Question
Download Solution PDFसर्वोपयुक्तं विकल्पं चिनुत-
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDFप्रश्नार्थ - सबसे उपयुक्त विकल्प है-
स्पष्टीकरण -
प्रयत्न - वर्णों का उच्चारण करते समय मुख के विभिन्न कुछ चेष्टाएँ करते हैं। इन स्थानों के द्वारा उच्चारण करने के चेष्टा को ही प्रयत्न कहते हैं अर्थात् वर्णों के उच्चारण में जो यत्न लगता है उसे प्रयत्न कहते हैं। उच्चारण में कुछ चेष्टाएँ मुख के अन्दर के भागों में होती है तथा कुछ बाहर के भागों में होती हैं, जिसके आधार पर प्रयत्न दो प्रकार के होते हैं- आभ्यन्तर प्रयत्न, बाह्य प्रयत्न
आभ्यन्तर प्रयत्न - पांच आभ्यन्तर प्रयत्न होते हैं -
- स्पृष्ट - क् से म् तक कवर्गादि पाँचों वर्गों के 25 वर्गों का स्पृष्ट प्रयत्न है, क्योंकि इनके उच्चारण में जिह्वा का कण्ठ, तालु आदि स्थानों पर पूरी तरह स्पर्श होता है।
- ईषत् स्पृष्ट - य, र, ल, व् का ईषत्-स्पृष्ट प्रयत्न होता है, क्योंकि इन अन्तःस्थ वर्गों के उच्चारण के समय जिह्वा का कण्ठ, तालु आदि स्थानों पर थोड़ा, थोड़ा स्पर्श होता है, पूरा नहीं।
- विवृत - अकार आदि समस्त स्वर वर्णों का विवृत प्रयत्न होता है। क्योंकि जिह्वा और मुख विवर के उपरी भाग के बीच अधिक से अधिक दूरी रहती है।
- ईषत् विवृत - श, ष, स्, ह वर्णों का ईषद् विवृत प्रयत्न है। इन ऊष्म अक्षरों के उच्चारण के समय जिहा और मुख विवार के उपरी भाग की दूरी अपेक्षाकृत कम होती है।
- संवृत् - ह्रस्व 'अ' का संवृत प्रयत्न होता है। प्रयोग में हस्व 'अ' संवृत होता है, परन्तु प्रक्रिया दशा में वह विवृत ही माना जाता है। इसके उच्चारण के समय मुख-विवार बहुत कुछ बन्द सा होता है, अतः इसे 'संवृत' कहते हैं।
उपर्युक्त स्पष्टीकरण से ज्ञात होता है-
- स्पृष्टम् = क, च, ट, त, अ, प - इन वर्णों में 'अ' वर्ण स्पष्ट नहीं है। अतः यह अनुचित पर्याय है।
- ईषत्स्पृष्टम् = य, र, ल, ब - इन वर्णों में 'ब' यह वर्गीय व्यंजन होने से 'स्पृष्ट' होता है। अतः यह अनुचित पर्याय है।
- विवृतम् = हृस्व अ, इ, उ - इन वर्णों में 'हृस्व अ' मात्र 'संवृत्' का वर्ण है। अतः इसे सबसे उचित नहीं कह सकते।
- ईषद्विवृतम् = श, ष, स, ह - इन सभी वर्णों का प्रयत्न ईषद्विवृतम् होने के कारण यह उचित पर्याय है।
अतः उचित पर्याय 'ईषद्विवृतम् - श, ष, स, ह' होता है।
Last updated on Jun 6, 2025
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