उच्चारण - स्थान MCQ Quiz - Objective Question with Answer for उच्चारण - स्थान - Download Free PDF

Last updated on Apr 12, 2025

Latest उच्चारण - स्थान MCQ Objective Questions

उच्चारण - स्थान Question 1:

निम्नलिखित वर्णानां मध्ये अन्तस्थ वर्णः अस्ति -

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : य

उच्चारण - स्थान Question 1 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : निम्नलिखित वर्णों में अन्तस्थ वर्ण है -

अन्त:स्थ वर्ण :

  • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को कुछ रोककर अल्प शक्ति के साथ किया जाता है, वे अन्त:स्थ व्यञ्जन कहलाते हैं।
  • ‘यणोऽन्तःस्थाः’ अर्थात् यण् अन्त:स्थ व्यञ्जन हैं।
  • इनकी संख्या चार है - य्, व, र, ल्।

 

अतः स्पष्ट है, की य् अन्तस्थ वर्ण होता है

अतिरिक्त जानकारी :

  • व्यञ्जन के भेद-उच्चारण की भिन्नता के आधार पर व्यञ्जनों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है - 
    • स्पर्श - 
      • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण करने में जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श करती है और वायु कुछ क्षण के लिए रुककर झटके से निकलती है, वे स्पर्श संज्ञक व्यञ्जन कहलाते हैं। ‘कादयो मावसाना: स्पर्शा:’ अर्थात् क से म पर्यन्त व्यञ्जन स्पर्श संज्ञक हैं। इनकी संख्या 25 है। ये निम्न पाँच वर्गों में विभक्त हैं।
    • ऊष्म - 
      • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को धीरे-धीरे रोककर रगड़ के साथ निकालकर किया जाता है, वे ऊष्म व्यञ्जन कहे जाते हैं। ‘शल ऊष्माण:’ अर्थात्- शल्-श्, स्, ह ऊष्म संज्ञक व्यञ्जन हैं। 
    • अन्त:स्थ -
      • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को कुछ रोककर अल्प शक्ति के साथ किया जाता है, वे अन्त:स्थ व्यञ्जन कहलाते हैं।

उच्चारण - स्थान Question 2:

स्वर वर्णानां उच्चारण प्रयत्ने 'आ' स्वरोऽस्ति -

  1. संवृतम् 
  2. विवृतम् 
  3. अर्धसंवृतम् 
  4. अर्ध विवृतम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : विवृतम् 

उच्चारण - स्थान Question 2 Detailed Solution

प्रश्नार्थ - स्वर वर्णों का उच्चारण प्रयत्न में 'आ' स्वर है-

सूत्र - तुल्यास्यप्रयत्नं सवर्णम्।

वृत्तिः - ताल्वादिस्थानमाभ्यन्तरप्रयत्नश्चेत्येतद्द्वयं यस्य येन तुल्यं तन्मिथः सवर्णसंज्ञं स्यात्। अर्थात् तालु आदि स्थान और आभ्यन्तर प्रयत्न ये दो जिस वर्ण का जिस वर्ण के साथ तुल्य/समान हों, वे वर्ण आपस में सवर्णसंज्ञक होते हैं।

उदाहरण - अ, आ - ये दोनों सवर्ण संज्ञक है। जिनका उच्चारण स्थान कण्ठ समान है। इनका प्रयत्न भी विवृत समान है। विवृतं स्वराणाम्

अतः स्पष्ट है 'आ' विवृत्त स्वर है।

उच्चारण - स्थान Question 3:

अन्तस्थः वर्णः अस्ति-

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : ल

उच्चारण - स्थान Question 3 Detailed Solution

प्रश्न का हिंदी भाषांतर : अन्तस्थ वर्ण है-

अन्त:स्थ वर्ण :

  • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को कुछ रोककर अल्प शक्ति के साथ किया जाता है, वे अन्तःस्थ व्यञ्जन कहलाते हैं।
  • ‘यणोऽन्तःस्थाः’ अर्थात् यण् अन्तःस्थ व्यञ्जन हैं।
  • इनकी संख्या चार है - य्, व, र, ल्।

 

अतः स्पष्ट है, की ल् इस प्रश्न का सही उत्तर हैं

अतिरिक्त जानकारी :

  • व्यञ्जन के भेद-उच्चारण की भिन्नता के आधार पर व्यञ्जनों को निम्न तीन भागों में विभाजित किया गया है - 
    • स्पर्श - 
      • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण करने में जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श करती है और वायु कुछ क्षण के लिए रुककर झटके से निकलती है, वे स्पर्श संज्ञक व्यञ्जन कहलाते हैं। ‘कादयो मावसाना: स्पर्शा:’ अर्थात् क से म पर्यन्त व्यञ्जन स्पर्श संज्ञक हैं। इनकी संख्या 25 है। ये निम्न पाँच वर्गों में विभक्त हैं।
    • ऊष्म - 
      • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को धीरे-धीरे रोककर रगड़ के साथ निकालकर किया जाता है, वे ऊष्म व्यञ्जन कहे जाते हैं। ‘शल ऊष्माण:’ अर्थात्- शल्- श्, स्, ह ऊष्म संज्ञक व्यञ्जन हैं। 
    • अन्त:स्थ -
      • जिन व्यञ्जनों का उच्चारण वायु को कुछ रोककर अल्प शक्ति के साथ किया जाता है, वे अन्त:स्थ व्यञ्जन कहलाते हैं।

उच्चारण - स्थान Question 4:

दन्त्यवर्णाः के?

  1. लृतुरसाः।
  2. उपूपद्मानीयाः।
  3. ऋटुरषाः।
  4. यरलवाः।
  5. उत्तरं न दातुमिच्छामि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : लृतुरसाः।

उच्चारण - स्थान Question 4 Detailed Solution

प्रश्नार्थ - दन्तवर्ण  कौन से है?

वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा जिस स्थान को स्पर्श करती है अथवा जिस स्थान से ध्वनि निकलती है उसे उच्चारण स्थान कहते हैं। मुख्य रूप से 6 उच्चारण स्थान होते हैं -

उच्चारणस्थान

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठ्य

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

अ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

तालव्य

इचुयशानां तालुः

इ, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

मूर्द्धन्य

ऋटुरषाणां मूर्द्धा

ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

दन्त्य

लृतुलसानां दन्ताः

लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

ओष्ठ्य

उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

उ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

नासिक्य

ञमङणनानां नासिका च

ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।


अतः, उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि ‘लृ-त वर्ग-ल स यह दन्त है'।

उच्चारण - स्थान Question 5:

कण्ठ्य ध्वनिः नास्तिः

  1. ख्
  2. ह्
  3. च्
  4. उत्तरं न दातुमिच्छामि

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : च्

उच्चारण - स्थान Question 5 Detailed Solution

प्रश्नार्थ - कण्ठ्य ध्वनि नहीं है-

स्पष्टीकरण - 'अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः' इस सूत्र के अनुसार अ, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्), ह् और विसर्ग का उच्चारण स्थान कण्ठ है।

अतः पर्यायों में से च् वर्ण कण्ठ्य नहीं 'तालव्य' होता है।

Hint 

उच्चारणस्थान

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठ्य

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

अ, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

तालव्य

इचुयशानां तालुः

इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

मूर्द्धन्य

ऋटुरषाणां मूर्द्धा

ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

दन्त्य

लृतुलसानां दन्ताः

लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

ओष्ठ्य

उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय (ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

नासिक्य

ञमङणनानां नासिका च

ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

Top उच्चारण - स्थान MCQ Objective Questions

बाह्य-प्रयन्ताः कतिधा भवन्ति -

  1. पञ्च 
  2. एकादश 
  3. द्वादश 
  4. सप्त 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : एकादश 

उच्चारण - स्थान Question 6 Detailed Solution

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प्रयत्न - वर्णों का उच्चारण करते समय मुख के विभिन्न कुछ चेष्टाएँ करते हैं। इन स्थानों के द्वारा उच्चारण करने के चेष्टा को ही प्रयत्न कहते हैं अर्थात् वर्णों के उच्चारण में जो यत्न लगता है उसे प्रयत्न कहते हैं। उच्चारण में कुछ चेष्टाएँ मुख के अन्दर के भागों में होती है तथा कुछ बाहर के भागों में होती हैं।

Important Points 

बाह्य प्रयत्न - ग्यारह बाह्य प्रयत्न होते हैं -

  1. विवार - जिन वर्णो के उच्चारण के समय स्वरतन्त्रियों के (दूर-दूर रहने के कारण कण्ठद्वार काकल) खुला रहता है, उसे विवार कहते हैं।
  2. संवार - जिन वर्णो के उच्चारण के विवार के विपरीत जब स्वरतन्त्रियां सट जाती हैं, उसे संवार कहते हैं।
  3. श्वास - जिन वर्णो के उच्चारण के समय उनसे बाहर निकलने वाली श्वास सदृश होती है। अतः उसे श्वास कहते हैं।
  4. नाद - जिन वर्णो के उच्चारण के समय निःश्वास वायु के निकलते समय कम्पन पैदा होता है। अतः उसे नाद कहते हैं।
  5. घोष - जिन वर्णो के उच्चारण के समय में जिन ध्वनियो का गूंज के साथ उच्चारण होता है। उन्हें घोष कहते हैं अर्थात् स्वर तत्रियों के दूर-दूर रहने पर विवार, श्वास तथा अघोष प्रयत्न होते हैं और उनके सट जाने पर संवार, नाद तथा घोष (या सघोष) प्रयत्न होते हैं।
  6. अघोष - जिन वर्णो के उच्चारण के समय स्वरतन्त्रियों के खुले रहने के कारण जो वर्ण उच्चारण किये जाते हैं, वे विशेष गूंज पैदा नहीं करते अतः अघोष कहलाते हैं।
  7. अल्पप्राण - जिन वर्णो के उच्चारण करने में फेफड़े से निकलने वाली वायु (प्राण) का अल्प उपयोग हो उन्हें 'अल्पप्राण' कहते हैं।
  8. महाप्राण - जिनके उच्चारण में वायु का अधिक उपयोग हो उन्हें 'महाप्राण' कहते हैं।
  9. उदात्त - स्वरतन्त्रियों में कम्पन की आवृत्ति अधिक होने पर 'उदात्त' स्वर उत्पन्न होते हैं। 
  10. अनुदात्त - स्वरतन्त्रियों में कम्पन की आवृत्ति अधिक होने पर ‘अनुदात्त' स्वर उत्पन्न होते हैं।
  11. स्वरित - स्वरतन्त्रियों के कम्पन की आवृत्ति मिश्रित होने पर स्वर उत्पन्न होते हैं।

अतः स्पष्ट है कि श्वास बाह्य प्रयत्न है।

Additional Information 

आभ्यन्तर प्रयत्न - पांच आभ्यन्तर प्रयत्न होते हैं - 

  • स्पृष्ट - क् से म् तक कवर्गादि पाँचों वर्गों के 25 वर्गों का स्पृष्ट प्रयत्न है, क्योंकि इनके उच्चारण में जिह्वा का कण्ठ, तालु आदि स्थानों पर पूरी तरह स्पर्श होता है।
  • ईषत् स्पृष्ट - य, र, ल, व् का ईषत्-स्पृष्ट प्रयत्न होता है, क्योंकि इन अन्तःस्थ वर्गों के उच्चारण के समय जिह्वा का कण्ठ, तालु आदि स्थानों पर थोड़ा, थोड़ा स्पर्श होता है, पूरा नहीं।
  • विवृत - अकार आदि समस्त स्वर वर्णो का विवृत प्रयत्न होता है। क्योंकि जिहा और मुख विवर के उपरिभाग के बीच अधिक से अधिक दूरी रहती है।
  • ईषत् विवृत - श, ष, स्, ह, वर्णों का ईषद् विवृत प्रयत्न है। इन ऊष्म अक्षरों के उच्चारण के समय जिहा और मुख विवर के उपरिभाग की दूरी अपेक्षाकृत कम होती है।
  • संवृत् - ह्रस्व 'अ' का संवृत प्रयत्न होता है। प्रयोग में हस्व 'अ' संवृत होता है, परन्तु प्रक्रिया दशा में वह विवृत ही माना जाता है। इसके उच्चारण के समय मुख-विवर बहुत कुछ बन्द सा होता है अतः इसे 'संवृत' कहते हैं।

अन्तस्थः वर्ण है 

  1. श् ष् स् ह् 
  2. अण् (अ इ उ) 
  3. यण् (य् व् र् ल्) 
  4. विसर्ग तथा अनुनासिक

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : यण् (य् व् र् ल्) 

उच्चारण - स्थान Question 7 Detailed Solution

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संस्कृत में वर्णमाला स्वर(अच्) और व्यंजन(हल्) इनसे बनी है तथा इनका उच्चारण के अनुसार वर्गीकरण किया है।

स्वर के प्रकार-

  1. ह्रस्व स्वर- जिस स्वरों का उच्चारण करने के लिये एक मात्रा का अवसर लगता है उन्हें ह्रस्व स्वर कहते है। उदा.- अ इ उ ऋ लृ
  2. दीर्घ स्वर- जिस स्वरों का उच्चारण करने के लिये दों मात्राओं का अवसर लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते है। उदा.- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
  3. प्लुत स्वर- जिस स्वरों का उच्चारण करने के लिये तीन मात्राओं का अवसर लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते है। इनके आगे ३ लगते है। उदा.- आ३ 

व्यंजन के प्रकार

स्पर्श व्यंजन-  जब वर्णो के उच्चारण के समय मुख के दों अवयव एक दूसरे को स्पर्श करते है तब उन वर्णो को स्पर्श व्यंजन कहते है।

अन्तःस्थ व्यंजन- जो वर्ण स्वर और व्यंजन दोनों के बिच अन्तः होते है उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है। इन व्यंजन वर्णों को अर्धस्वर भी कहते हैं।

उष्म व्यंजन- जो वर्ण उच्चारण करते समय मुख से ऊष्मा बाहर आती हैं उन्हें ऊष्म व्यंजन कहते हैं।

व्यंजन-

स्पर्श व्यंजन

क्  ख्  ग  घ्  ङ्

च्  छ्  ज्  झ्  ञ्

ट्  ठ्  ड्  ढ्  ण्

त्  थ्  द्  ध्  न्

प्  फ्  ब्  भ्  म्

वर्गीय व्यंजन

अन्तःस्थ व्यंजन

य्  र्  ल्  व्

अवर्गीय व्यंजन

उष्म व्यंजन

श्  ष्  स्  ह्

अतः उपर्युक्त विकल्पों में से यण् (य् व् र् ल्) उचित है। अन्य विकल्प असंगत है।

Additional Information

विसर्ग (:) और अनुस्वार (∸) स्वर और व्यंजन दोनों से अलग रहकर अयोगवाह कहे जाते हैं।

'ह' वर्णस्य उच्चारणस्थानं विद्यते

  1. मूर्धा 
  2. कण्ठः
  3. तालु
  4. नासिका ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : कण्ठः

उच्चारण - स्थान Question 8 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - ‘ह’ स्वर का उच्चारण स्थान होता है -

स्पष्टीकरण -

  • वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा जिस स्थान को स्पर्श करती है अथवा जिस स्थान से ध्वनि निकलती है, उसे उच्चारण स्थान कहते हैं।
  • मुख्य रूप से 6 उच्चारण स्थान होते हैं। जो निम्नलिखित हैं-

उच्चारणस्थान

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठ्य

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

अ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

तालव्य

इचुयशानां तालुः

इ, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

मूर्द्धन्य

ऋटुरषाणां मूर्द्धा

ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

दन्त्य

लृतुलसानां दन्ताः

लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

ओष्ठ्य

उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

उ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

नासिक्य

ञमङणनानां नासिका च

ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

 

इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

अतः उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि ‘ह’ का उच्चारण स्थान `कण्ठः' है।

Additional Information

दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठतालव्य

एदैतो कण्ठतालु

ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

दन्तोष्ठं

वकारस्य दन्तोष्ठं

व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

कण्ठोष्ठं ओदौतो कण्ठोष्ठ्म् ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।

अन्तःस्थवर्णानां क्रमः कः ?

  1. व्, य्, र्, ल्    
  2. य्, र्, ल्‌, व् ‌
  3. य्, र्, व्  ल्‌
  4. य्‌, व्‌, र्, ल् 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : य्‌, व्‌, र्, ल् 

उच्चारण - स्थान Question 9 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - अन्तःस्थ वर्णों का क्रम क्या है?

स्पष्टीकरण :- 

  • नियम - यणोऽन्तस्थाः
  • अर्थ - इस नियम के अनुसार चार अन्तःस्थ वर्ण हैं, जो यण् प्रत्याहार के अन्तर्गत आते हैं। 
  • यण् प्रत्याहार - य, व, र, ल।
  • यण प्रत्याहार को 14 महेश्वर सूत्रों में से लिया गया है, जिसमें हयवरट् और लण् सूत्र से क्रमशः य, व, र, ल को ग्रहण किया गया है।

 

इस नियम से स्पष्ट होता है कि य, व, र्, ल् सही उत्तर होगा।

Additional Information

माहेश्वर सूत्र 14 हैं।

  1. अइउण्
  2. ऋलृक्
  3. एओङ्
  4. ऐऔच्
  5. हयवरट्
  6. लण्
  7. ञमङ्णनम्
  8. झभञ्
  9. घढधष्
  10. जबगडदश्
  11. खफछठथचटतव्
  12. कपय्
  13. शषसर्
  14. हल्

'व' कारस्य उच्चारणस्थानं विद्यते

  1. कण्ठतालु
  2. दन्तोष्ठम् 
  3. कण्ठोष्ठम् 
  4. ओष्ठौ 

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : दन्तोष्ठम् 

उच्चारण - स्थान Question 10 Detailed Solution

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प्रश्न का हिंदी अनुवाद -  'व' कार का उच्चारण स्थान है -

  • वकारास्य दन्त्तोष्ठम्’ इस सूत्र के अनुसार 'व्' का उच्चारण स्थान ‘दन्त्तोष्ठ’ होता है।

Hint

उच्चारण स्थान

स्वर

व्यञ्जन

वर्गीय

अन्तस्थ

उष्म

कण्ठ

अ आ

क् ख् ग् घ् ङ्

 

ह्  :(विसर्ग)

तालु

इ ई

च् छ् ज् झ् ञ्

य्

श्

मूर्धा

ऋ ॠ

ट् ठ् ड् ढ् ण्

र्

ष्

दन्त

त् थ् द् ध् न्

ल्

स्

ओष्ठ

उ ऊ

प् फ् ब् भ् म्

 

 

कण्ठ और तालु

ए ऐ

 

 

 

कण्ठोष्ठ

ओ औ

 

 

 

दन्तोष्ठ

 

व्

 

 

नासिका

अनुस्वार (स्वराश्रित)

 

 

 

मूर्धा उच्चारणस्थानं कथ्यते

  1. 'ल' वर्णस्य
  2. 'र' वर्णस्य
  3. 'य' वर्णस्य
  4. 'न' वर्णस्य ।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : 'र' वर्णस्य

उच्चारण - स्थान Question 11 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - मूर्धा उच्चारणस्थान होता है -

स्पष्टीकरण -

वर्णों का उच्चारण करते समय जिह्वा जिस स्थान को स्पर्श करती है अथवा जिस स्थान से ध्वनि निकलती है उसे उच्चारण स्थान कहते हैं। मुख्य रूप से 6 उच्चारण स्थान होते हैं -

उच्चारणस्थान

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठ्य

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

अ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

तालव्य

इचुयशानां तालुः

इ, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

मूर्द्धन्य

ऋटुरषाणां मूर्द्धा

ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

दन्त्य

लृतुलसानां दन्ताः

लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

ओष्ठ्य

उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

उ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

नासिक्य

ञमङणनानां नासिका च

ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

 

इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

अतः, उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट है कि ‘ऋटुरषाणां मूर्द्धा' से 'र्' का उच्चारणस्थान मूर्द्धा  है।

Additional Information

दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठतालव्य

एदैतो कण्ठतालु

 और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

दन्तोष्ठं

वकारस्य दन्तोष्ठं

व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

कण्ठोष्ठं ओदौतो कण्ठोष्ठ्म् ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।
 

कस्मिन् प्रयत्ने एकोन - र्विंशतिः वर्णाः भवन्ति ? 

  1. महाप्राणे
  2. संवारे 
  3. नादे
  4. अल्पप्राणे

Answer (Detailed Solution Below)

Option 4 : अल्पप्राणे

उच्चारण - स्थान Question 12 Detailed Solution

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प्रश्न का अनुवाद - किस प्रयत्न में १९ वर्ण हे?
स्पष्टीकरण -  अल्पप्राण में उन्नीस वर्ण होते है। 

Key Points

प्रयत्न -

वर्णों के उच्चारण करने की चेष्टा को प्रयत्न कहते हैं प्रयत्न दो प्रकार का होता है।

आभ्यन्तर का अर्थ है भीतर या आभ्यान्तर प्रयत्न से - तात्पर्य उस चेष्टा से है, जो वर्णों के उच्चारण के पूर्व मुख के अन्दर होती है।

आभ्यन्तर प्रयत्न पांच प्रकार का होता है।

  1.  स्पृष्ट
  2.  ईषत् स्पृष्ट
  3.  विवृत
  4.  ईषत् विवृत
  5.  संवृत

बाह्य प्रयत्न मुख जब वर्ण बाहर निकलने लगते हैं उस समय उच्चारण की जो चेष्टा होती है, उसे बाह्य चेष्टा कहते हैं बाह्य प्रत्यन 11 प्रकार के होते हैं।

  1. विवार  
  2. संवार  
  3. श्वास  
  4. नाद  
  5. घोष  
  6. अघोष  
  7. अल्पप्राण 
  8. महाप्राण  
  9. उदात्त  
  10. अनुदात्त 
  11. स्वरित  Important Points

अल्पप्राण - अल्पप्राण का अर्थ है- थोड़ा प्राण का अर्थ होता है - वायु। जिस वर्ण से बोलने के लिए भीतर से कम वायु की आवश्यकता होती है। उसे अल्पप्राण कहते हैं। 

"वर्गाणां प्रथमा तृतीया पंचमा यणश्च अल्पप्राणाः
वर्गों के प्रथम, दूसरे, तीसरे, वर्ण और यण् (यवरल) का बाह्य प्रयत्न अल्पप्राण होगा।
इस प्रकार १९ व्यञ्जन वर्णो का बाह्य प्रयत्न अल्प प्राण होगा।
अतः स्पष्ट है कि, महाप्राण में उन्नीस वर्ण होते है।

दन्तोष्ठं वर्णः अस्ति

  1. तकारः 
  2. वकारः
  3. उकारः 
  4. सकारः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : वकारः

उच्चारण - स्थान Question 13 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - 'दन्तोष्ठं' वर है

स्पष्टीकरण - व् का उच्चारण स्थान दन्तोष्ठं होता है।

  • उच्चारण स्थान - मुख के जिस भाग से वर्ण का उच्चारण किया जाता है, उस स्थान को उच्चारण स्थान कहते हैं।
  • व् का उच्चारण स्थान दन्तोष्ठं है।
  • वकारस्य दन्तोष्ठम् - इस वृत्ति के अनुसार व् का उच्चारण स्थान दन्तोष्ठम् होता है।

 

अतः स्पष्ट है कि वकार दन्तोष्ठम् होता है।

Additional Information

निम्नलिखित तालिका के द्वारा वर्णों (स्वर और व्यंजन) के उच्चारण स्थान को प्रदर्शित किया गया है-

सू त्र वर्ण उच्चारण स्थान
अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः अ, आ, क, ख, ग, घ, ङ वर्ग, ह, विसर्ग इन वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ होता है।
इचुयशानां तालुः  इ, ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श इन वर्णों का उच्चारण स्थान तालु होता है।
ऋटुरषाणां मूर्धा ऋ, ट वर्ग, र, ष इन वर्णों का उच्चारण स्थान मूर्धा होता है।
लृतुलसानां दन्ताः लृ, त वर्ग, ल, स इन वर्णों का उच्चारण स्थान दन्त होता है।
उपूपध्मानीयानामोष्ठौ उ, ऊ, प वर्ग, उपध्मानीय विसर्ग इन वर्णों का उच्चारण स्थान ओष्ठ होता है।
ञमङणनानां नासिका च ञ, म, ङ, ण, न इन पाँचो वर्णों का उच्चारण स्थान नासिका होता है।
एदैतोः कण्ठतालु ए, ऐ इन वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ और तालु होता है।
ओदौतोः कण्ठोष्ठम् ओ, औ इन वर्णों का उच्चारण स्थान कण्ठ और ओष्ठ होता है।
वकारस्य दन्तोष्ठम् इन वर्णों का उच्चारण स्थान दन्त और ओष्ठ होता है।
जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् जिह्वामूलीय विसर्ग इसका उच्चारण स्थान जिह्वामूल होता है।
नासिका अनुस्वारस्य अनुस्वार इसका उच्चारण स्थान नासिका होता है

'अ' स्वरस्य उच्चारणस्थानम् अस्ति

  1. ओष्ठौ
  2. कण्ठः
  3. दन्ताः
  4. मुखम्

Answer (Detailed Solution Below)

Option 2 : कण्ठः

उच्चारण - स्थान Question 14 Detailed Solution

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प्रश्न का हिन्दी अनुवाद - 'अ' स्वर का उच्चारण स्थान है - 

स्पष्टिकरण - 'अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः' इस सूत्र के अनुसार ’ का उच्चारण स्थान ‘कण्ठ’ होता है-

Key Points

उच्चारण स्थान

स्वर

व्यञ्जन

वर्गीय

अन्तस्थ

उष्म

कण्ठ

क् ख् ग् घ् ङ्

 

ह्  :(विसर्ग)

तालु

इ ई

च् छ् ज् झ् ञ्

य्

श्

मूर्धा

ऋ ॠ

ट् ठ् ड् ढ् ण्

र्

ष्

दन्त

त् थ् द् ध् न्

ल्

स्

ओष्ठ

उ ऊ

प् फ् ब् भ् म्

 

 

कण्ठ और तालु

ए ऐ

 

 

 

कण्ठोष्ठ

ओ औ

 

 

 

दन्तोष्ठ

 

 

 

नासिका

अनुस्वार (स्वराश्रित)

 

 

 

 

Additional Information

उच्चारणस्थान

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठ्य

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

तालव्य

इचुयशानां तालुः

इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

मूर्द्धन्य

ऋटुरषाणां मूर्द्धा

ऋ, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

दन्त्य

लृतुलसानां दन्ताः

लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

ओष्ठ्य

उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

नासिक्य

ञमङणनानां नासिका च

ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

 

इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठतालव्य

एदैतो कण्ठतालु

ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

दन्तोष्ठं

वकारस्य दन्तोष्ठं

व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

कण्ठोष्ठं ओदौतो कण्ठोष्ठ्म् ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।

‘ऋ’ स्वरस्य उच्चारणस्थानं भवति-

  1. दन्ताः
  2. जिव्हा
  3. मूर्धा
  4. कण्ठः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : मूर्धा

उच्चारण - स्थान Question 15 Detailed Solution

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प्रश्नानुवाद - ‘ऋ’ स्वर का उच्चारणस्थान होता है-

'ऋटुरषाणां मूर्धा' इस सूत्र के अनुसार 'ऋ' स्वर का उच्चारण स्थान ‘मूर्धा’ होता है।

Hint

उच्चारण स्थान

स्वर

व्यञ्जन

वर्गीय

अन्तस्थ

उष्म

कण्ठ

अ आ

क् ख् ग् घ् ङ्

 

ह्  :(विसर्ग)

तालु

इ ई

च् छ् ज् झ् ञ्

य्

श्

मूर्धा

ट् ठ् ड् ढ् ण्

र्

ष्

दन्त

त् थ् द् ध् न्

ल्

स्

ओष्ठ

उ ऊ

प् फ् ब् भ् म्

 

 

कण्ठ और तालु

ए ऐ

 

 

 

कण्ठोष्ठ

ओ औ

 

 

 

दन्तोष्ठ

 

 

 

नासिका

अनुस्वार (स्वराश्रित)

 

 

 

 

Additional Information

उच्चारणस्थान

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठ्य

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

अ, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

तालव्य

इचुयशानां तालुः

इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

मूर्धन्य

ऋटुरषाणां मूर्धा

, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

दन्त्य

लृतुलसानां दन्ताः

लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

ओष्ठ्य

उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

नासिक्य

ञमङणनानां नासिका च

ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

 

इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठतालव्य

एदैतो कण्ठतालु

ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

दन्तोष्ठं

वकारस्य दन्तोष्ठं

व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

कण्ठोष्ठं ओदौतो कण्ठोष्ठ्म् ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।
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