प्रयोगवाद MCQ Quiz in मराठी - Objective Question with Answer for प्रयोगवाद - मोफत PDF डाउनलोड करा
Last updated on Mar 17, 2025
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प्रयोगवाद Question 1:
‘असाध्यवीणा' कविता में वर्णित प्रियंवद के नीरव एकालाप में आए संबोधनों को, पहले से बाद के क्रम में लगाइए।
A. ओ दीर्घकाय !
B.ओ स्वर - संभार !
C. ओ शरण्य ।
D.ओ विशाल तरु।
E. ओ रस - प्लावन !
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए :
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 1 Detailed Solution
सही उत्तर है- D, A, B, E, C
Key Pointsअसाध्य वीणा-
- रचनाकार -अज्ञेय
- प्रकाशन वर्ष -1961 ई.
- यह कविता 'आंगन के पार द्वार' काव्य संग्रह में संकलित है।
- विषय-
- यह कविता पाश्चात्य कथा को भारतीय मूल में रूपांतरित करके रचित है।
- किरीटी नामक वृक्ष से यह वीणा बनायी गयी है।
- दरबार के समस्त कलावंत इसे बजाने में असमर्थ है।
- सभी की विद्या व्यर्थ हो जाती है क्योकि इस वीणा को केवल एक सच्चा साधक ही साध सकता है।
- अन्त में इस ‘असाध्य वीणा’ को केशकम्बली प्रियंवद ने साधकर दिखाया।
- जब केशकम्बली प्रियंवद ने असाध्य वीणा को बजाकर दिखाया तब उससे निकलने वाले स्वरों को राजा,रानी और प्रजाजनों ने अलग-अलग सुना।
Important Pointsअज्ञेय-
- जन्म-1911-1987 ई.
- तार सप्तक(1943 ई.) के प्रणेता है।
- प्रयोगवादी कवि है।
- मुख्य रचनाएँ-
- भग्नदूत(1933 ई.)
- चिंता(1942 ई.)
- इत्यलम्(1946 ई.)
- हरी घास पर क्षणभर(1949 ई.)
- इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये(1957 ई.) आदि।
Additional Informationकविता का सार-
- असाध्य वीणा जीवन का प्रतीक है, हर व्यक्ति को अपनी भावना के अनुरूप ही उसकी स्वर लहरी प्रतीत होती है।
- कला की विशिष्टता उसके अलग-अलग सन्दर्भों में , अलग-अलग अर्थो में होती है।
- ‘असाध्य वीणा’ को वही साध पाता है जो सत्य को एवं स्वयं को शोधता है या वो जो परिवेश और अपने को भूलकर उसी के प्रति समर्पित हो जाता है।
- बौद्ध दर्शन में इसे ‘तथता’ कहा गया है जिसमे स्वयं को देकर ही सत्य को पाया जा सकता है।
प्रयोगवाद Question 2:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की कृति है
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 2 Detailed Solution
कितनी नावों पर कितनी बार कृति सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की है।
कितनी नावों पर कितनी बार (कविता/ कविता संग्रह)
- लेखक - सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय'
- विधा - कविता
- प्रकाशन वर्ष - सन् 1983
- प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ
- पुरस्कार - ज्ञानपीठ पुरस्कार
Important Pointsअन्य विकल्प -
इरावती (अपूर्ण उपन्यास)
- लेखक - जयशंकर प्रसाद
- विधा - उपन्यास
- प्रकाशन वर्ष - सन् 1938
- स्थान - इलाहाबाद
मगध
- लेखक - श्रीकांत वर्मा
- विधा - काव्य / कविता-संग्रह
- प्रकाशन वर्ष - सन् 1987
- पुरस्कार - साहित्य अकादमी
चाँद का मुँह टेढ़ा है
- लेखक - गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
- विधा - कविता
- प्रकाशन वर्ष - 1 जनवरी, सन् 2004
- प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ
Additional Informationकितनी नावों पर कितनी बार कविता -
कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी डगमग नावों में बैठ कर
मैं तुम्हारी ओर आया हूँ
ओ मेरी छोटी-सी ज्योति !
कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी
पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में
पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल।
कितनी बार मैं,
धीर, आश्वस्त, अक्लांत -
ओ मेरे अनबुझे सत्य ! कितनी बार... (1)
और कितनी बार कितने जगमग जहाज़
मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर
किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में
जहाँ नंगे अंधेरों को
और भी उघाड़ता रहता है
एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश -
जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते
केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य-तथ्य-
सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ...
कितनी बार मुझे
खिन्न, विकल, संत्रस्त -
कितनी बार ! (2)
प्रयोगवाद Question 3:
'मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में', 'असाध्य वीणा' में यह उक्ति किसकी है?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 3 Detailed Solution
मैं तो डूब गया था स्वयं शून्य में', 'असाध्य वीणा' में यह उक्ति 'प्रियंवद की' है।
- पंक्ति का अर्थः- (जब प्रियंवद वीणा को बजाता है तो स्वयं को संपूर्ण समर्पण करके अलौकिक (शून्य) स्थिति में पहुँच जाता हैं, मानो उसमें डूब जाता हैं।)
Key Points
- असाध्य वीणा अज्ञेय की रचना है।
- असाध्य वीणा कविता आँगन के पार द्वारा (1961) कविता संग्रह में है।
- असाध्य वीणा एक लंबी कविता है, इसका मूल भाव अहं का विसर्जन है।
असाध्य वीणा कविता के प्रमुख पात्रः-
- प्रियंवद, राजा, रानी, अन्य जन।
अज्ञेय की अन्य प्रमुख रचनाएँ:-
- भग्नदूत (1933), चिंता (1942), इत्यलम् (1946), हरी घास पर क्षण भर (1949), इंद्रधनुष रौंदे हुए ये (1959) आदि।
Additional Information
असाध्य वीणा के प्रमुख तथ्यः-
कविता | संबंधित तथ्य |
असाध्य वीणा |
1) लूंगामिन नामक घाटी में एक विशाल किरी वृक्ष था। 2) जिसमे किसी जादूगर ने एक वीणा का निर्माण किया। 3) अनेक वाद्य कलाकार इस वीणा को नही बजा सके। 4) अंत में वीणा का नाम असाध्य पड़ गया। 5) तब जा कर प्रियंवद नाम के एक साधक ने उस विणा को साधा (बजाया)। |
प्रयोगवाद Question 4:
'हरी घास पर क्षण भर' किसकी काव्य रचना है?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 4 Detailed Solution
- हरी घास पर क्षण भर, एक बेहतरीन काव्य संग्रह है, इसके लेखक हिंदी के अद्वितीय लेखक अज्ञेय है।
- अत: यहाँ सही उत्तर 3) अज्ञेय है।
- अज्ञेय का पूरा नाम - सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय
- हरी घास पर क्षण भर - कविता संग्रह - सन् 1949
- 1964 में आँगन के पार द्वार पर साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1979 में/कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ।
Key Points
- अज्ञेय के काव्य संग्रह -
- इत्यलम् - 1946
- कितनी नावों में कितनी बार - 1967
- पहले में सन्नाटा बुनता हूं - 1973
- नदी की बांक छाया - 1981
- प्रयोगवाद के प्रवर्तक।
- अस्तित्ववाद में आस्था रखने वाले कवि।
अन्य महत्वपूर्ण काव्य संग्रह -
- भग्नदूत (प्रथम काव्य संग्रह) - 1933
- हरी घास पर क्षण भर - 1949
- बावरा अहेरी - 1954
- इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये - 1957
- अरी ओ करुणा प्रभामय - 1959
- आंगन के पार द्वार - 1961
- सुनहले शैवाल - 1966
प्रमुख कविताएं -
- असाध्य वीणा (एक लम्बी कविता)
- कलगी बाजरे की
- नदी के द्वीप
- सांप
- हरी घास पर क्षण भर
- जितना तुम्हारा सच
- शब्द और सत्य
- यह दीप अकेला
- प्रयोगवाद तथा नई कविता के शलाका पुरुष
- तार सप्तक, दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक का संपादन किया।
- 1964 में आंगन के पर द्वार पर साहित्य अकादमी
- 1978 में कितनी नावों में कितनी बार पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार
- तार सप्तक के कवि (कालक्रमानुसार) -
- अज्ञेय
- रामविलास शर्मा
- गजानन माधव मुक्तिबोध
- प्रभाकर माचवे
- नेमिचन्द्र जैन
- गिरिजा कुमार माथुर
- भारत भूषण अग्रवाल
प्रयोगवाद Question 5:
प्रयोगवाद के संबंध में इनमें से कौन-से कथन नामवर सिंह के हैं ?
A. प्रयोगशीलता व्यक्तिगत अन्वेषण की वस्तु है।
B. प्रयोगवादी कवि यथार्थवादी हैं। वे भावुकता के स्थान पर ठोस बौद्धिकता को स्वीकार करते हैं।
C. कुल मिलाकर यह चरम व्यक्तिवाद ही प्रयोगवाद का केंद्र बिंदु है।
D. आरंभिक व्यक्तिवादी प्रयोगवाद ने 'प्रतिरोध और युयुत्सुभाव का नारा दिया'।
E 'प्रयोगवाद' नाम भ्रामक है, क्योंकि इस नाम से यह भाव टपकता है कि इन कवियों ने प्रयोग को साध्य मान कर नया वाद चला दिया।
नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 5 Detailed Solution
सही उत्तर है- केवल A, C, D
Key Pointsप्रयोगवाद-
- व्यक्तिवाद या वैयक्तिकता प्रयोगवाद का मूल आधार है।
- 1943 ई. मे अज्ञेय ने 'तार सप्तक' पत्रिका का सम्पादन आरंभ किया था। वाद के रूप में प्रयोगवाद की शुरुआत वही से होती है।
- प्रयोगवाद में प्रयोग शब्द नए जीवन सत्यों को पाने की बेचैनी का द्योतक है।
- प्रयोगवाद की प्रमुख प्रवृतियाँ हैं-
- वैचारिक प्रतिबद्धता का निषेध
- नवीन राहों का अन्वेषण
- व्यक्तिकता
- क्षण की महत्ता
- यौन चेतना की प्रबलता
- प्रयोगवाद शब्द का प्रथम प्रयोग नंद दुलारे वाजपेयी ने किया।
- इन्होंने यह नाम अपने एक निबंध 'प्रयोगवादी रचनाएँ' में प्रदान किया था।
- प्रयोगवाद का आरंभ सन 1943 ईस्वी में सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन 'अज्ञेय' के संपादकत्व में प्रकाशित तार सप्तक से माना जाता है। तार सप्तक में 7 कवि संग्रहित हैं।
- नंददुलारे वाजपेई ने प्रयोगवाद को "बैठे ठाले का धंधा" कहा है।
- अज्ञेय ने तार सप्तक की भूमिका में प्रयोगवादी कवियों को "राहों के अन्वेषी" कहा है।
Important Points
नामवर सिंह-
- जन्म-1926-2019ई.
- आलोचनात्मक ग्रंथ-
- छायावाद(1955ई.)
- इतिहास और आलोचना(1957ई.)
- कहानी:नयी कहानी(1965ई.)
- कविता के नये प्रतिमान(1968ई.)
- दूसरी परंपरा की खोज(1982ई.) आदि।
प्रयोगवाद Question 6:
“लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पंथ प्यारे हैं"
इन पंक्तियों के सृजेता हैं
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 6 Detailed Solution
उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प "सर्वेश्वर दयाल सक्सेना" सही है तथा अन्य विकल्प असंगत है।
- उपर्युक्त काव्य पंक्तियां सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की है।
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाएं
- तीसरा सप्तक – सं. अज्ञेय, (1959), काठ की घंटियां (1959), बांस का पुल (1963), एक सूनी नाव (1966), गर्म हवाएं (1966), कुआनो नदी (1973), जंगल का दर्द (1976), खूंटियों पर टंगे लोग (1982), क्या कह कर पुकारूं – प्रेम कविताएं, कविताएं (1), कविताएं (2), कोई मेरे साथ चले, मेघ आये,काला कोयल
- भारत भूषण अग्रवाल
- छवि के बंधन, जागते रहो, ओ अप्रस्तुत मन, अनुपस्थित लोग, मुक्तिमार्ग, एक उठा हुआ हाथ, उतना वह सूरज है कविता-संग्रह पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, एक उठा हुआ हाथ, उतना वह सूरज है, अहिंसा, चलते-चलते, परिणति, प्रश्नचिह्न, फूटा प्रभात, भारतत्व, मिलन, विदा बेला, विदेह, समाधि लेख
- देवताले जी की प्रमुख कृतियाँ हैं
- हड्डियों में छिपा ज्वर, दीवारों पर खून से, लकड़बग्घा हँस रहा है, रोशनी के मैदान की तरफ़, भूखंड तप रहा है, हर चीज़ आग में बताई गई थी, पत्थर की बैंच, इतनी पत्थर रोशनी, उजाड़ में संग्रहालय आदि।
- भवानी प्रसाद मिश्र के कविता संग्रह
- गीत फरोश, चकित है दुख, गान्धी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल सन्ध्या, व्यक्तिगत, परिवर्तन जिए, तुम आते हो, इदम् न मम, शरीर कविता: फसलें और फूल, मानसरोवर दिन, सम्प्रति, अँधेरी कविताएँ, तूस की आग, कालजयी, अनाम, नीली रेखा तक और सन्नाटा।
प्रयोगवाद Question 7:
निम्नलिखित में से कौन सा काव्य संग्रह मंगलेश डबराल का नहीं है?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 7 Detailed Solution
नेपथ्य में हँसो काव्य संग्रह मंगलेश डबराल का नहीं है। Key Pointsमंगलेश डबराल-
- जन्म- 1948 - 2020 ई०
- समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम हैं।
- काव्य संग्रह-
- पहाड़ पर लालटेन
- घर का रास्ता
- हम जो देखते हैं
- आवाज भी एक जगह है
- नये युग में शत्रु
- गद्य संग्रह-
- लेखक की रोटी
- कवि का अकेलापन
- यात्रावृत्त-
- एक बार आयोवा
Important Pointsराजेश जोशी-
- जन्म- 1946 ई०
- आठवें दशक के प्रमुख कवि-लेखक और संपादक।
- कविता-संग्रह-
- एक दिन बोलेंगे पेड़
- मिट्टी का चेहरा
- नेपथ्य में हंसी
- दो पंक्तियों के बीच
- कहानी संग्रह-
- सोमवार और अन्य कहानियां
- कपिल का पेड़
- नाटक -
- जादू जंगल
- अच्छे आदमी
- टंकारा का गाना।
प्रयोगवाद Question 8:
'कोरी भावुकता के स्थान पर ठोस बौद्धिकता को स्वीकार करती है' :
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 8 Detailed Solution
प्रयोगवादी कविता 'कोरी भावुकता के स्थान पर ठोस बौद्धिकता को स्वीकार करती है।
Key Pointsप्रयोगवादी-
- हिन्दी मे प्रयोगवाद का प्रारंभ सन् 1943ई. मे अज्ञेय के सम्पादन मे प्रकाशित तारसप्तक से माना जा सकता है।
- इसकी भूमिका मे अज्ञेय ने लिखा है-कि कवि नवीन राहों के अन्वेषी हैं।
- प्रयोगवादी कविमंसिक संतुष्टि के लिये रचना करता है।
- प्रयोगवाद की विशेषताएं
- नवीन उपमाओं का प्रयोग
- प्रेम भावनाओं का खुला चित्रण
- बुद्धिवाद की प्रधानता
- निराशावाद
- लघु मानववाद की प्रतिष्ठा
- अहं की प्रधानता
- रुढियों के प्रति विद्रोह।
Additional Informationछायावादी कविता-
- छायावाद हिंदी साहित्य के रोमांटिक उत्थान की वह काव्य-धारा है जो लगभग1918 से 1936ई. तक की प्रमुख धारा रही।
- जयशंकर प्रसाद, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा, पंडित माखन लाल चतुर्वेदी इस काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।
- छायावाद नामकरण का श्रेय मुकुटधर पाण्डेय को जाता है।
उत्तर छायावादी कविता-
- उत्तर छायावादी काव्य ने केवल छायावादी काव्य में बदलाव लाने का कार्य किया और एक अन्य जागृत युग की आधार भूमि तैयार की।
- उत्तर-छायावादी काव्य की राष्ट्रीय-सांस्कृतिक धारा, वैयक्तिक प्रगीतों की धारा में अंतर्वस्तु के तौर पर निम्नलिखित परस्पर संबद्ध सामान्य विशेषताएँ हैं।
- प्रमुख कवि-हरिवंश राय बच्चन.दिनकर,नवीन आदि।
रीतिकालीन कविता-
- रीति काल का समय सन 1650 से 1850ई. तक माना जाता है।
- इस युग को रीतिकाल इसलिए कहते हैं, क्योंकि इसमें काव्य-रीति पर अधिक विचार हुआ है।\
- इस काल में कई कवि ऐसे हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे।
- इस युग में श्रृंगार की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा।
- मुख्यतया कवित्त, सवैये और दोहे इस युग में लिखे गए।
प्रयोगवाद Question 9:
नदी के द्वीप कविता में किस आकार की बात नहीं की गई हैं?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 9 Detailed Solution
सही उत्तर है- त्रिकोण
Key Pointsपूर्ण पंक्तियाँ हैं-
- हम नदी के द्वीप हैं।
हम नहीं कहते कि हम को छोड़ कर स्रोतस्विनी बह जाए।
वह हमें आकार देती है।
हमारे कोण, गलियाँ, अंतरीप, उभार, सैकत कूल,
सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं।
प्रयोगवाद Question 10:
‘सतपुड़ा के जंगल' कविता में किस वाद्ययंत्र का उल्लेख हुआ है ?
Answer (Detailed Solution Below)
प्रयोगवाद Question 10 Detailed Solution
‘सतपुड़ा के जंगल' कविता में ढोल वाद्ययंत्र का उल्लेख हुआ है।
Key Pointsसतपुड़ा के जंगल-
- रचनाकार- भवानी प्रसाद मिश्र।
- प्रकाशन वर्ष- 1956 ई०
- विधा- कविता
- काव्य संग्रह- गीत फरोश में संकलित (1956)।
- मुख्य तथ्य-
- सतपुड़ा के जंगल' नामक उनकी कविता में प्रकृति के प्रति उनकी संवेदनशील अनुभूतियां इस प्रकार व्यक्त हुई है।
- सतपुड़ा के घने जंगल नींद में डूबे हुए से, उंघते अनमने जंगल।
- यहां जंगल निर्जीव न रहकर राजीव सप्राण जीवन का प्रतिरू बन गया है।
- इस कविता में मुर्गे और तीतर, हिरण-दल, सुअर और सियार आदि जानवरों का जिक्र है।
Important Pointsभवानीप्रसाद मिश्र-
- जन्म-1913-1985 ई.
- भवानीप्रसाद मिश्र दूसरा सप्तक(1951) के महत्त्वपूर्ण कवि हैं।
- इनकी अधिकांश कविताओं में बोलचाल की शब्दावली तथा बोलचाल के लहजे का प्रयोग हुआ है।
- इनकी भाषा एवं अभिव्यक्ति में लोक जीवन के प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होते हैं।
- गांधीवादी विचार धारा के कवि है, कहानीकार उदय प्रकाश ने मिश्र जी को 'कविता का गांधी' कहां है।
- प्रमुख रचनाएं-
- गीत फरोश(1956)
- चकित है दुख(1968)
- बुनी हुई रस्सी(1971)
- खुशबू के शिलालेख(1973)
- अनाम तुम आते हो(1979)
- कालजयी(1980)
- मानसरोवर दिन(1981) आदि।