

Additional Information

भक्षक  स्वार्थ के लिए किसी का सर्वनाश करने वाला।
रक्षक  रक्षा करने वाला व्यक्ति, पहरेदार।
विरूद्ध रुद्ध, रोका हुआ, बाधित, अवरुद्ध।
निरीह इच्छा एवं तृष्णा से रहित।
पोषक वह जो किसी का पालन करता हो, पालनकर्ता।

गद्यांश Question 3:

Comprehension:

निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

डार्विन का कहना था कि जीवन एक लगातार संघर्ष है. इस महाभारत में वही बचेगा, जो बुद्धि और शरीर से सबसे अधिक सबल और सक्षम होगा : कमजोर धीरे- धीरे नस्तनाबूत हो जाएँगे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की यह आधार-मान्यता इस ईसाई विश्वास के विरूद्ध पड़ती है कि अन्त में विनम्र और विनयशील ही बचेंगे: जबर आपस में लड़-भिड़कर समाप्त हो जाएँगे। मार्क्स ने भी जीवन को अमीर-गरीब के बीच संघर्ष के रूप में ही देखा। वैज्ञानिक प्रगति की धारणा मूलतः यह मानकर चलती है कि सम्पूर्ण पृथ्वी आदमी के हाथों में सौंप दिया गया एक ऐसा अकूत खजानों का हिस्सा है। उसका एकछत्र मालिक नहीं, यह 'विवेक' एक- दूसरे तरह की 'अनुभूति' देता है। न केवल भारतीय बल्कि सम्पूर्ण पूर्वीय विचारधारा में यह बोध व्यास दिखता है कि प्रकृति केवल भक्षक नहीं, रक्षक भी है। हमें उसके विरूद्ध नहीं उसके साथ चलना है। वह पोषक है; मनुष्य से कहीं ज्यादा निरीह और कोमल प्राणियों की पालक। यह दम्भ कि मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, आत्मघाती है। पिछले दो महायुद्धों में जो नस्तनाबूत हुआ वह मनुष्य का यह मिथ्या दम्भ कि सर्वश्रेष्ठ होने का यह उन्माद आगे बढ़ता जाए तो किस सीमा तक पहुँच सकता है।

डार्विन का विचार ईसाई मत के-

  1. विरूद्ध है
  2. पक्ष में हैं
  3. न पक्ष में है, न विरूद्ध है
  4. समतुल्य है
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : विरूद्ध है

गद्यांश Question 3 Detailed Solution

डार्विन का विचार ईसाई मत के- विरूद्ध है

  • गद्यांश के अनुसार-
    • जो बुद्धि और शरीर से सबसे अधिक सबल और सक्षम होगा : कमजोर धीरे- धीरे नस्तनाबूत हो जाएँगे।
    • वैज्ञानिक दृष्टिकोण की यह आधार-मान्यता इस ईसाई विश्वास के विरूद्ध पड़ती है
    • कि अन्त में विनम्र और विनयशील ही बचेंगे: जबर आपस में लड़-भिड़कर समाप्त हो जाएँगे।

Key Points

  •  विरूद्ध-
    • रुद्ध, रोका हुआ, बाधित, अवरुद्ध।

Additional Information

पक्ष डैना, पाख, दल, वर्ग, समुदाय, स्थिति।
समतुल्य बराबरसमान, समकक्ष, समरूप, सदृश।

गद्यांश Question 4:

Comprehension:

निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

डार्विन का कहना था कि जीवन एक लगातार संघर्ष है. इस महाभारत में वही बचेगा, जो बुद्धि और शरीर से सबसे अधिक सबल और सक्षम होगा : कमजोर धीरे- धीरे नस्तनाबूत हो जाएँगे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की यह आधार-मान्यता इस ईसाई विश्वास के विरूद्ध पड़ती है कि अन्त में विनम्र और विनयशील ही बचेंगे: जबर आपस में लड़-भिड़कर समाप्त हो जाएँगे। मार्क्स ने भी जीवन को अमीर-गरीब के बीच संघर्ष के रूप में ही देखा। वैज्ञानिक प्रगति की धारणा मूलतः यह मानकर चलती है कि सम्पूर्ण पृथ्वी आदमी के हाथों में सौंप दिया गया एक ऐसा अकूत खजानों का हिस्सा है। उसका एकछत्र मालिक नहीं, यह 'विवेक' एक- दूसरे तरह की 'अनुभूति' देता है। न केवल भारतीय बल्कि सम्पूर्ण पूर्वीय विचारधारा में यह बोध व्यास दिखता है कि प्रकृति केवल भक्षक नहीं, रक्षक भी है। हमें उसके विरूद्ध नहीं उसके साथ चलना है। वह पोषक है; मनुष्य से कहीं ज्यादा निरीह और कोमल प्राणियों की पालक। यह दम्भ कि मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, आत्मघाती है। पिछले दो महायुद्धों में जो नस्तनाबूत हुआ वह मनुष्य का यह मिथ्या दम्भ कि सर्वश्रेष्ठ होने का यह उन्माद आगे बढ़ता जाए तो किस सीमा तक पहुँच सकता है।

'नस्तनाबूत' शब्द किस भाषा का है?

  1. हिंदी
  2. संस्कृत
  3. फारसी
  4. अंग्रेजी
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : फारसी

गद्यांश Question 4 Detailed Solution

'नस्तनाबूत' शब्द भाषा का है- फारसी 

  • 'नस्तनाबूत' का अर्थ- जिसका नाश हो गया हो।
  • कुछ अन्य फारसी शब्द-
    • आईना, उम्मीद, कबूतर, किशमिश, कमरबन्द, गिरफ्तार, चिराग, जिन्दगी, तमाशा, 
    • दस्तूर, नापसन्द, पलंग, बीमार, मोर्चा, सौदागर, आबरू, लेकिन, सरकार आदि 

Key Points

  • विदेशी भाषाओं से हिंदी में आये शब्दों को विदेशी शब्द कहा जाता है।
  • इन विदेशी भाषाओं में मुख्यतः अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी पुर्तगाली शामिल है।

Additional Informationतत्सम- 

  • ​जिन शब्दों को संस्कृत से बिना किसी परिवर्तन अथवा बदलाव के उपयोग किया जाता है उन्हें तत्सम शब्द कहते हैं।
    • जैसे- दुग्ध, पुष्प, दही, आम्र, दीप, पौष, रात्रि, कपूत आदि।

अंग्रेजी शब्द-

  • अफसर, इंजन, डॉक्टर, लालटेन, सिलेट, अस्पताल, कप्तान, थेटर/ठेठर, तारपीन, बोतल, मील, अपील, आर्डर, इंच, एजेंसी आदि 

गद्यांश Question 5:

Comprehension:

निर्देश : निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।

डार्विन का कहना था कि जीवन एक लगातार संघर्ष है. इस महाभारत में वही बचेगा, जो बुद्धि और शरीर से सबसे अधिक सबल और सक्षम होगा : कमजोर धीरे- धीरे नस्तनाबूत हो जाएँगे। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की यह आधार-मान्यता इस ईसाई विश्वास के विरूद्ध पड़ती है कि अन्त में विनम्र और विनयशील ही बचेंगे: जबर आपस में लड़-भिड़कर समाप्त हो जाएँगे। मार्क्स ने भी जीवन को अमीर-गरीब के बीच संघर्ष के रूप में ही देखा। वैज्ञानिक प्रगति की धारणा मूलतः यह मानकर चलती है कि सम्पूर्ण पृथ्वी आदमी के हाथों में सौंप दिया गया एक ऐसा अकूत खजानों का हिस्सा है। उसका एकछत्र मालिक नहीं, यह 'विवेक' एक- दूसरे तरह की 'अनुभूति' देता है। न केवल भारतीय बल्कि सम्पूर्ण पूर्वीय विचारधारा में यह बोध व्यास दिखता है कि प्रकृति केवल भक्षक नहीं, रक्षक भी है। हमें उसके विरूद्ध नहीं उसके साथ चलना है। वह पोषक है; मनुष्य से कहीं ज्यादा निरीह और कोमल प्राणियों की पालक। यह दम्भ कि मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, आत्मघाती है। पिछले दो महायुद्धों में जो नस्तनाबूत हुआ वह मनुष्य का यह मिथ्या दम्भ कि सर्वश्रेष्ठ होने का यह उन्माद आगे बढ़ता जाए तो किस सीमा तक पहुँच सकता है।

डार्विन का विचार कि जीवन एक लगातार संघर्ष है-

  1. बुद्धि और शरीर के बीच
  2. जी और प्रकृति के बीच
  3. अमीर और गरीब के बीच
  4. विनम्र और जबर के बीच
  5. उपर्युक्त में से कोई नहीं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : जी और प्रकृति के बीच

गद्यांश Question 5 Detailed Solution

डार्विन का विचार कि जीवन एक लगातार संघर्ष है- जीव और प्रकृति के बीच

  • गद्यांश के अनुसार-
    • मार्क्स ने भी जीवन को अमीर-गरीब के बीच संघर्ष के रूप में ही देखा। वैज्ञानिक प्रगति की धारणा मूलतः यह मानकर चलती है
    • कि सम्पूर्ण पृथ्वी आदमी के हाथों में सौंप दिया गया एक ऐसा अकूत खजानों का हिस्सा है।
    • उसका एकछत्र मालिक नहीं, यह 'विवेक' एक- दूसरे तरह की 'अनुभूति' देता है।
    • न केवल भारतीय बल्कि सम्पूर्ण पूर्वीय विचारधारा में यह बोध व्यास दिखता है कि प्रकृति केवल भक्षक नहीं, रक्षक भी है। 

Key Points

  • जीव-
    • रूह, प्राण, जान, आत्मा, जीवात्मा, प्राणधारी, देहधारी। 
  • प्रकृति-
    • प्रवृति, कुदरत, स्वभाव, मनोवृति, मिजाज, आदत, फितरत।

Additional Information

शरीर  देह, काया, गात्र, अंग, गात, तनु, कलेवर, वपु।
विनम्र  झुका हुआ, विनीत, नम्र, विनयी, सुशील, शिष्ट।
जबर किसी बात के लिए मजबूर करना।
अमीर का विलोम शब्द- 'गरीब'

Top गद्यांश MCQ Objective Questions

Comprehension:

निर्देशः गद्यांश  को पढ़कर पूछे गये प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहो से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी - तो गाय खरीद कर लाए। गाय के  साज-सभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कही से कही चला गया। भौतिक आकाक्षांओ का जाल-जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नही बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनो का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

परमार्थ- रेखाकित शब्द का विलोम बताइए।

  1. दुष्ट
  2. स्वार्थ
  3. क्रोधी
  4. लालची

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : स्वार्थ

गद्यांश Question 6 Detailed Solution

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दिए गए विकल्प में विकल्प 2 "स्वार्थ" सही है। अन्य विकल्प दिए गए शब्द के विलोम नहीं हैं इसलिए अन्य विकल्प गलत हैं। 

Key Points

स्पष्टीकरण :

  • परमार्थ होता है निस्वार्थ भाव से किया गया काम और विलोम शब्द का अर्थ होता है विपरीत तो निस्वार्थ का विपरीत होगा स्वार्थ इसलिए विकल्प 2 सही है। 
  • परमार्थ का विलोम शब्द - स्वार्थ
  • परमार्थ के सभी पर्यायवाची शब्द: उपकार, भलाई, परोपकार, मोक्ष, निर्वाण।

Additional Information

  • जिन शब्दों का अर्थ विपरीत यानि की उल्टा होता हैं। उन्हें विलोम शब्द कहा जाता है।
  • जैसे:
    • दिन का विपरीत रात 
    • बड़ा का विपरीत छोटा 
  • अगर दो शब्दों के अर्थ समान होते है तो वह समानार्थी शब्द होते हैं। 
  • आसान शब्द में दुसरे नाम को समानार्थी कहते हैं। 
  • जैसे:
    • कमल - जलज, पंकज, अम्बुज, सरोज, राजीव, पद्म. 
    • कली - कलिका, मुकुल, कुडमल। 

Comprehension:

गद्यांश को पढ़कर पूछे गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए-

भारत के इतिहास में अमरत्व प्राप्ति के अधिकारी लौह-पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को कौन नहीं जानता? 31 अक्टूबर, 1875 में गुजरात के नाडियाद गाँव में एक किसान परिवार में उनका जन्म हुआ था। पाठशाला का अभ्यास करने में काफी समय लगा था। 36 साल की उम्र में वकालत पढ़ने के लिए वे इंगलैंड गए। उन्होंने 36 महीने का कोर्स 30 महीनों में पूरा किया। 1917 में वे गांधीजी के संपर्क में आए। ब्रिटिश राज्य के खिलाफ अहिंसक आंदोलन के जरिये बारदोली, बलसाड, खेड़ा आदि के किसानों को एकत्र किया। उनके इस आंदोलन ने उन्हें प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा दिलाई। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने प्रमुख स्थान दिया। लोगों ने उन्हें सरदार की उपाधि दी। आजादी के बाद छोटी-छोटी रियायतों को एक करने का कार्य किया। 15 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर सभी रियायतें भारत संघ में सम्मिलित हो गई थीं। गृहमंत्री बनने के बाद लगभग छः सौ रियायतों को भारत संघ में सम्मिलित किया। हैदराबाद के नवाब ने विरोध किया तो वहाँ सेना भेजकर निजाम को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया। 15 दिसम्बर, 1950 को जगमगता वह सितारा, हमें अंधकार में छोड़कर चला गया। सन् 1991 में उन्हें भारतरत्न से सम्मानित किया गया। स्वतंत्रता सेनानी सरदार वल्लभभाई की जीवनी सदैव प्रेरणादायी है।

वकालत शब्द को व्याकरणिक दृष्टि से पहचानिए -

  1. विशेषण
  2. व्यक्तिवाचक संज्ञा
  3. जातिवाचक संज्ञा
  4. भाववाचक संज्ञा

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : भाववाचक संज्ञा

गद्यांश Question 7 Detailed Solution

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सही उत्तर है - "भाववाचक संज्ञा" lKey Points

  • व्याकरण की दृष्टि से वकालत शब्द एक भाववाचक संज्ञा है l
    • वकील का भाववाचक संज्ञा वकालत है।
  • यहाँ पर वकालत शब्द से किसी भाव, अवस्था, गुण, दोष, दशा आदि का पता चल रहा है, अतः वकालत शब्द भाववाचक संज्ञा है।
  • भाववाचक संज्ञा की परिभाषा :-
    • जिन संज्ञा शब्दों से पदार्थों की अवस्था, गुण, दोष, धर्म, दशा, आदि का बोध हो वह भाववाचक संज्ञा कहलाता है।

अन्य विकल्पों का विश्लेषण:-

  • विशेषण -
    • संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण, दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द विशेषण कहलाते हैं।
  • व्यक्तिवाचक संज्ञा -
    • जिन शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति, स्थान अथवा वस्तु के नाम का बोध हो, उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं।
  • जातिवाचक संज्ञा -
    • जिस शब्द से किसी प्राणी या वस्तु की समस्त जाति का बोध होता है,उन शब्दों को जातिवाचक संज्ञा कहते हैं।
  • यह तीनों विकल्प अनुचित उत्तर है, क्योंकि वकालत इनमें से किसी का भी उदाहरण नहीं है l

Additional Information

  • भाववाचक संज्ञा के उदाहरण:-
    • बंद कमरे में बैठने से मुझे बेचैनी हो जाती है।
    • लता मंगेशकर की आवाज में दैवीय मधुरता है।
  • विशेषण के उदाहरण:-
    • बड़ा, काला, लंबा, दयालु, भारी, सुन्दर, कायर, टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आदि।
  • व्यक्तिवाचक संज्ञा के उदाहरण:-
    • जयपुर, दिल्ली, भारत, रामायण, अमेरिका, राम इत्यादि।
  • जातिवाचक संज्ञा के उदाहरण:-
    • घोड़ा, फूल, मनुष्य,वृक्ष इत्यादि।

Comprehension:

नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए तथा गद्यांश पर आधारित प्रश्नों का उत्तर बताइए:

मनुष्य के जीवन में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता दोनों का वास्तविक अर्थ एक ही माना जाता है। स्वावलंबन का अर्थ है आश्रय या सहारा बनना और आत्मनिर्भरता का अर्थ है किसी दूसरे का बोझ न बनकर या किसी पर निर्भर न होकर अपने – आप पर निर्भर  रहना। इस तरह दोनों शब्द परावलंबन या पराश्रिता त्यागकर सब प्रकार के दु:ख– कष्ट सहकर भी अपने पैरों पर खड़े रहने की शिक्षा और प्रेरणा देने वाले शब्द हैं। मानव जगत में दूसरों पर आश्रित होना एक प्रकार का पाप, व्यक्ति के अंत:  व्यक्तित्व को हीन या तुच्छ बना देने वाला हुआ करता है। पराश्रित अवस्था में व्यक्ति आश्रयदाता के अधीन बन कर रह जाता है। इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बन कर रह जाता है। उसमे पवित्र बाध्यता और विवशता ही दिखाई देती है। तनिक-सी अभिलाषा के लिए भी दूसरों का मुहॅ ताकना पड़ता है। मन मार कर जीवन व्यतीत करना पड़ता है। इसलिए स्वाधीनता एवं स्वावलंबन को स्वर्ग का द्वार पुण्य-कार्यो का परिणाम और सर्वोच्च कार्य स्वीकार किया गया है।

इस गद्यांश को उचित शीर्षक दीजिए।

  1. स्वावलंबन या परावलंबन
  2. स्वावलंनी जीवन
  3. स्वावलंबन: स्वर्ग का द्वार
  4. संसार में परावलंबन

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : स्वावलंबन: स्वर्ग का द्वार

गद्यांश Question 8 Detailed Solution

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स्वावलंबन: स्वर्ग का द्वार, यहाँ सही विकल्प है। अन्य विकल्प असंगत है। 

  • प्रस्तुत गद्यांश में स्वावलंबन के महत्व के बारे में बताया गया है।धीनता एवं स्वावलंबन को स्वर्ग का द्वार पुण्य-कार्यो का परिणाम और सर्वोच्च स्वीकार किया गया है।

          अत: सही विकल्प 3 स्वावलंबन: स्वर्ग का द्वार है ।

Comprehension:

निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश के बाद प्रश्न दिये गये हैं। इस गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़े और चार विकल्पों में से प्रत्येक प्रश्न का सर्वोत्तम उत्तर चुनें।

अवध की संस्कृति में सुसज्जित घोड़ा परिवहन का साधन और शान का प्रतीक था। मुख्य रूप से तीन प्रकार के ताँगे और इक्के मिलते हैं - बग्गी, फिटन और टमटम। बग्गी बंद डिब्बे की होती है, जिन्हें नवाबों द्वारा यात्रा में वरीयता दी जाती थी। किन्तु ताँगे व इक्के का शाब्दिक अर्थ अधिक अश्व शक्ति की और इंगित करता है। इक्के में एक घोडा होता है जबकि बग्गी या ताँगे में दो, चार या अधिक घोड़े होते हैं। यह वास्तव में इस्तेमाल करने वाले की सामाजिक प्रतिष्ठा पर निर्भर करता है। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 19वीं सदी के प्रारम्भ में अवध के सामाजिक-सांस्कृतिक और आर्थिक माहौल में बदलाव आया। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे हल्के वाहनों का निर्माण और इस्तेमाल होने लगा, जिसमें कम से कम अश्व शक्ति लगे। सामान्य बोलचाल में इक्के का अर्थ है इक या एक यानि एक व्यक्ति के इस्तेमाल के लिए। इसके अतिरिक्त ताँगा एक परिवार वाहन था।‍ किन्तु, किफायत की मजबूरी को देखते हुए इक्के में अधिक संख्या में यात्री बैठाने पड़े। ताँगा अपेक्षाकृत भारी और बड़ा वाहन है, जिसमें पैरों के लिए अधिक जगह होती है और चार से छह वयस्क पीछे कमर लगाकर बैठ सकते हैं। हर साल इन ताँगो और इक्कों की दौड़ लखनऊ में होती है। जँगी घोड़े इस दौरान सबके लिए आर्कषण का केन्द्र-बिन्दु होते हैं। घोड़े के खूरों का भी श्रृंगार किया जाता है। पुरानी पैरों की सुंदरता बढ़ाने के लिए कशीदाकारी युक्त वस्त्र पैरों में डाले जाते हैं और पीतल या चाँदी के घुंघरू बाँधे जाते हैं।

ताँगे और इक्के के कितने प्रकार है?

  1. चार
  2. दो
  3. तीन
  4. पाँच

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : तीन

गद्यांश Question 9 Detailed Solution

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ताँगे और इक्के के तीन प्रकार है। अन्य विकल्प असंगत है। अतः सही उत्तर विकल्प 3 तीन होगा।

Key Points

अवध की संस्कृति में सुसज्जित घोडा परिवहन का साधन और शान का प्रतीक था | मुख्य रूप से तीन प्रकार के ताँगे और इक्के मिलते हैं - बग्गी, फिटन और टमटम | 

 

Comprehension:

निर्देश: नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों में सबसे उचित विकल्प चुनिए:

स्वामी विवेकानन्द जी एक ऐसे संत थे जिनका रोम-रोम राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत था। उनके सारे चिन्तन का केन्द्रबिन्दु राष्ट्र था। अपने राष्ट्र की प्रगति एवं उत्थान के लिए जितना चिन्तन एवं कर्म इस तेजस्वी संन्यासी ने किया उतना पूर्ण समर्पित राजनीतिज्ञों ने भी सम्भवत: नहीं किया। अन्तर यह है कि इन्होंने सीधे राजनीतिक धारा में भाग नहीं लिया किन्तु इनके कर्म एवं चिन्तन की प्रेरणा से हज़ारों ऐसे कार्यकर्त्ता तैयार हुए जिन्होंने राष्ट्र-रथ को आगे बढ़ाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

इन्होंने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया था बल्कि करोड़ों देशवासियों के उत्थान को ही अपना जीवन-लक्ष्य बनाया। राष्ट्र के दीन-हीन जनों की सेवा को ही वे ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे सत्य की अनवरत खोज उन्हें दक्षिणेश्वर के संत श्री रामकृष्ण परमहंस तक ले गई और परमहंस ही वह सच्चे गुरु सिद्ध हुए जिनका सान्रिध्य पाकर इनकी ज्ञान-पिपासा शांत हुई। उनतालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी जी जो कार्य कर गए वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

तीस वर्ष की आयु में इन्होंने शिकागो, अमेरिका के विश्व धर्म-सम्मेलन में हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और इसे सार्वभौमिक पहचान दिलवायी। तीन वर्ष तक वे अमेरिका में रहे और वहाँ के लोगों को भारतीय तत्त्व-ज्ञान की अदभुति ज्योति प्रदान की। “अध्यात्म-विद्या और भारतीय दर्शन के बिना विश्व अनाथ हो जाएगा” यह स्वामी जी का दृढ़ विश्वास था।

वे केवल संत ही नहीं, एक महान देशभक्त, वक्ता, विचारक, लेखक और मानव-प्रेमी भी थे। अमेरिका से लौटकर उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में योगदान देने के लिए देशवासियों का आह्वान किया और जनता ने स्वामी जी की पुकार का उत्तर दिया। गाँधी जी को आज़ादी की लड़ाई में जो जन-समर्थन मिला था, वह स्वामी जी के आह्वान का ही फल था। उन्नीसवीं सदी के आख़िरी दौर में वे लगभग सशक्त क्रांति के जरिए भी देश को आज़ाद कराना चाहते थे। परन्तु उन्हें जल्द ही यह विश्वास हो गया था कि परिस्थितियाँ उन इरादों के लिए अभी परिपक्व नहीं हैं। इसके बाद ही उन्होंने एक परिब्राजक के रूप में भारत और दुनिया को खंगाल डाला।

स्वामी जी इस बात से आश्वस्त थे कि धरती की गोद में यदि कोई ऐसा देश है जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशें की है, तो वह भारत ही है। उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के सर्वश्रेष्ठ चिन्तकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी आश्चर्य का विषय है। स्वामी जी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को ज़रूरत भी है लेकिन हमें याचक नहीं बनना चाहिए। हमारे पास उससे ज़्यादा बहुत कुछ है जो हम पश्चिम को दे सकते हैं और पश्चिम को उसकी बेसाख़्ता ज़रूरत है।

राष्ट्रभक्ति में कौन सा समास प्रयुक्त है?

  1. कर्म तत्पुरुष
  2. करण तत्पुरुष
  3. अपादान तत्पुरुष
  4. सम्बन्ध तत्पुरुष

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : सम्बन्ध तत्पुरुष

गद्यांश Question 10 Detailed Solution

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  • ‘राष्ट्रभक्ति’ का सामासिक विग्रह करने पर ‘राष्ट्र की भक्ति’ अथवा 'राष्ट्र के लिए भक्ति' होगा।
  • यहाँ ‘की’ कारक चिन्ह का प्रयोग हुआ है। इस आधार पर ‘सम्बन्ध कारक’ होगा क्योंकि ‘सम्बन्ध कारक’ का कारक चिन्ह ‘का, के, की’ होता है। अतः सही विकल्प सम्बन्ध तत्पुरुष है।
  • क्योंकि यहाँ राष्ट्र से भक्ति का सम्बन्ध बताया जा रहा है।

Additional Information

अन्य विकल्प

कर्म तत्पुरुष अर्थात यह समास को चिन्ह के लोप से बनता है।

करण तत्पुरुष अर्थात यह समास दो कारक चिन्हों से और के द्वारा के लोप से बनता है।

अपादान तत्पुरुष अर्थात इस समास में कारक चिन्ह ‘से अलग होना का लोप हो जाता है।

Comprehension:

निर्देशः निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों का उत्तर दें।

सच्चे वीर अपने प्रेम के जोर से लोगों को सदा के लिए बाँध देते हैं। वीरता की अभिव्यक्ति कई प्रकार से होती है, कभी लड़ने-मरने से, खून बहाने से, तोप तलवार के सामने बलिदान करने से होती है, तो कभी जीवन के गूढ़ तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध जैसे राजा विरक्‍त होकर वीर हो जाते हैं, और सारे संसार में शांति व समृद्धि फैलाते हैं। वीरता एक प्रकार की अंतः प्रेरणा है, जब कभी उसका विकास हुआ तभी एक रौनक, एक रंग, एक बहार संसार में छा गई। वीरता हमेशा निराली और नई होती है। वीरों को बनाने के कारखाने नहीं होते हैं। जिसमें सौदेबाजी की जा सके। लाभ-व-हानि देखा जा सके। वे तो देवदार के वृक्ष की भाँति जीवन रूपी वन में स्वंय पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाये बढ़ते हैं। 'जीवन के केन्द्र में निवास करो और सत्य की चट्टान पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ। बाहर की सतह छोड़कर जीवन के अंदर की तहों में पहुँचे तब नए रंग खिलेंगे।

यही वीरता का संदेश

वीरों के देवदार वृक्ष से तुलना की गई है, क्योंकि दोनोंः

  1. खाना-पीना मिलने पर ही बढ़ते हैं
  2. दोनों का दिल उदार होता है
  3. सत्य का हमेशा पालन करते है
  4. स्वयं पैदा होते हैं और बिना किसी के दूध पिलाए बढ़ते हैं

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : स्वयं पैदा होते हैं और बिना किसी के दूध पिलाए बढ़ते हैं

गद्यांश Question 11 Detailed Solution

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प्रस्तुत गद्यांश  में बताया गया है कि देवदार  स्वयं पैदा होते हैं और बिना किसी के दूध पिलाए बढ़ते हैं। अत: इस प्रश्न का सही उत्तर विकल्प संख्या 4 है। बाकी सभी विकल्प गलत हैं। 

Key Points

  •  वीर शब्द के पर्यायवाची : 
  • वीर = बहादुर, निडर, निर्भीक, निर्भय, अभय 

Important Points

  •  यहाँ खाना - पीना द्वंद्व समास का एक उदाहरण है। इसी प्रकार द्वंद्व समास के कुछ अन्य उदाहरण भी हैं : 
समास  समस विग्रह 
राम - सीता  राम और सीता 
भूल - चूक  भूल या चूक 
मार - पीट  मार और पीट 
ठंडा - गरम  ठंडा या  गरम 
गौरी - शंकर  गौरी और शंकर 

Additional Information

  •  द्वंद्व समास : जिस समास के दोनों पद प्रधान होते हैं तथा विग्रह करने पर 'और' तथा 'या' आदि पद आते हैं उसे द्वंद्व समास कहते हैं।

Comprehension:

निर्देश: निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए:

आज शिक्षक की भूमिका उपदेशक या ज्ञानदाता की-सी नहीं रही। वह तो मात्र एक प्रेरक है कि शिक्षार्थी स्वयं सीख सकें। उनके किशोर मानस को ध्यान में रखकर शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य के दौरान अध्ययन- अध्यापन की परंपरागत विधियों से दो कदम आगे जाना पड़ेगा, ताकि शिक्षार्थी समकालीन यथार्थ और दिन-प्रतिदिन बदलते जीवन की चुनौतियों के बीच मानव-मूल्यों के प्रति अडिग आस्था बनाए रखने की प्रेरणा ग्रहण कर सके। पाठगत बाधाओं को दूर करते हुए विद्यार्थियों की सहभागिता को सही दिशा प्रदान करने का कार्य शिक्षक ही कर सकता है।

भाषा शिक्षण की कोई एक विधि नहीं हो सकती। जैसे मध्यकालीन कविता में अलंकार, छंद विधान, तुक आदि के प्रति आग्रह था किन्तु आज लय और प्रवाह का महत्व है। कविता पढ़ाते समय कवि की युग चेतना के प्रति सजगता समझना आवश्यक है। निबंध में लेखक के दृष्टिकोण और भाषा-शैली का महत्त्व है और शिक्षार्थी को अर्थग्रहण की योग्यता का विकास जरूरी है। कहानी के भीतर बुनी अनेक कहानियों को पहचानने और उन सूत्रों को पल्लवित करने का अभ्यास शिक्षार्थी की कल्पना और अभिव्यक्ति कौशल को बढ़ाने के लिए उपयोगी हो सकता है। कभी-कभी कहानी का नाटक में विधा परिवर्तन कर उसका मंचन किया जा सकता है।

मूल्यांकन वस्तुत: सीखने की ही एक प्रणाली है, ऐसी प्रणाली जो रटंत प्रणाली से मुक्ति दिला सके। परंपरागत साँचे का अनुपालन न करे, अपना ढाँचा निर्मित कर सके। इसलिए यह गाँठ बाँध लेना आवश्यक है कि भाषा और साहित्य के प्रश्न बँधे-बँधाए उत्तरों तक सीमित नहीं हो सकते। शिक्षक पूर्वनिर्धारित उत्तर की अपेक्षा नहीं कर सकता। विद्यार्थियों के उत्तर साँचे से हटकर किंतु तर्क संगत हो सकते हैं और सही भी। इस खुलेपन की चुनौती को स्वीकारना आवश्यक है।

‘सहभागिता’ शब्द का निर्माण किस उपसर्ग और प्रत्यय से हुआ है?

  1. सह, ता
  2. स, इता
  3. सह, इता
  4. स, ता

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : सह, इता

गद्यांश Question 12 Detailed Solution

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‘सहभागिता’ शब्द का निर्माण ‘सह’ उपसर्ग तथा ‘इता’ प्रत्यय लगाकर किया गया है।
सहभागिता का अर्थ - साझेदारी 
Key Points सहभागिता शब्द में सह + भाग + इता ये तीनो मिलकर शब्द बना है। सहभागिता में मूल शब्द भाग है, इस शब्द के आगे सह उपसर्ग लगा हुआ है, और ता प्रत्यय लगा हुआ है।

उपसर्ग

प्रत्यय

उपसर्ग उस अक्षर या अक्षर समूह को कहते हैं जो किसी शब्द के पहले जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन लाता है।

शब्द के उपरांत जिस शब्द का प्रयोग किया जाता है वह प्रत्यय है।

जैसे - प्र, सु, अति, अधि, अनु, नि

प्र + हार = प्रहार

जैसे - ता, औना, अन, अत

श्रो + ता = श्रोता

विशेष (उपसर्ग प्रत्यय वाले अन्य शब्द)

बेईमानी

बे + ईमान + ई

स्वतंत्रता

स्व + तंत्र + ता

अज्ञानता

अ + ज्ञान + ता

अनुशासनहीन

अनु + शासन + हीन

Comprehension:

घोड़ों की टापों की आवाज सुनकर ममता भयभीत हो गई। पथिक ने कहा, ''वह स्‍त्री कहॉं गई है उसे खोेज निकालो।'' ममता छिपने के लिए अधिक सचेत हुई। वह मृगदाव मे चली गई। दिनभर उसमें से न निकली। संध्‍या में जब उन लोगों के जाने का उपक्रम हुआ, तो ममता ने सुना, पथिक घोड़े पर सवार होते हुए कह रहा था, ''मिरजा! उस स्‍त्री को मैं कुछ न दे सका, उसका घर बनवा देना, क्‍योंकि मैंने विपत्ति में यहॉं विश्रााम पाया था। यह स्‍थान भूलना मत।''

चौसा के मुगल-पठान युद्ध को बहुत दिन बीत गए। ममता अब सत्‍तर वर्ष की वृद्धा है। वह अपनी  झोपड़ी में एक दिन पड़ी थी। उसका जीर्ण कंकाल खॉंसी से गूंज रहा था। ममता ने जल पीना चाहा एक स्‍त्री ने सौंपी से जल पिलाया। सहसा एक अश्‍वारोही झोपड़ी के द्वार पर दिखाई पड़ा, मीरजा ने जो चित्र बनाकर दिया था इसी जगह का होना चाहिए। बुढि़या मर गई होगी अब किससे पूछूँ कि एक दिन शहंशाह हुमायूँ ने किस छप्‍पर केे नीचे विश्राम किया था।

उपरोक्‍त गदयांश को पढ़कर नीचे लिखें प्रश्‍नो के उत्‍तर दीजिए-

निम्‍नलिखित में से बुढि़या को क्‍या नहीं था?

  1. बुढ़ापा
  2. खॉंसी
  3. कमजोरी
  4. सामर्थ्‍य

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : सामर्थ्‍य

गद्यांश Question 13 Detailed Solution

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उपरोक्त गद्यांश के अनुसार बुढि़या को सामर्थ्‍य नहीं था,अन्य विकल्प असंगत है। अत: विकल्प 4 सामर्थ्‍य सही उत्तर होगा। 

Key Points

उपरोक्त गद्यांश के अनुसार बुढि़या का शरीर जीर्ण और कंकाल हो चुका था तथा उसका शरीर खॉंसी से गूंज रहा था।

 

Comprehension:

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए 

भारत भयंकर अंग्रेज़ी - मोह की दुरवस्था से गुजर रहा है । इस दुरवस्था का एक भयानक दुष्परिणाम यह है कि भारतीय भाषाओं के समकालीन साहित्य पर उन लोगों की दृष्टि नहीं पड़ती जो विश्वविद्यालयों के प्रायः सर्वोत्तम छात्र थे और अब शासन तंत्र में ऊँचे ओहदों पर काम कर रहे हैं । इस दृष्टि से भारतीय भाषाओं के लेखक केवल यूरोपीय और अमेरिकी लेखकों से हीन नहीं हैं, बल्कि उनकी किस्मत मिस्र, बर्मा, इंडोनेशिया, चीन और जापान के लेखकों की किस्मत से भी खराब है क्योंकि इन सभी देशों के लेखकों की कृतियाँ वहाँ के अत्यंत सुशिक्षित लोग भी पढ़ते हैं। केवल हम ही हैं जिनकी पुस्तकों पर यहाँ के तथाकथित शिक्षित समुदाय की दृष्टि प्रायः नहीं पड़ती । हमारा तथाकथित उच्च शिक्षित समुदाय जो कुछ पढ़ना चाहता है, उसे अंग्रेज़ी में ही पढ़ लेता है, यहाँ तक कि उसकी कविता और उपन्यास पढ़ने की तृष्णा भी अंग्रेज़ी की कविता और उपन्यास पढ़कर ही समाप्त हो जाती है और उसे यह जानने की इच्छा ही नहीं होती कि शरीर से वह जिस समाज का सदस्य है उसके मनोभाव उपन्यास और काव्य में किस अदा से व्यक्त हो रहे हैं।

उपयुक्त शीर्षक दीजिए -

  1. भारतीय शिक्षितों का अंग्रेज़ी - मोह
  2. भारत की दुरवस्था
  3. भारतीय लेखकों की दुर्दशा 
  4. भारतीय शिक्षितों की दुरवस्था

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : भारत की दुरवस्था

गद्यांश Question 14 Detailed Solution

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इस प्रश्न का सही उत्तर भारत की दुरवस्था होगा।

अत: सही विकल्प 2 होगा।

Key Points

  •  प्रश्न के उत्तर का अंदाजा गद्यांश की प्रथन लाईन से लगाया जा सकता है।
  • भारत भयंकर अंग्रेज़ी - मोह की दुरवस्था से गुजर रहा है । 
  • अर्थात गद्यांश में भारत की दुरवस्था की बात की है।
  • विकल्प में भी भारत की दुरवस्था दिया हुआ है।

Comprehension:

निर्देशः गद्यांश  को पढ़कर पूछे गये प्रश्नो के उत्तर लिखिए-

एक साधु थे। भिक्षाटन से मजे से दिन गुजारते और आनंदपूर्वक भजन करते थे। एक दिन महत्वाकांक्षा सिर पर चढ़ी, झोपड़ी के चूहो से निपटने के लिए एक बिल्ली पाली। बिल्ली के लिए दूध की जरूरत पड़ी - तो गाय खरीद कर लाए। गाय के  साज-सभाल के लिए महिला की आवश्यकता पड़ी। महिला से शादी कर ली। परिवार बना। संत बनकर लोक कल्याण करने का लक्ष्य कही से कही चला गया। भौतिक आकाक्षांओ का जाल-जंजाल इतना बढ़ गया कि परमार्थ का लक्ष्य पूरा करने के लिए कुछ भी नही बचता था। सारी क्षमता उसी में खत्म हो जाती थी। सपनो का जमघट ही शेष रह जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें हमारे लक्ष्य की ओर ध्यान देना चाहिए।

महत्वाकांक्षा - रेखाकित शब्द का उचित अर्थ लिखिए।

  1. दयालु
  2. लायक न होना
  3. उन्नति को प्राप्त करने की इच्छा
  4. बलवान होना

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : उन्नति को प्राप्त करने की इच्छा

गद्यांश Question 15 Detailed Solution

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दिए गए विकल्प में विकल्प 3 'उन्नति प्राप्त करने की इच्छा' सही है क्योंकि यह महत्वाकांक्षा अर्थ है अन्य विकल्प गलत हैं। 

Key Points

  • महत्वाकांक्षा एक संज्ञा है। 
  • अर्थ: ऐसी आकांक्षा जिसमें ऊँचा होने का भाव हो।
  • उदाहरण: वह अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रहा है।
  • पर्यायवाची: उच्चाकांक्षा, ख़्वाब, ख्वाब, बुलंदपरवाज़ी, बुलंदपरवाजी, सपना। 

अन्य विकल्प:

  • दिए गये  विकल्पों में पहला विकल्प दयालु है जिसका अर्थ उस व्यक्ति से जिसके अंदर दया की भावना होती है यह महत्वाकांक्षा का अर्थ नहीं है इसीलिए यह सही नहीं है। 
  • दूसरा विकल्प लायक न होना भी महत्वकांक्षा का अर्थ नहीं है इसीलिए यह सही नहीं हो सकता है। 
  • चौथा विकल्प बलवान होना भी महत्वकांक्षा का अर्थ नहीं है इसीलिए यह सही नहीं है। 
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