Question
Download Solution PDF"सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि
ते नर पाँवर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ।।"
'रामचरितमानस' में यह कथन किसने कहा था ?
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDF"सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि
ते नर पाँवर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि ।।"
'रामचरितमानस' में यह कथन कहा था - राम
Key Points
- कथन श्रीराम द्वारा 'रामचरितमानस' में कहा गया है।
- यह उन सिद्धांतों को दर्शाता है जो श्रीराम ने अपने जीवन में अपनाए थे।
- श्रीराम कहते हैं कि जो लोग शरण में आए हुए को त्याग देते हैं, उन्हें पापमय और हानिकर मानना चाहिए।
- यह श्रीराम के आदर्शों और मर्यादा पुरूषोत्तम के रूप में उनकी स्थिति को दर्शाता है।
Important Pointsरामचरितमानस -
- रचियता - तुलसीदास
- रचनाकाल - 1574 ई. (संवत् 1631) चैत्र शुक्ल रामनवमी मंगलवार को हुआ।
- समय - 2 वर्ष 7 माह और 26 दिन लगे।
- रामचरितमानस में सात कांड या सोपान है -
- बालकांड
- अयोध्या कांड
- अरण्यकांड
- किष्किंधा कांड
- सुंदरकांड
- लंकाकांड
- उत्तरकांड
- तुलसीदास ने सर्वप्रथम रामचरितमानस रसखान को सुनाया।
- रामचरितमानस की प्रथम टीका अयोध्या के बाबा राम चरण दास ने लिखी।
- अयोध्या कांड को रामचरितमानस का हृदय स्थल कहा जाता है।
- इस कांड में चित्रकूट सभा को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने एक अध्यात्मिक घटना की संज्ञा प्रदान की है।
- रामचरितमानस की रचना गोस्वामी ने स्वान्त सुखाय के साथ-साथ लोकहित लोकमंगल के लिए किया।
Additional Information तुलसीदास जी की रचनाएं-
- वैराग्य संदीपनी (1626)
- बरवै रामायण (1626)
- रामाज्ञा प्रश्नावली (1627)
- रामलला नहछु (1628)
- जानकी मंगल (1629)
- गीतावली (1630)
- विनय पत्रिका (1631)
- दोहावली (1631)
- कवितावली (1631)
- रामचरितमानस (1631)
- पार्वती मंगल (1643)
- कृष्ण गीतावली (1643)
Last updated on Jul 7, 2025
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